नूतन स्वर
डॉ. सत्यदेव आजाद, मथुरा
फेंक दो
अपनी पुरानी कल्पनाओं के कफ़न
कवि!
ग्रहण से पहले नया सूरज उगाना है
तुम्हें अब।
हो चुका है प्यार काफ़ी
दीप से भी
शलभ से भी
तारिकाओं से
गगन से
चांद से
चंचल लहर से।
विरह डूबी प्रिया का अब
राज रथ आये न आये
कली की अभ्यर्थना
सहकार को भाये न भाये
जीर्ण चिथड़ों से बुने उपमान मैले
सब सहेजो
अश्र डूबी यक्ष पाती
मेघ माला में न भेजो।
लो नये परिधान
नूतन स्वर
नये त्योहार लाओ
लो नया चश्मा
नया आलोक देखो
अब नया संधान
नूतन लक्ष्य देखो।
(लेखक आकाशवाणी के सेवानिवृत्त वरिष्ठ उद्घोषक और नारी चेतना और बालबोध मासिक पत्रिका ‘वामांगी’ के प्रधान संपादक हैं।)
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