दर्द

रचना शर्मा, एडवोकेट और एक्सपर्ट, महिला उत्पीड़न मामले
पलकों की कोर से ढलकते
उस से पहले
रोक दिया उसने
उन आंसुओं को
जो बहना चाहते थे
कहना चाहते थे
दर्द की दास्तान
पर उसे मालूम है
आंसुओं के साथ
बह निकलेंगे
कुछ कतरे जख्म के
उसके जख्मों को मनाही है
चौखट पार करने की
क्योंकि औरत की आह
जब घर से बाहर जाती है
तो घर की इज्जत के हवाले से
निकल पड़ते हैं
रूढि़यों के ठेकेदार
अनगिनत सवालों के
पैने हथियार लिए
इसलिए चुप रहते हैं
औरत के सारे जख्म
काश! इन जख्मों को
कोई चीख मिल पाती
तो उसके साथ ही
आंसुओं को भी
आँखों की कैद से
रिहाई मिल पाती ….
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