नई दिल्ली
एक्जिट पोल के तमाम अनुमानों को ध्वस्त करते हुए भाजपा हरियाणा विधानसभा के चुनाव में हैट्रिक बनाने में कामयाब हो गई। ये अपने आप में रिकॉर्ड है, क्योंकि हरियाणा में कभी भी कोई पार्टी लगातार तीसरी बार चुनाव नहीं जीती है।
रुझानों के मुताबिक हरियाणा विधानसभा में भाजपा ने 50 सीट पर बढ़त बनाते हुए स्पष्ट बहुमत प्राप्त कर लिया। इससे पहले कभी भी 50 के आंकड़े को छू नहीं सकी है। आखिरी नतीजे देर शाम तक आने की उम्मीद है। वहीं हरियाणा में 10 साल बाद भी कांग्रेस खाली हाथ रह गई है। दूसरी ओर जम्मू कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस- कांग्रेस गठबंधन ने स्पष्ट बहुमत प्राप्त कर लिया है। जम्मू कश्मीर के भी फाइनल नतीजे देर शाम तक आने की उम्मीद है।
आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा की 90 सीटें हैं। यहां तीन चरणों में 18 और 25 सितंबर व 1 अक्टूबर को वोट डाले गए थे। वहीं हरियाणा में विधानसभा की सभी 90 सीटों पर एक साथ पांच अक्टूबर को वोटिंग हुई थी। वोटिंग खत्म होने के बाद शनिवार शाम जारी किए गए एग्जिट पोल्स में हरियाणा में कांग्रेस पार्टी की जीत की संभावना जताई गई थी जबकि जम्मू-कश्मीर को लेकर अलग-अलग दावे किए गए थे।
हरियाणा में भाजपा का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन
हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 के नतीजे बेहद चौंकाने वाले रहे। इस चुनाव में एग्जिट पोल तो फेल हुए ही साथ ही जमीनी रिपोर्ट का दावा करने वाले कई राजनीतिक पंडितों के भी आकलन गलत साबित हो गए।
1980 में अपनी स्थापना के दो साल बाद ही बीजेपी हरियाणा चुनाव में उतरी थी। बीजेपी ने 1982 के चुनाव में छह सीटें जीती थी। 1987 में 16, 1996 में 11, 2000 में 6 और 2005 में बीजेपी को दो सीटों पर जीत मिली थी। 2009 में भी पार्टी डबल डिजिट में नहीं पहुंच सकी और चार सीटें ही जीत सकी थी। हरियाणा चुनाव में बीजेपी का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2014 के चुनाव में आया था जब बीजेपी ने 33.3 फीसदी वोट शेयर के साथ 47 सीटें जीती थी। 2019 में बीजेपी का वोट शेयर बढ़ा लेकिन सीटें घट गईं और पार्टी 36.7 फीसदी वोट शेयर के साथ 40 सीटें ही जीत सकी थी। लेकिन 2024 के चुनाव में अपने स्थिति में और सुधार किया और 2019 के मुकाबले इस बार और ज्यादा सीट हासिल कर लीं जो हरियाणा के चुनावी इतिहास में पार्टी का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन होगा। इस बार उसका वोट शेयर भी अब तक के चुनावों का सर्वश्रेष्ठ रहा।
हरियाणा में बीजेपी का फार्मूला हिट
हरियाणा में बीजेपी की हैट्रिक की एक वजह ‘मुख्यमंत्री बदलने का फॉर्मूला’ भी माना जा रहा है। इसी साल मार्च में बीजेपी ने मनोहर लाल खट्टर को हटाकर नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया था। हरियाणा की सियासत में जाट काफी अहम फैक्टर माने जाते हैं। किसान आंदोलन और फिर पहलवानों के आंदोलन की वजह से जाट वोटर्स बीजेपी से नाराज माने जा रहे थे। इसके अलावा, ऐसा भी माना जा रहा था कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बूते कांग्रेस को ज्यादा जाट वोट मिलने की उम्मीद थी। ऐसे में बीजेपी ने ओबीसी फैक्टर को साधने की कोशिश की।अनुमान है कि हरियाणा में 40% ओबीसी, 25% जाट, 20% दलित, 5% सिख और 7% मुस्लिम हैं। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी को जाटों की नाराजगी का नुकसान उठाना पड़ा है। कांग्रेस यहां की 10 में से 5 सीटों पर जीतीं। इनमें से दो- अम्बाला और सिरसा एससी सीट थी। बाकी तीन- सोनीपत, रोहतक और हिसार जाट बहुल सीटें थीं। वहीं, बीजेपी ने करनाल, फरीदाबाद, गुड़गांव, भिवानी-महेंद्रगढ़ और कुरुक्षेत्र में जीत हासिल की। इन सभी पांचों सीटों पर ओबीसी और ऊंची जातियों का दबदबा है।
मार्च में जब बीजेपी ने मनोहर लाल खट्टर को हटाकर नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया, तब इसे चुनावी दांव ही माना गया था। क्योंकि बीजेपी कई राज्यों में चुनावों से पहले मुख्यमंत्री बदल चुकी थी। इस चुनाव में बीजेपी ने सैनी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ने का फैसला लिया। माना जा रहा है कि सैनी के कारण बीजेपी ने न सिर्फ एंटी-इन्कंबेंसी को कम किया, बल्कि ओबीसी वोटों को भी साधा।
जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में नेशनल कांफ्रेस और कांग्रेस गठबंधन ने स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया है। लेकिन पीडीपी का बुरी तरह सफाया हो गया है। पीडीपी निर्दलीय और अन्य छोटी पार्टियां के बराबर भी सीट प्राप्त नहीं कर सकी। भाजपा यहां नंबर दो पार्टी बनकर उभरी है। 2014 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने अपनी सभी 25 सीटें जम्मू में ही जीती थीं। कश्मीर में उसे एक भी सीट नहीं मिली थी। जम्मू-कश्मीर में अपना पहला मुख्यमंत्री बनाने के लिए बीजेपी को अकेले जम्मू में ही कम से कम 30 से 35 सीटें जीतना जरूरी था। जबकि, घाटी में भी उसे अच्छा प्रदर्शन करना था। लेकिन ऐसा होता नजर नहीं आया।
अगस्त 2019 में केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया और जम्मू-कश्मीर का न सिर्फ विशेष राज्य का दर्जा खत्म किया, बल्कि इसे केंद्र शासित प्रदेश भी बना दिया। ये सब करने के बाद जम्मू-कश्मीर में कई महीनों तक कई प्रतिबंध लागू रहे। जब स्थिति थोड़ी सामान्य होने लगी तो मोदी सरकार ने विकास, नौकरियां और सुरक्षा के नाम पर ‘नया कश्मीर’ का वादा रखा। हालांकि, अनुच्छेद 370 हटाने से लोगों को जो नुकसान हुआ, उसकी भरपाई करने की कोशिशें बहुत कम हुई। दूसरी ओर, फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस और महबूबा मुफ्ती की पीडीपी ने 370 को ‘कश्मीरी अस्मिता’ से जोड़ दिया। इस कदम को कश्मीर विरोधी बताया। ये अपने आप में रिकॉर्ड है, क्योंकि हरियाणा में कभी भी कोई पार्टी लगातार तीसरी बार चुनाव नहीं जीती है।इससे पहले कभी भी 50 के आंकड़े को छू नहीं सकी है।एग्जिट पोल तक हरियाणा में बीजेपी की विदाई और कांग्रेस की वापसी का अनुमान लगा रहे थे।
जम्मू-कश्मीर में हारकर भी ‘जीत’ गई बीजेपी
बीजेपी भले ही जम्मू कश्मीर में सरकार नहीं बना पा रही है पर एक राष्ट्र के निर्माण के रूप में कश्मीर में सफलतापूर्वक चुनाव करवाकर दुनिया भर को संदेश है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों ने प्रचंड बहुमत से भारतीय लोकतंत्र पर मुहर लगाई है। जम्मू कश्मीर में पिछले कई दशकों से जो चुनाव हो रहे हैं वो आतंक के साये में होते रहे हैं। तमाम आतंकी गुटों की दहशत के साये में चुनाव सही मायने में चुनाव नहीं थे। क्योंकि बहुत से लोग वोट नहीं करते और बहुत से लोग चुनाव नहीं लड़ते थे। कई बार वोटिंग परसेंटेज इतना कम होता था कि वो पूरी आबादी का 10 परसेंट भी नहीं कहा जा सकता था। बीजेपी के ‘नया कश्मीर’ में सुरक्षा पर ज्यादा जोर दिया गया। सरकार ने आतंकवाद, अलगाववाद और पत्थरबाजी के खिलाफ जो कार्रवाई की, उसका लोगों ने स्वागत किया। हालांकि बीजेपी को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी। बीजेपी पर प्रतिबंधित जमाते इस्लामी को कश्मीर में बढ़ावा देने, टेरर फंडिंग के आरोपित सांसद इंजीनियर रशीद की पर्दे के पीछे मदद करने का भी आरोप लगा पर चुनाव में हर पक्ष को अपनी बात कहने का मौका मिला। प्रतिबंधित जमात-ए- इस्लामी जो चुनाव बहिष्कार का हिस्सा रही है, वह अब लोकतंत्र का गुणगान करती देखी गई। तमाम प्रतिबंधित संगठनों के ऐसे लोग जो पहले आतंकवादी कार्यवाही में लिप्त रहे हैं उन्हेंं भी लोकतंत्र के इस उत्सव में भाग लेने का मौका मिला। सबसे बड़ी बात ये रही कि जिन लोगों को भारतीय संविधान में विश्वास नहीं था कम से कम इस चुनाव के बहाने उन्होंने भारतीय संविधान को स्वीकार किया। चुनावी फायदे के लिए बीजेपी ने अल्ताफ बुखारी की अपनी पार्टी और सज्जाद लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस जैसी पार्टियों के साथ गठबंधन कर नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी का खास दबदबा कम करने की कोशिश की। हालांकि इन पार्टियों के साथ गठबंधन बीजेपी के लिए कुछ खास फायदेमंद साबित नहीं रहा। अनुच्छेद 370 की समाप्त कर केंद्र ने जम्मू कश्मीर के चुनावों को पहले से अधिक लोकतांत्रिक बना दिया। पहली बार जम्मू कश्मीर में अनुसूचित जनजातियों के लिए नौ सीटें आरक्षित की गईं हैं, जबकि अनुसूचित जातियों के लिए सात सीटें आरक्षित की गईं हैं।
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