बाल विवाह
अतुल कुमार मिश्र
मैं अबोध, निर्मल बुद्धि-मन,कली कोपल सो, यो मोरो तन,आंगन तोरे कूकती कोयल,हर्षित नयन मुदित हिय घायल।
हाल ही सीखी, डग-मग पग-धारन,फिर फांसी मोहे किस कारन,हे तात्, का तोरे मन आई,पीर दई, कर कीन्ह पराई।
मैं अनाथ सी, तेरी अंगुली छूटी,भटकी योजन, आस हिय टूटी,का माता तेरी छाती सूखी,मुंह को फेर पीठ कर बैठी।
गोद गहे का सुख का भूलूं,शूल वधित हिये दुख झेलूं,फांस जिया, भूली सब हांसी,लागी अब जीवन को फांसी।
मो को दूर तनिक मत कीजो,अंगना खेलूं प्रीत धरीजो,विवाह बाल, का रीत उपाई,बिटिया सुख सों आग लगाई।।(369. कृष्णा नगर, भरतपुर, राजस्थान)——————–
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