भारत के वे हीरो जिन्होंने बनाई कोरोना की दवा ‘2-DG’, यहां जानिए इनके बारे में सब कुछ

भारत के हीरो 

कोरोना के खिलाफ जंग में भारत ने एक नई दवा विकसित कर एक बहुत बड़ी लड़ाई जीत ली है और इस दवा का नाम है – 2-DG (2-डीऑक्‍स‍ि-डी-ग्लूकोज)। इससे बड़ी उम्मीद जगी है। और इसे भारत सरकार ने इमर्जेंसी इस्‍तेमाल की मंजूरी भी दे दी है। आपको पता ही होगा कि देश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर की वजह से मचे हाहाकार के बीच 8 मई को यह एक बड़ी राहत देने वाली खबर आई थी। इस दवा से कोरोना के मरीज तेजी से रिकवर होते हैं। यह मरीजों की ऑक्सिजन पर निर्भरता को कम करती है।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने यह दवाई बनाई है, लेकिन क्या आपको पता है कोरोना की यह नई दवा ‘2-DG’ किन वैज्ञानिकों के दिमाग की उपज हैं? देश के कौन हैं ये असली हीरो? आज ‘नई हवा’ में हम बता रहे हैं इन वैज्ञानिकों की कहानी। डीआरडीओ के इन वैज्ञानिकों की यह दवा ऐसे समय में आई है जब कोरोना की तीसरी लहर की बात हो रही है। देशभर में ऑक्सिजन की क‍िल्‍‍‍‍लत बनी हुई है। दूसरी लहर से रिकॉर्ड मौतें हो रही हैं और स्वास्थ्य संसाधनों पर भारी दबाव है। आइए, जानते हैं इन वैज्ञानिकों के बारे में वह जानकारी जो आपको अवश्य जाननी चाहिए और दूसरों को भी यह शेयर करनी चाहिए। डीआरडीओ को इन वैज्ञानिकों की बदौलत काफी कोशिशों के बाद इस दवा को बनाने में कामयाबी मिली है।आपको बता दें कि पिछले साल शुरुआत में कोरोना महामारी शुरू होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से कोरोना के खिलाफ तैयारियां करने का आह्वान किया गया था, जिसके बाद डीआरडीओ ने इस दवा पर काम शुरू किया

एडिशनल डायरेक्‍टर,​ सुधीर चांदना
इन वैज्ञानिकों में एक हीरो हैं-सुधीर चांदना। हरियाणा के हिसार के रहने वाले हैं। दवा बनाने में   इनकी अहम भूमिका रही है। वह डीआरडीओ में एडिशनल डायरेक्‍टर हैं। पीएचडी के दौरान बतौर वैज्ञानिक वह डीआरडीओ से जुड़े। उन्‍होंने 1991 से 1993 के बीच ग्‍वालियर और फिर दिल्‍ली स्थित इंस्‍टीट्यूट ऑफ न्‍यूक्लियर मेडिसिन एंड एलाइड साइंसेज में अपनी सेवाएं दीं। उनके पिता जेडी चांदना जिला और सत्र न्‍यायाधीश रहे हैं। चांदना का जन्म अक्तूबर 1967 में हिसार के पास रामपुरा में हुआ था। उनके जन्‍म के बाद पिता का हरियाणा जुडिशियल सर्विस में चयन हुआ। नौकरी में पिता का ट्रांसफर होने के कारण सुधीर की शुरुआती शिक्षा भिवानी, बहादुरगढ़, पानीपत, करनाल के स्‍कूलों में हुई। 1985 में उन्‍होंने चंडीगढ़ के डीएवी कॉलेज से बीएससी की। फिर 1987-89 में हरियाणा कृषि विश्‍वविद्यालय (HAU) से माइक्रोबायलॉजी में एमएससी की।

सीनियर साइंटिस्ट, अनंत नारायण भट्ट
हमारी दूसरी शान हैं DRDO के वैज्ञानिक अनंत नारायण भट्ट। उत्तर प्रदेश के निवासी हैं। उन्होंने गोरखपुर जिले के गगहा से माध्यमिक शिक्षा ग्रहण की। जैसे ही अनंत नारायण भट्ट का नाम कोरोनो की दवा विकसित करने वाले वैज्ञानिकों में सामने आया तो गोरखपुर सहित पूर्वांचल के लोग फूले नहीं समा रहे हैं। अनंत नारायण भट्ट DRDO के न्यूक्लियर मेडिसिन एंडअलायड साइंसेज में सीनियर साइंटिस्ट हैं। उन्‍होंने अपनी माध्यमिक शिक्षा गगहा के किसान इंटर कॉलेज और बीएससी किसान पीजी कॉलेज से की है। वहीं, अवध विश्विद्यालय से एमएससी बायोकेमेस्ट्री से करने के बाद पीएचडी करने के लिए सीडीआरआई लखनऊ में रजिस्ट्रेशन कराया। यहां ड्रग डेवलपमेंट विषय में रिसर्च कंप्लीट कर पीएचडी पूरा की। इसके बाद बतौर साइंटिस्ट DRDO में नौकरी मिल गई।

डॉ.अनिल मिश्रा की उप‍लब्‍धि से बलिया की बढ़ी शान
डॉ.अनिल मिश्रा मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के हैं। 2-डीजी दवा को बनाने में उनकी अहम भूमिका रही है। मिश्रा ने 1984 में गोरखपुर विश्‍वविद्यालय से एमएससी किया है। उन्‍होंने 1988 में बनारस हिंदू विश्‍वविद्यालय (BHU) से केमिस्‍ट्री में पीएचडी की। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में वह पोस्ट डॉक्टोरल फैलो रहे हैं। अनिल मिश्रा 1997 में बतौर वैज्ञानिक डीआरडीओ के न्यूक्लियर मिडिसिन एंड अलायड साइंसेज से जुड़े थे। फिलहाल वह संगठन के साइक्लोट्रॉन और रेडियो फार्मास्यूटिकल साइंसेज डिवीजन में सेवाएं दे रहे हैं। जर्मनी के मैक्स-प्लैंक इंस्टीट्यूट में वह 2002 से 2003 तक विजिटिंग प्रोफेसर भी रहे। काेराेना की दवा बनाने वालाें में उनका नाम शामिल हाेने की खबर आते ही उन्हें बधाई देेने वालों का तांता लग गया। बलिया के लाेग मिश्रा की उपलब्धि पर गौरव महसूस कर रहे हैं।

ऐसे विकसित हुई ‘2-DG’
कोरोना को चित्त कर देने वाली दवा ‘2-DG’ कैसे विकसित हुई, इसकी भी एक कहानी है डीआरडीओ के रेडिएशन बॉयोसाइंस विभाग के हेड डॉ. सुधीर चांदना ने यह कहानी बताई और कहा कि उनके साथी डॉ.अनंत नारायण भट्ट ने इस विषय पर पिछले साल मार्च-अप्रेल के आसपास बातचीत की और कहा कि इस दवा को लेकर पहले से कई सारी रिपोर्ट्स और स्टडीज हैं। उन स्टडीज में पाया गया कि इसके मॉलिक्यूल्स ने कई तरह के वायरसों की बढ़त रोकी। ये स्टडीज 1959 से लेकर 2018-19 के बीच की थीं। अब हमारे सामने कोरोना वायरस था, जिस पर इसके असर की स्टडी करनी थी। उसके लिए उनके डॉ. अनंत सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायॉलजी, हैदराबाद गए, जहां कोरोना के कल्चर की स्टडी होती है। उन्होंने बताया कि हमारे चेयरमैन डॉ. जी सतीश रेड्डी का कहना था कि अगर इस दवा में दम है तो हमें काम जरूर शुरू कर देना चाहिए। काम शुरू किया तो एक्सपेरिमेंट में ये बात सामने आई कि कोरोना वायरस जब सेल्स में इन्फेक्ट करता है, तो इस दवा को देने से इसकी ग्रोथ रुक जाती है। मगर सार्स कोविड वायरस पर एक्सपेरिमेंट करना आसान नहीं है, तो बार-बार ये एक्सपेरिमेंट्स किए गए। जब नतीजे पॉजिटिव आने लगे, तो हमने ड्रग कंट्रोलर से आग्रह किया कि हमें क्लिनिकल ट्रायल की मंजूरी दी जाए। हमने जो क्लिनिकल ट्रायल किए, उनमें सभी पेशेंट अस्पताल में ऑक्सिजन सपोर्ट पर थे।

कैंसर के इलाज के लिए बन रही थी यह दवा
DRDO इस दवा को कैंसर के इलाज के लिए तैयार कर रहा था। इसके इस गुण के चलते केवल कैंसर-ग्रस्त कोशिकाओं को मारने की सोच से यह दवा तैयार की जा रही थी। इस दवा का इस्तेमाल कैंसर-ग्रस्त कोशिकाओं को सटीक कीमोथेरेपी देने के लिए भी इस्तेमाल करने की तैयारी है।

यह भी जानिए इस दवा के बारे में
इस दवा को डीआरडीओ की प्रतिष्ठित प्रयोगशाला नामिकीय औषिध तथा संबद्ध विज्ञान संस्थान (आईएनएमएएस) ने हैदराबाद के डॉ.रेड्डी लेबोरेटरी के साथ मिलकर विकसित किया है। पिछले साल शुरुआत में कोरोना महामारी शुरू होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से तैयारियां  करने का आह्वान किया गया, जिसके बाद डीआरडीओ ने इस दवा पर काम शुरू किया। इस दवा से कीमती जिंदगियों के बचने की उम्मीद है क्योंकि यह दवा संक्रमित कोशिकाओं पर काम करती है। यह कोविड-19 मरीजों के अस्पताल में भर्ती रहने की अवधि भी कम करती है।’

सामान्य अणु और ग्लूकोज के अनुरूप होने की वजह से इसे भारी मात्रा में देश में ही तैयार व उपलब्ध कराया जा सकता है।’ सहायक पद्धति वह इलाज है जिसका इस्तेमाल प्राथमिक इलाज में मदद करने के लिए किया जाता है। रक्षा मंत्रालय ने कहा, ‘डीआरडीओ की 2-डीजी दवा वायरस से संक्रमित कोशिका में जमा हो जाती है और वायरस की वृद्धि को रोकती है। वायरस से संक्रमित कोशिका पर चुनिंदा तरीके से काम करना इस दवा को खास बनाता है।’ दवा के असर के बारे में मंत्रालय ने बताया कि जिन लक्षण वाले मरीजों का 2डीजी से इलाज किया गया वे मानक इलाज प्रक्रिया (एसओसी) से पहले ठीक हुए।

मंत्रालय ने कहा, ‘इस दवा से इलाज करने पर मरीजों के विभिन्न मापदंडों के समान होने में एसओसी के औसतन समय के मुकाबले 2.5 दिन कम समय लगा।’ 2डीजी से इलाज कराने वाले अधिकतर मरीज आरटी-पसीआर जांच में निगेटिव आए।’अच्छी बात यह है कि 2-डीजी दवा पाउडर के रूप में पैकेट में आती है और इसे पानी में घोल कर पीना होता है।




 

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