इस ब्रिटिश कालीन प्रथा पर अब रोक लगनी ही चाहिए

Red carpet

गिरिराज गुप्ता एडवोकेट


आजादी के सात दशक बाद भी अंग्रेजों के द्वारा उनके महिमा मंडन, शान शौकत  व जनता में डर बिठाने के लिए उनके स्वागत में लाल कालीन बिछाने की चालू की गई प्रथाओं को हम आज भी बड़े शान से ढो रहे हैं। क्योंकि आजादी के बाद जिन लोगों के हाथ में सत्ता आई उनको भी इसमें बड़े मजे आए और इस वजह से वह अपने को आमजन से अलग हटके महत्वपूर्ण व्यक्ति समझने लगे। इसी वजह से ऐसी परंपराएं अनवरत जारी हैं जिसमें व्यर्थ ही जनता का पैसा व पुलिस का श्रम जाया हो रहा है। और इसमें सभी माननीयों को मजे भी आ रहे हैं। इसी वजह से वह अपने आप को जमीन से 4 फीट ऊंचा उठा हुआ मानते हैं और बची खुची कमी उनके जी हुजूरिये उनके गले को मालाओं से लादकर तथा नेताजी जिंदाबाद जिंदाबाद का शोर शराबा करके उनकी शान शौकत और बढ़ा देते हैं।

जहां एक ओर दुनिया के बड़े से बड़े विकसित देशों में जनप्रतिनिधि तथा बड़े-बड़े ओहदेदार आम जनता जैसी जिंदगी जीते हैं, अपना स्वयं का काम खुद करते हैं। बहुत आसानी से बिना तामझाम के सार्वजनिक स्थानों पर आते-जाते हैं। परिवार के साथ खरीदारी करते हैं। उसके विपरीत हमारे देश में गांव के सरपंच व शहर के वार्ड पार्षद बनते ही लोगों के रहन-सह, हावभाव व बातचीत करने के तेवर ही बदल जाते हैं। और उनमें जनसेवक के स्थान पर जन शासक का भाव घर करने लगता है। इसमें उनके साथ-साथ जनता के द्वारा किया जाने वाला विशिष्ट व्यवहार भी दोषी है जिसमें वह हमारे बीच ही उठने-बैठने वाले व वहां गए सामान्य व्यक्ति को महत्वपूर्ण दर्जा देना चालू कर देते हैं।

व्यक्ति के पद का मान सम्मान करना एक अलग विषय है। वह होना ही चाहिए। परंतु उसके तौर तरीके ही बदल जाएं और वह धरातल से ऊपर उठकर चलने लगे, ऐसा व्यवहार करना भी अनुचित है। और यह सत्ता व प्रशासन का नशा तो लोगों में कुछ ज्यादा ही चढ़ता है।

(लेखक राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के राष्ट्रीय सह संयोजक हैं)




 

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