मो को दूर तनिक मत कीजो…

बाल विवाह 

अतुल कुमार मिश्र 


मैं अबोध, निर्मल बुद्धि-मन,
कली कोपल सो, यो मोरो तन,
आंगन तोरे कूकती कोयल,
हर्षित नयन मुदित हिय घायल।

हाल ही सीखी, डग-मग पग-धारन,
फिर फांसी मोहे किस कारन,
हे तात्, का तोरे मन आई,
पीर दई, कर कीन्ह पराई।

मैं अनाथ सी, तेरी अंगुली छूटी,
भटकी योजन, आस हिय टूटी,
का माता तेरी छाती सूखी,
मुंह को फेर पीठ कर बैठी।

गोद गहे का सुख का भूलूं,
शूल वधित हिये दुख झेलूं,
फांस जिया, भूली सब हांसी,
लागी अब जीवन को फांसी।