पुस्तक समीक्षा: वाणी के जादूगर उद्घोषकों के लिए अद्भुत पुस्तक ‘वाक्‌ कला’

समीक्षा 

 विधि अग्रवाल 


कीर्ति, काव्य और ऐश्वर्य की श्रेष्ठता उसके सर्वहिताय एवं  मांगलिक प्रयोजन में निहित है। रचनाकार का दृष्टिकोण सर्वभूतहिते होने पर ही उसकी सार्थकता होती है। हिन्दी साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान और अपनी मधुरवाणी के धनी डॉ.सत्यदेव आजाद ने अपनी पुस्तक ‘वाक्‌ कला’ में शब्द को ब्रह्म  की संज्ञा देते हुए बताया है कि परम सत्ता ब्रह्म ही स्वतन्त्र सक्रिय चित्त शक्ति है। वस्तुतः चेतना ही जीवन है जिसका आधार वाणी है। इसीलिए डॉ. आज़ाद ने आलोच्य पुस्तक वाक्‌ कला का आरम्भ वाग देवता की स्तुति से किया है।

अपनी बात में भी लेखक का विश्वास है कि प्रिय और  हितकारी वचन वाणी का तय हैं। 96 पृष्ठों में सिमटी  पुस्तक में 29 सार‌गर्भित तथा व्याकरण सम्मत सोपान हैं। अंत के लगभग 20 पृष्ठों के परिशिष्ट में आकाशवाणी का अपना इतिहास है, उसकी यात्रा है, उसके प्राच्य पुरोधा हैं, स्वातंत्र्य आंदोलन में प्रदत्त योगदान है, मुख्य राजनेताओं, कवियों व कलाकारों के दुर्लभ सचित्र प्रसंग हैं और है अमीन सयानी की स्मृति से लेकर ‘मन की बात’ तक का एक सिलसिला। आरजे में तलाशते दोस्ती और कम्यूनिटी रेडियो।

‘वाक्‌ कला’ पुस्तक के लेखक डा. सत्यदेव आज़ाद

वाक्‌ कला के मुद्रक हैं महाराजा अग्रसेन प्रेस, मथुरा। कम्पोजिंग; प्रभा कम्प्यूटर ग्राफ़िक्स का है और प्रकाशक है; वामांगी प्रकाशन मथुरा। पुस्तक का मूल्य मात्र 125/- सजिल्द है। निस्सन्देह इस पुस्तक के माध्यम से वाणी के जादूगर उद्‌घोषकों को क्षितिज से पार भी अपने पर पसारने का अवसर प्राप्त हो सकेगा।

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