अपना मतलब हल होने तक बिछे रहे जो लोग सीना ताने खड़े हुए हैं हैं ये कैसा संयोग ज़हर भरी मुस्कान फेंकते हैं आते जाते।
अपनी अपनी पड़ी सभी को खुलकर कौन मिले झुंझलाहट है हर चेहरे पर झेले नहीं झिले हिम्मत होती नहीं कि खोलूँ और नए खाते।
(2313, अर्जुनपुरा, डीग गेट, मथुरा (उत्तर प्रदेश)। लेखक आकाशवाणी के सेवानिवृत्त वरिष्ठ उद्घोषक और नारी चेतना और बालबोध मासिक पत्रिका ‘वामांगी’ के प्रधान संपादक हैं)