नई दिल्ली
पति की 5000 करोड़ रुपये की संपत्ति में से गुजारे भत्ते के तौर पर मोटी रकम मांगने के मामले ने सुप्रीम कोर्ट में गर्मागर्म बहस छेड़ दी। दूसरी पत्नी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की महिला जज जस्टिस बी. वी. नागरत्ना ने सख्त टिप्पणी की और कहा, “पत्नी का हक सिर्फ उतना ही है, जितने की उसे वैवाहिक जीवन में आदत थी।”
ACB का बड़ा धमाका: विश्वविद्यालय में रिश्वतखोरी का भंडाफोड़, 7 लाख कैश जब्त, परीक्षा भवन सील
इस मामले में याचिकाकर्ता यानी दूसरी पत्नी ने 500 करोड़ रुपये की मांग की थी, यह देखते हुए कि पति ने अपनी पहली पत्नी को तलाक के बाद 500 करोड़ रुपये एलिमनी में दिए थे। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 500 करोड़ की इस मांग को “अनुचित” बताते हुए केवल 12 करोड़ रुपये देने का निर्देश दिया।
कोर्ट की नाराजगी: पति के स्टेटस पर क्यों निर्भर एलिमनी?
जस्टिस नागरत्ना ने कड़े शब्दों में कहा, “हमें आश्चर्य होता है कि अगर पति तलाक के बाद कंगाल हो जाए, तो क्या पत्नी तब भी इसी तरह की मांग करेगी?” उन्होंने कहा कि ऐसी डिमांड्स पति की संपत्ति और आय के आधार पर की जाती है, जो पूरी तरह से भ्रांति और गलतफहमी पर आधारित हैं।
“गुजारे भत्ते का मकसद सशक्तिकरण है, न कि ऐशो-आराम की गारंटी”
सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ किया कि गुजारे भत्ते का उद्देश्य पत्नी को सशक्त बनाना और उसकी जरूरतें पूरी करना है, न कि उसे पति के आर्थिक दर्जे के बराबर लाना। कोर्ट ने कहा कि “कानून का मकसद सामाजिक न्याय और गरिमा है, लेकिन इसे संपत्ति बंटवारे के तौर पर नहीं देखा जा सकता।”
500 करोड़ बनाम 12 करोड़: एलिमनी का फैसला
मामला तब और दिलचस्प हो गया, जब यह सामने आया कि पति ने अपनी पहली पत्नी को 500 करोड़ रुपये दिए थे। दूसरी पत्नी ने इसी तर्क पर इतनी बड़ी रकम की मांग की। लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि,
“पत्नी की आय, जरूरतें और वैवाहिक जीवन का स्तर तय करेंगे कि उसे गुजारे भत्ते के तौर पर कितनी राशि मिलनी चाहिए। केवल यह देखना कि पति की संपत्ति कितनी है, न्याय का सही तरीका नहीं हो सकता।”
महिला जज की तल्ख टिप्पणी
- “पत्नी के हक और जरूरतों में फर्क समझना होगा।”
- “अगर पति गरीब हो जाए, तब भी क्या इसी तरह के तर्क दिए जाएंगे?”
- “पहली पत्नी को मिली रकम दूसरी पत्नी के लिए मिसाल नहीं हो सकती।”
सिस्टम पर सवाल या जरूरत से ज्यादा उम्मीदें?
यह मामला यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या गुजारे भत्ते के कानून का दुरुपयोग हो रहा है? क्या पत्नियां पति की आय और संपत्ति के आधार पर अनुचित डिमांड्स कर रही हैं? कोर्ट ने इसे “खतरनाक प्रवृत्ति” बताते हुए कहा कि यह कानून सशक्तिकरण के लिए है, न कि पति को आर्थिक रूप से नीचा दिखाने या कंगाल बनाने के लिए।
दिलचस्प मोड़
इस मामले में सबसे मजेदार तथ्य यह रहा कि दूसरी पत्नी ने अपने तर्क को पति की पहली शादी के एलिमनी रिकॉर्ड पर खड़ा किया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए पति को राहत दी और पत्नी को 12 करोड़ रुपये का भरण-पोषण देने का आदेश दिया।
क्या कहते हैं जानकार
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला भविष्य के लिए एक नजीर बनेगा।
- “गुजारे भत्ते के अधिकार को जरूरतों तक सीमित रखना ही न्याय है।”
- “पत्नी का हक उसकी वास्तविक जरूरतों के आधार पर तय होना चाहिए, न कि पति की संपत्ति और स्टेटस देखकर।”
इस मामले ने यह दिखा दिया है कि एलिमनी का सवाल सिर्फ पति-पत्नी के रिश्ते का नहीं, बल्कि न्याय के मूलभूत सिद्धांतों का है। अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि गुजारे भत्ते का अधिकार वास्तविक जरूरतों पर आधारित होना चाहिए, न कि आर्थिक महत्वाकांक्षाओं पर।
नई हवा की खबरें अपने मोबाइल पर नियमित और डायरेक्ट प्राप्त करने के लिए व्हाट्सएप नंबर 9460426838 सेव करें और ‘Hi’ और अपना नाम, स्टेट और सिटी लिखकर मैसेज करें। आप अपनी खबर या रचना भी इस नंबर पर भेज सकते हैं।
ACB का बड़ा धमाका: विश्वविद्यालय में रिश्वतखोरी का भंडाफोड़, 7 लाख कैश जब्त, परीक्षा भवन सील
5वीं और 8वीं में फेल होने वाले छात्रों को अब नहीं मिलेगी प्रमोशन की गारंटी, जानें नए नियम
Rajasthan News: शीत लहर का अलर्ट, स्कूलों में इस डेट तक शीतकालीन अवकाश घोषित
इस स्टेट में असिस्टेंट प्रोफेसर के 562 पदों पर होगी भर्ती | जानें; किस विषय के कितने हैं पद
नई हवा’ की खबरें नियमित और अपने मोबाइल पर डायरेक्ट प्राप्त करने के लिए व्हाट्सएप नंबर 9460426838 सेव करें और ‘Hi’ और अपना नाम, स्टेट और सिटी लिखकर मैसेज करें