आओ हम सब मिलकर बनाएं हरी – भरी वसुंधरा

प्रकृति संरक्षण

डॉ. शिखा अग्रवाल


प्रकृति ने मानसून की तैयारी कर ली है और हम पेड़ पौधे लगाने की तैयारी कर रहे हैं। हरी – भरी वसुंधरा की कल्पना ही मन को ताजगी से भर देती है। विकास के नाम पर धरती पर से जिस तेजी से वृक्ष काटे गए हैं, उसने एक तरफ कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए हैं तो दूसरी ओर पर्यावरण असंतुलन को इस हद तक बढ़ा दिया है कि हवा सांस लेने लायक नहीं रही। प्रतिवर्ष 5 जून को पूरे विश्व में पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष भी मनाया गया है। वेबीनार हुए, भाषण हुए, पर्यावरण बचाने की शपथ ली गई, पौधे लगाए गए। अब इन सब मुद्दों पर ठोस तरीके से काम करने की जरूरत है।

हालात बहुत विषम हो गए हैं। वैश्विक तापमान में बहुत तेजी से वृद्धि हो रही है। यदि तापमान बढ़ने की यही रफ्तार रही तो पृथ्वी का काफी बड़ा हिस्सा जल्द ही रेगिस्तान में बदल जाएगा और लगभग 20 लाख प्रजातियां हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगी। ध्रुवों पर बर्फ पिघलने से समुद्र का जल स्तर बढ़ने की आशंका से विश्व के कई देशों के सामने डूबने का खतरा उत्पन्न हो सकता है। वृक्षों के अभाव में मिट्टी का कटाव होने से बाढ़ का बार – बार आना, चक्रवाती तूफान, इस से उत्पन्न खाद्यान्न समस्या, पेयजल समस्या और अन्य ऐसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। इस बार साइबेरिया जैसे ठंडे इलाके में जहां जून में भी माइनस में तापमान रहता है वहां के एक क्षेत्र में 120 वर्षों का रिकॉर्ड टूट गया और तापमान 48 डिग्री पर जा पहुंचा है।

प्रकृति एक चक्र से संचालित होती है। यदि पेड़ पौधों का संरक्षण नहीं होगा तो इस चक्र में आया व्यवधान पूरी प्रकृति और पर्यावरण के सामने संकट खड़ा कर देगा। अब समय आ गया है कि पूरी मानव जाति इस बात को समझे कि पौधे लगाना तो आसान है लेकिन वे जीवित रहें और पूर्ण वृक्ष बने, इसके लिए देखभाल की भी जरूरत है।

हर वर्ष हजारों की संख्या में पौधारोपण करने के साथ ही अपने कार्य की इति श्री समझ ली जाती है। लेकिन सर्दी आने तक कितने पौधे बचे या अगली बारिश तक कितने पौधे बड़े हुए, इसकी चिंता भी हमें ही करनी होगी। कोरोना महामारी ने लगभग हर व्यक्ति को यह तो सिखाया ही है कि जो श्वास इतनी सहज रूप से ली जा रही है इसकी क्या कीमत है। पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा ने जिस जिम्मेदारी से ‘चिपको आंदोलन’ चलाकर पेड़ों को बचाने की मुहिम को चलाया था, उसे जीवित रखना बेहद जरूरी है।

 

जब जोधपुर महाराज को पेड़ काटने का आदेश वापस लेना पड़ा
राजस्थान में जोधपुर के छोटे से गांव खेजड़ली में, जोधपुर के महाराजा ने 21 सितंबर, 1730 को हरे वृक्षों को काटने का आदेश दिया जो कि एक महल बनाने के लिए था। इसके विरोध में बिश्नोई समाज के 363 लोगों ने पर्यावरण रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया था। अमृता देवी ने पहल करते हुए  खेजड़ी के वृक्ष को बचाने के लिए उसके चारों तरफ हाथों का घेरा बना लिया। लेकिन महाराजा के कारिंदो ने तलवार से उसे मार दिया। इसके बाद यह आंदोलन फैल गया और विभिन्न गांवों के 363 लोगों ने वृक्षों को बचाने के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया। इस घटना के बाद महाराजा ने पेड़ काटने बंद करने का आदेश दिया था। यह था पेड़ बचाने का जज्बा। विश्नोई समाज के लोग उस समय भी पेड़ों का महत्व शायद हमसे ज्यादा समझते थे।

विकास जरूरी है तो वृक्षों को काटने के बजाए उन्हें शिफ्ट किया जाए
वृक्ष हमारी जीवन रेखा है। उनके बिना हवा शुद्ध नहीं होती, बिना वृक्षों के ऑक्सीजन प्राप्त नहीं हो सकती और कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण नहीं होता। वर्तमान में सड़क बनाने, चौड़ी करने के नाम पर, पुल बनाने, कॉलोनी बनाने, कारखाने बनाने या अन्य कारणों से वृक्षों को लगातार काटा जा रहा है। बड़े वृक्षों को काटने की बजाय उन्हें दूसरी जगह पर रोपा जा सकता है या उतनी जगह छोड़ कर निर्माण कार्य किया जा सकता है।

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पौधारोपण के समय इन बातों का ध्यान रखना जरूरी है 
1. वे पौधे ज्यादा संख्या में लगाए जाएं जो ज्यादा ऑक्सीजन देते हैं और वायु को शुद्ध करते हैं।

2. पौधों को लगाने के बाद उनकी सुरक्षा के लिए या तो जालीदार गार्ड लगाए जाएं अथवा कंटीली झाड़ियों से सुरक्षा घेरा बनाया जाए ताकि पौधे पशुओं आदि से सुरक्षित रहें।

3. वृक्षों की नियमित देखभाल हो। उन्हें कम से कम एक वर्ष पानी देना, मौसम की मार से बचाना आवश्यक है।

4. जिसके  द्वारा पौधा लगाया जाए उसे पौधे की पूरी जिम्मेदारी दी जाए। इसके लिए ‘पौधे बचाएं’  जैसी प्रतियोगिता का आयोजन किया जा सकता है। किसी संस्था को भी पौधों की देखभाल का जिम्मा सौंपा जा सकता है जिससे पानी देना, धूप से बचाव करना, पशुओं से सुरक्षा करना आदि कार्य किए जा सके। छायादार पौधों को सड़क के किनारे विभिन्न संस्थाओं आदि के द्वारा लगाया जा सकता है जिससे उनका लाभ सभी को मिले।

5. पौधा लगाने के अगले वर्ष यह आकलन हो कि कितने पौधे जीवित रहे। जिससे पौधे लगाने का उद्देश्य पूरा हो सके।

6. सर्दियों में जब वृक्षों की छंगाई की जाती है तो उस समय ऊपर की एक टहनी पत्तों सहित अवश्य छोड़ी जाए जिससे समय आने पर उस पर फल -फूल लग सके। इससे बीज बनेंगे और स्वत: ही पक्षियों, हवा और बरसात द्वारा उन बीजों से अंकुरण हो सकेगा। इस तरह प्रकृति स्वयं ही नए पौधे  उगाने में सक्षम होगी।

7. सबसे महत्वपूर्ण है -पौधा रोपण करते समय छोटे बच्चों को साथ रखा जाए अथवा उनके हाथों से अपने घर, स्कूल, रिहायशी सोसायटी, पार्क आदि में पौधे लगवाए जाएं। प्रतिदिन खेलने के साथ उन्हें, उन पौधों की देखभाल के लिए प्रेरित किया जाए। इससे बच्चों में बचपन से ही पेड़ पौधों से लगाव उत्पन्न होने लगेगा और उनकी सार संभाल को वे अपनी जिम्मेदारी मान लेंगे। इससे बच्चों में सहज रूप से प्रकृति के प्रति जागरूकता आएगी। एक तरह से इसे हम प्रकृति के प्रति शिक्षा का सहज तरीका मान सकते हैं।

कोशिश स्थिति बदलने की होनी चाहिए
सिर्फ पौधारोपण करके, वन महोत्सव मना कर या वृक्षारोपण पखवाड़ा मना कर अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीं करनी है बल्कि कोशिश स्थिति बदलने की करनी चाहिए। हर व्यक्ति अपने घर से शुरू करें तो फिर से हरी – भरी वसुंधरा में शुद्ध, निर्मल बयार को महसूस किया जा सकता है। हमारी आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ, शुद्ध पर्यावरण और सांस लेने योग्य वातावरण देना हमारी जिम्मेदारी है और हमें इसकी पहल आज से ही करनी होगी।

(लेखिका राजकीय महाविद्यालय, सुजानगढ़ में सह आचार्य हैं)