चांद पर तिरंगा, भारत ने रचा इतिहास, मिशन चंद्रयान-3 कामयाब | स्पेस पॉवर में चौथा देश बना हमारा देश | साउथ पोल पर लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला देश

बेंगलुरु

भारत ने बुधवार की इतिहास रच दिया। उसका मिशन चंद्रयान-3 अपना मकसद पाने में कामयाब हो गया जब उसने चांद पर साफ्ट  लैंडिंग की। यह इसलिए भी अहम हो गई है क्योंकि हाल ही में रूस का ‘लूना’ चांद पर लैंड करने से पहले  ही क्रेश हो गया था। लेकिन भारत  के वैज्ञानिकों ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 की सफल  लैंडिंग कराकर दुनिया में अपना लोहा मनवा लिया। चंद्रयान-3 की चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल सॉफ्ट लैंडिंग के साथ ही भारत स्पेस पॉवर में चौथा देश बन गया। हमारे मिशन मून ने आज शाम जैसे ही चंद्रमा के साउथ पोल पर लैंड किया समूचा भारत झूम उठा। चंद्रयान-3 ने आज शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रमा के साउथ पोल पर लैंड किया। अब यह 41 दिन में 3.84 लाख किमी का सफर तय करेगा।

चंद्रयान-3 की चांद पर लैंडिंग के साथ ही भारत ने एक और इतिहास रचा। चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर ने चांद के दक्षिणी ध्रुव (South Pole) पर लैंड किया। इससे पहले ऐसा कोई भी देश नहीं कर पाया है। ऐसे में भारत ऐसा करने वाला पहला देश बन गया है।भारत के लिए चंद्रयान-3 मिशन काफी अहम है। क्योंकि इससे पहले दो मिशन फेल हो चुके हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साउथ अफ्रीका में चंद्रयान-3 की सफल  लैंडिंग का सीधा प्रसारण देखा। पीएम मोदी इस समय दक्षिण अफ्रीका (South Africa) में हैं। दक्षिण अफ्रीका में इस समय 15वें BRICS शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है और उसमें शामिल होने के लिए ही पीएम मोदी जोहानसबर्ग (Johannesburg) दौरे पर हैं। पर देश से दूर होने के बावजूद पीएम मोदी भारत के साथ ही दुनियाभर के लिए इस ऐतिहासिक पल का हिस्सा बने। सीधा प्रसारण छात्रों को दिखाने के लिए उत्तर प्रदेश, आसाम सहित कई राज्यों की सरकारों ने स्कूल खोलने के निर्देश दिए थे। जहां बच्चों ने अपने मिशन मून को कामयाब होते हुए देखा। दुनियाभर में चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के लिए प्रार्थनाओं का दौर चला।

भारत से पहले चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के मामले में अमेरिका, तत्कालीन सोवियत संघ और चीन को पहले सफलता मिल चुकी है। कुछ दिन पहले रूस ने भी ऐसा करने की कोशिश की थी, पर उसे सफलता नहीं मिली थी। चंद्रयान-3 मिशन की लागत 600 करोड़ रुपए है। इसे 14 जुलाई को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से शक्तिशाली रॉकेट एलवीएम मार्क 3 से लॉन्च किया गया था।

साल 2019 में चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग से पहले इसरो ने एक और चंद्रयान भेजा था। लेकिन बाद में उसने खुद ही इस मिशन को नष्ट कर दिया था। साल 2008 में इसरो ने चंद्रमा पर एक अंतरिक्ष यान भेजा था। बाद में उसे जानबूझकर नष्ट कर दिया था। यह मिशन 22 अक्टूबर 2008 को लॉन्च किया गया था। इसके साथ ही भारत ने दुनिया को पृथ्वी की कक्षा के बाहर, किसी अन्य खगोलीय पिंड पर मिशन भेजने की अपनी क्षमताओं के बारे में बता दिया था। यह वो समय था जब सिर्फ चार अन्य देश चांद पर मिशन भेजने में कामयाब हो पाए थे। जिनमें अमेरिका, रूस, यूरोप और जापान शामिल थे।

अंतरिक्ष यान के अंदर 32 किलोग्राम का एक जांच उपकरण रखा गया था। इसका उद्देश्य सिर्फ यान को क्रैश करना था, जिसे मून इम्पैक्ट प्रोब बताया गया। 17 नवंबर, 2008 की रात को करीब 8:06 बजे, इसरो के मिशन नियंत्रण में बैठे इंजीनियरों ने चंद्रमा प्रभाव जांच को नष्ट करने के निर्देशों को माना। कुछ ही घंटों में चांद की दुनिया में धमाका होने वाला था। मून इम्पैक्ट प्रोब ने चांद की सतह से 100 किलोमीटर की ऊंचाई से अपनी अंतिम यात्रा की शुरुआत की थी। जैसे ही जांच उपकरण चंद्रयान ऑर्बिटर से दूर जाने लगे, उसी समय ऑनबोर्ड स्पिन-अप रॉकेट सक्रिय हो गए। इसके बाद वह चंद्रमा की ओर जाने वाले मिशन को रास्ता दिखाने लगे।

ऐसे हुई चंद्रयान-3 की लैंडिंग 

– विक्रम लैंडर 25 किलोमीटर की ऊंचाई से चांद पर उतरने की यात्रा शुरू की. अगले स्टेज तक पहुंचने में उसे करीब 11.5 मिनट लगे. यानी 7.4 किलोमीटर की ऊंचाई तक
– 7.4 km की ऊंचाई पर पहुंचने तक इसकी गति 358 मीटर प्रति सेकेंड थी. अगला पड़ाव 6.8 किलोमीटर था
– 6.8 km की ऊंचाई पर गति कम करके 336 मीटर प्रति सेकेंड हो गई. अगला लेवल 800 मीटर था
– 800 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर के सेंसर्स चांद की सतह पर लेजर किरणें डालकर लैंडिंग के लिए सही जगह खोजने लगे 
– 150 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर की गति 60 मीटर प्रति सेकेंड थी. यानी 800 से 150 मीटर की ऊंचाई के बीच
– 60 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर की स्पीड 40 मीटर प्रति सेकेंड थी. यानी 150 से 60 मीटर की ऊंचाई के बीच
– 10 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर की स्पीड 10 मीटर प्रति सेकेंड थी
– चंद्रमा की सतह पर उतरते समय यानी सॉफ्ट लैंडिंग के लिए लैंडर की स्पीड 1.68 मीटर प्रति सेकेंड थी

हॉरिजोन्टल वेलोसिटी कैमरा से ली गई तस्वीरें
चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम ने अपने निर्धारित समय पर चंद्रमा के साउथ पोल पर लैंडिंग की। चंद्रमा पर सफल लैंडिंग के बाद लैंडर विक्रम सही तरीके से काम कर रहा है। लैंडर विक्रम ने चंद्रमा की सतह पर लैंडिंग के बाद पहली बार तस्वीरें भेजी है। इसरो ने चंद्रमा की सतह से भेजी गई चार तस्वीरों को ट्वीट किया। यह तस्वीरें लैंडर विक्रम के हॉरिजोन्टल वेलोसिटी कैमरा से ली गई हैं। इसके साथ ही विक्रम लैंडर का ISRO के साथ संवाद शुरु हो गया है।

50 साइंटिस्ट की रात आंखों में कटी, कमांड सेंटर में उत्साह-बेचैनी का माहौल
इसरो के बेंगलुरु स्थित टेलीमेट्री एंड कमांड सेंटर (इस्ट्रैक) के मिशन ऑपरेशन कॉम्प्लेक्स (मॉक्स) में 50 से ज्यादा वैज्ञानिक कंप्यूटर पर चंद्रयान-3 से मिल रहे आंकड़ों की रात भर पड़ताल में जुटे रहे। कमांड सेंटर में उत्साह-बेचैनी  बनी रही। इसरो वैज्ञानिक बेंगलुरु स्थित ​​​​इसरो टेलिमेट्री ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क (इस्ट्रैक) और ब्यालालू गांव स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क पर मिल रहे डेटा के अलावा यूरोपियन स्पेस एजेंसी के जर्मनी स्थित स्टेशन, ऑस्ट्रेलिया और नासा के डीप स्पेस नेटवर्क से रियल टाइम डेटा लेकर वेरिफिकेशन करते रहे।

मोदी बोले- एक दिन वो भी आएगा जब बच्चे कहेंगे कि चंदा मामा एक टूर के
पीएम मोदी ने भारतीय वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए कहा कि अपने  भारत ही नहीं दुनिया को इस पल का इंतजार था। आज पूरा देश, हर भारतवासी इस पल का आनंद उठा रहा है। मैं इस उपलब्धि के लिए इसरो और देश के हर वैज्ञानिक को बधाई देता हूं। इसलिए क्योंकि इन्होंने इस पल के लिए वर्षों से इस पल का इंतजार किया है। मैं इस भावुकता से भरे इस पल के लिए देश के 140 करोड़ देशवासियों को भी कोटि-कोटि बधाई देता हूं। हमारे वैज्ञानिकों के परीश्रम से भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचा है, जहां दुनिया का कोई भी देश नहीं पहुंच सका है। आज के बाद से चांद से जुड़े मिथक और कहानियां बदल जाएंगे और नई पीढ़ी के लिए कहावतें भी बदल जाएंगी। 

पीएम मोदी ने कहा कि हम भारतवासी धरती को मां और चांद को मामा बुलाते हैं। बहुत पहले कहा जाता था कि चंदा मामा दूर के हैं। लेकिन, एक दिन वो भी आएगा जब बच्चे कहेंगे कि चंदा मामा एक टूर के हैं।

लैंडिंग के बाद अब क्या?

  • डस्ट सेटल होने के बाद विक्रम चालू होगा और कम्युनिकेट करेगा।
  • फिर रैंप खुलेगा और प्रज्ञान रोवर रैंप से चांद की सतह पर आएगा।
  • पहिए चांद की मिट्‌टी पर अशोक स्तंभ और ISRO के लोगो की छाप छोड़ेंगे।
  • विक्रम लैंडर प्रज्ञान की फोटो खींचेगा और प्रज्ञान विक्रम की। ये फोटो वे पृथ्वी पर भेजेंगे।

ISRO को क्या फायदा होगा
इसरो दुनिया में अपने किफायती कॉमर्शियल लॉन्चिंग के लिए जाना जाता है। अब तक 34 देशों के 424 विदेशी सैटेलाइट्स को छोड़ चुका है। 104 सैटेलाइट एकसाथ छोड़ चुका है। वह भी एक ही रॉकेट से चंद्रयान-1 ने चांद पर पानी खोजा। चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर आज भी काम कर रहा है। उसी ने चंद्रयान-3 के लिए लैंडिंग साइट खोजी। मंगलयान का परचम तो पूरी दुनिया देख चुकी है। चंद्रयान-3 की सफलता इसरो का नाम दुनिया की सबसे बड़ी स्पेस एजेसियों में शामिल कर देगी।

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