ग्वालियर
मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में ग्वालियर (Gwalior) पुलिस (Police) का एक ऐसा कारनामा सामने आया है, जिसे सुनकर अदालतें (Court) भी चौंक गई हैं। बीते तीन सालों में पुलिस ने 507 मामलों में फर्जी गवाहों का इस्तेमाल किया, और चौंकाने वाली बात यह है कि 100 केसों में सिर्फ एक ही व्यक्ति को गवाह बना दिया गया! इस खुलासे ने पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
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गवाह नहीं, ‘पुलिस के मोहरे’
कल्पना कीजिए, क्या एक ही व्यक्ति 100 अलग-अलग वारदातों का चश्मदीद गवाह हो सकता है? लेकिन ग्वालियर पुलिस ने इसे सच साबित कर दिखाया। पुलिस ने करीब 100 अलग-अलग केसों में सिर्फ एक ही गवाह का नाम दर्ज है। सभी घटनाएं उसी गवाह के सामने होना बताया गया है। जिला न्यायालय के एक जज के निजी ड्राइवर को 16 केसों में गवाह बना दिया गया, और एक शख्स को तो महज 29 मिनट के अंतराल में दो मामलों में गवाही दिला दी गई।
फर्जी गवाहों की ‘त्रिमूर्ति’
- एसपी कुशवाह: 100 केसों में गवाह, बेरोजगार, पुलिस रक्षा समिति का कार्डधारी।
- मोनू जाटव: जज का निजी ड्राइवर, 16 केसों में गवाही दे चुका, 23 मिनट में आबकारी एक्ट के तीन केसों में दर्ज।
- पूरन राणा: 4 केसों में पुलिस का गवाह, 29 मिनट में दो अलग-अलग घटनाओं में ‘मौजूद’।
आईजी का तर्क या सफाई?
ग्वालियर रेंज आईजी अरविंद सक्सेना का कहना है कि आम लोग कानूनी झंझट से बचने के लिए गवाही नहीं देते, इसलिए पुलिस अपने ‘परिचित’ लोगों को स्वतंत्र साक्षी के रूप में दर्ज करती है। लेकिन क्या अदालतों को ऐसे गवाहों पर भरोसा करना चाहिए, जिनकी मौजूदगी ही सवालों के घेरे में है?
आईजी सक्सेना ने आगे कहा कि अब नए BNS एक्ट के तहत घटनास्थलों की वीडियोग्राफी कराई जाएगी ताकि सबूत मजबूत हों। लेकिन सवाल यह है कि अब तक पुलिस की इस फर्जी गवाहों की व्यवस्था से कितने बेकसूर फंस चुके होंगे?
सिस्टम पर करारा तमाचा
गवाहों की इस ‘फैक्ट्री’ से एक और बड़ा सवाल खड़ा होता है – पुलिस ऐसे लोगों को गवाह क्यों बना रही है, जो अदालत में जाकर आरोपी पक्ष से डील कर गवाही से मुकर जाते हैं? क्या यह न्याय व्यवस्था के साथ खिलवाड़ नहीं है? अब देखना यह है कि इस गवाह घोटाले के बाद कोई कार्रवाई होती है या फिर यह मामला भी फाइलों में दफन हो जाएगा! लेकिन इतना तय है कि ग्वालियर पुलिस ने इस खुलासे से खुद की साख पर ऐसा बट्टा लगाया है, जिसे मिटाना आसान नहीं होगा।
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