योगेंद्र गुप्ता, संपादक, www.NaiHawa.com
राजस्थान के सियासी तूफ़ान के बीच सीएम अशोक गहलोत ने भले ही सोनिया गांधी को लिखित में माफीनामा दे दिया हो, लेकिन गहलोत का अब तक जो राजनीतिक करियर रहा है उससे लग रहा है कि वे इससे हार मानने वालों में नहीं हैं। उनकी अगली चाल क्या होगी; इस पर गौर करने वाली बात है। यह तय है कि गहलोत मुख्यमंत्री बने रहें या फिर सचिन की ताजपोशी हो जाए, सरकार चलेगी तलवार की धार पर ही।
आपको यहां बता दें कि गहलोत ने केवल माफीनामा लिखकर दिया है, मात नहीं खाई है। आज भी कांग्रेस विधायक दल के कम से कम 80 विधायक गहलोत के साथ हैं। गहलोत राजनीति के चतुर खिलाड़ी हैं। इतनी जल्दी मात खाने वालों में से नहीं हैं। इसलिए आलाकमान को राजस्थान का नया सीएम बनाने के लिए पसीने छूटे हैं।
सूत्रों ने बताया कि यदि गहलोत को अपदस्थ कर सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया तो गहलोत समर्थक करीब तीस विधायक तो ऐसे हैं जो कभी भी तुरंत बगावत कर सकते हैं। सचिन पायलट की सबसे कमजोर कड़ी यही है कि उनके साथ बमुश्किल बीस से तीस विधायक ही हैं। यदि सचिन पायलट में दमखम होता तो पिछली बार ही गहलोत का तख्तापलट हो गया होता। इसलिए राजनीतिक प्रेक्षक यह मानकर चल रहे हैं कि गहलोत रहें या जाएं, पलड़ा तो गहलोत का ही भारी रहेगा। और यह पलड़ा कभी भी गुल खिला सकता है।
अशोक गहलोत से आज सोनिया से मुलाकात के बाद मीडिया ने जब उनसे सीएम पद को लेकर पूछा तो उन्होंने कहा कि इसका फैसला सोनिया गांधी को ही लेना है। माना जा रहा है कि सोनिया गांधी की नाराजगी बरकरार है और ऐसे में अशोक गहलोत राजस्थान के सीएम नहीं रहेंगे।
बड़ा सवाल, क्या बिखर जाएगी कांग्रेस
बड़ा सवाल फिर खड़ा हो रहा है कि गहलोत के जाने के बाद क्या राजस्थान में कांग्रेस बिखर जाएगी। फ़िलहाल इसका एक ही जबाव है कि अब प्रदेश की बागडोर सचिन पायलट संभालें या फिर गहलोत समर्थक कोई और नेता। राजस्थान में सरकार अब तलवार की धार पर ही चलेगी। इसलिए पार्टी में उच्च स्तर पर राय यही बनी है कि दोनों खेमे एक ही नेता पर रजामंदी दिखाएं। वरना अगले चुनाव में पार्टी की बुरी गत होना तय है।
स्थितियां ये हैं कि गहलोत और सचिन खेमों में इतनी कटुता बढ़ गई है कि इनमें से किसी के भी हाथ बागडोर हाथ लग जाए; उसे तलवार की धार पर ही चलना होगा। सचिन कांग्रेस की सबसे कमजोर कड़ी हैं क्योंकि बीस से तीस विधायक ही उनकी मुट्ठी में हैं। बस इन्हीं के दम पर सचिन सीएम पद पर अपनी दावेदारी जता रहे हैं।
इसलिए देर-सबेर गहलोत खेमा जो पार्टी संगठन और विधायक दल में सबसे ताकतवर स्थिति में है, वह सचिन खेमे की राह बहुत ही कठिन बनाकर रहेगा। सचिन की ताकत इस समय सिर्फ इतनी है कि यदि अब उनको इग्नोर किया गया तो पार्टी में बिखराव तय है।
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