नाम से नहीं, पहचान से बुलाओ! हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, तलाकशुदा महिलाओं के लिए ‘डिवोर्सी’ शब्द के इस्तेमाल पर लगाई रोक | हाईकोर्ट का बड़ा सवाल- अगर महिलाएं ‘डिवोर्सी’, तो पुरुषों को ‘डिवोर्सर’ क्यों नहीं? | जानें पूरा मामला 

जम्मू 

Judgment: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट (Jammu and Kashmir High Court) ने अपने ऐतिहासिक फैसले में तलाकशुदा (Divorced) महिलाओं को ‘डिवोर्सी’ कहकर संबोधित करने पर रोक लगा दी है। अदालत ने इसे ‘बुरी आदत’ करार देते हुए कहा कि आज भी औरत को ऐसे पुकारना कष्टदायक है। किसी महिला की पहचान उसके रिश्ते की स्थिति से नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने निचली अदालतों को निर्देश दिया है कि मुकदमों में महिलाओं का नाम लेकर संबोधित किया जाए, न कि उन्हें ‘डिवोर्सी पार्टी’ कहकर पुकारा जाए। जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट ने एक वैवाहिक विवाद के मामले में तीन साल पहले दी गई अर्ज़ी पर यह फ़ैसला सुनाया है।

बादल सा मन…

हाईकोर्ट का करारा सवाल
मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस विनोद चटर्जी कौल ने स्पष्ट किया कि तलाकशुदा महिलाओं को इस तरह पहचान देना मानसिक आघात पहुंचाने वाला है। उन्होंने कहा, ‘आज भी किसी महिला को ‘डिवोर्सी’ कहा जाता है, जैसे यह उसका उपनाम हो। अगर महिलाओं के लिए यह शब्द जरूरी है तो पुरुषों के लिए ‘डिवोर्सर’ क्यों नहीं?

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‘हम भी इंसान हैं, हमारी भी पहचान है’
यह फैसला उन हजारों महिलाओं के लिए राहत भरा है जो तलाक के बाद सामाजिक पहचान के संकट से जूझती हैं। बडगाम की जाहिदा हुसैन (बदला हुआ नाम), जो सात साल से तलाकशुदा हैं, कहती हैं, ‘अब तक मैंने खुद को ‘डिवोर्सी’ ही माना था, लेकिन इस फैसले ने मुझे एहसास दिलाया कि मेरी एक अलग पहचान भी है।’

अदालत में अब बदलेंगे दस्तावेज, लागू होगा नया आदेश
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि अब से किसी भी कानूनी दस्तावेज में तलाकशुदा महिलाओं को ‘डिवोर्सी’ कहना प्रतिबंधित होगा। यदि कोई याचिका या अपील इस शब्द का उपयोग करते हुए दायर की गई, तो उसे खारिज कर दिया जाएगा। अदालत ने इस फैसले का पालन सुनिश्चित करने के लिए सभी निचली अदालतों और कानूनी संस्थाओं को पत्र भी जारी कर दिया है।

अदालत की यह टिप्पणी तीन साल पहले दायर किए गए वैवाहिक विवाद के मुक़दमे में दी गई पुनर्विचार याचिका पर फ़ैसला सुनाते हुए सामने आई है। अदालत ने फ़ैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करने वाले आवेदकों पर संबंधित महिला के लिए ‘तलाक़शुदा’ शब्द के इस्तेमाल पर बीस हज़ार का जुर्माना भी लगाया है। अदालती आदेश के अनुसार यह जुर्माना एक महीने में जमा करवाना होगा और जुर्माना जमा नहीं करवाने की स्थिति में “अदालत हर तरह की कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र होगी।”

ये है पूरा मामला
बडगाम ज़िले की रहने वाली ज़ाहिदा हुसैन (बदला हुआ नाम) अपनी सात साल की बेटी के साथ अपने मायके में रहती हैं। तीन साल पहले उनके पति ने उन्हें तलाक़ दे दिया था और तब से वह अक्सर अदालत में सुनवाई के लिए आती हैं। उन्होंने इस अदालती फैसले को सराहते हुए कहा, “मुझे तो ख़ुद के लिए तलाक़शुदा शब्द सुनने की आदत हो गई है। मैं ख़ुद भी अपने आप को तलाक़शुदा के तौर पर परिचित करवाती थी।” वह कहती हैं कि अदालत का इस मामले में फ़ैसला बहुत अच्छा क़दम है।”तलाक़ एक आम बात है, आख़िर हम भी इंसान हैं। हमारी भी पहचान है।”

ज़ाहिदा कहती हैं, “यह लफ़्ज़ इतनी बार दोहराया गया है कि मुझे वाक़ई अपनी पहचान एक तलाक़शुदा के अलावा कुछ नहीं दिखती थी। लेकिन बेटी बड़ी हो रही है, उसपर क्या गुज़रती जब उसको मालूम होता कि तलाक़ के बाद यह हम औरतों की पहचान ही बन जाती है. यह बहुत अच्छी बात है कि किसी को तो ख़्याल आया।”

कई वरिष्ठ वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस फैसले की सराहना की। महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष शमीमा फिरदौस ने कहा, ‘कश्मीर में तलाक को ऐब समझा जाता रहा है। तलाकशुदा महिलाओं की पहचान केवल उनकी टूटी शादी से जोड़ दी जाती है। यह फैसला उन्हें मानसिक तनाव से बाहर निकालने और आत्मसम्मान लौटाने की दिशा में बड़ा कदम है।

न्याय का नया युग: नाम से नहीं, सम्मान से पहचानी जाएंगी महिलाएं
हाईकोर्ट का यह फैसला सिर्फ कानूनी प्रक्रिया में बदलाव नहीं, बल्कि समाज में महिलाओं के प्रति सोच बदलने की पहल भी है। अब तलाकशुदा महिलाएं अपनी पहचान किसी ‘डिवोर्सी’ के रूप में नहीं, बल्कि अपने नाम और अस्तित्व के साथ कर पाएंगी।

सिर्फ तलाक नहीं, अब ‘व्यभिचारी’, ‘बदचलन’ जैसे शब्दों पर भी लगेगी रोक
अगस्त 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इसी दिशा में एक कदम बढ़ाते हुए महिला सम्मान की रक्षा के लिए एक ‘जेंडर सेंसिटिविटी हैंडबुक’ जारी की थी, जिसमें कहा गया कि अदालतों में महिलाओं के लिए ‘व्यभिचारी’, ‘बदचलन’, ‘तवायफ’ और ‘आवारा’ जैसे अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।

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