बाड़मेर
रिश्ते सिर्फ खून के नहीं होते, कुछ रिश्ते प्यार, सम्मान और समझ के धागों से भी बुने जाते हैं। ऐसा ही एक अनोखा आयोजन बाड़मेर (Barmer) में हुआ, जहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की ओर से सास-बहू सम्मेलन (Saas-Bahu Sammelan) का आयोजन किया गया। यह सम्मेलन सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि परिवारों को जोड़ने और टूटते रिश्तों को संवारने का एक प्रयास था।
रविवार की शाम, बाड़मेर के जांगिड़ समाज भवन में जब सास-बहू की जोड़ियां एक मंच पर आईं, तो यह दृश्य बेहद भावुक कर देने वाला था। हर चेहरे पर एक कहानी थी—कहीं अपनापन झलक रहा था, तो कहीं सालों की समझदारी। इस आयोजन का मकसद सिर्फ एक था—सास-बहू के रिश्ते को मां-बेटी की तरह मजबूत बनाना।

जब सास बनी बहू की मां
सम्मेलन में एक सास ने अपनी कहानी साझा करते हुए बताया कि जब उनकी बहू शादी के बाद घर आई, तब वह सिर्फ 12वीं पास थी। लेकिन उन्होंने उसे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया, नीट की तैयारी करवाई, और अब वह आगे की पढ़ाई कर रही है। उनकी आवाज़ में गर्व था, आँखों में आत्मीयता। उन्होंने कहा, “अगर हर सास अपनी बहू को बेटी की तरह समझे, तो घर में कभी कलह नहीं होगी, बल्कि प्यार और खुशहाली होगी।”
दूसरी ओर, एक बहू ने भावुक होकर कहा, “हर सास चाहती है कि उसकी बहू अच्छी हो, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि हर मां अपनी बेटी को अच्छे संस्कार दे।” उनके इस बयान ने रिश्तों की गहराई को बखूबी समझाया—एक सास अगर बहू को बेटी समझे, और बहू घर को अपना मान ले, तो कोई भी परिवार बिखर नहीं सकता।

संस्कारों की सीख और परिवार की मजबूती
संघ के वरिष्ठ प्रचारक नन्दलाल बाबा ने इस सम्मेलन में रिश्तों की अहमियत पर रोशनी डाली। उन्होंने कहा कि जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, लेकिन रिश्तों की मजबूती ही इन मुश्किलों को हल्का बना सकती है। उन्होंने भगवान राम और श्रीकृष्ण के जीवन से उदाहरण देते हुए कहा कि हर परिवार को प्रेम, त्याग और सहयोग की डोर से बंधे रहना चाहिए।
RSS के बाड़मेर विभाग संघचालक मनोहर लाल बंसल ने बताया कि इस तरह का आयोजन पहली बार हुआ है और इसकी जरूरत इसलिए महसूस हुई क्योंकि बदलती संस्कृति में परिवारों में दूरियाँ बढ़ रही हैं। उन्होंने कहा कि संघ प्रमुख मोहन भागवत भी ‘कुटुंब प्रबोधन’ विषय पर विशेष बल दे रहे हैं, ताकि पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव से हमारे पारिवारिक मूल्य कमजोर न हों।
सम्मान और समर्पण का अनूठा उदाहरण
इस सम्मेलन में सास-बहू की जोड़ियों को शॉल और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। यह सिर्फ एक सम्मान नहीं था, बल्कि एक नए विश्वास का प्रतीक था—एक ऐसा रिश्ता, जो जन्म से नहीं, बल्कि प्रेम और परस्पर समझ से जुड़ा होता है।
यह सम्मेलन यह साबित करता है कि यदि परिवारों में संस्कार और संवाद कायम रहे, तो सास-बहू का रिश्ता भी मां-बेटी जैसा बन सकता है। बाड़मेर का यह आयोजन एक मिसाल बन गया, जिससे सीख लेकर कई घरों में खुशहाली आ सकती है।
रिश्ते सहेजने के लिए प्यार, समझ और सम्मान ही सबसे बड़ा मंत्र है—यही इस सम्मेलन की सबसे बड़ी सीख थी।
नई हवा की खबरें अपने मोबाइल पर नियमित और डायरेक्ट प्राप्त करने के लिए व्हाट्सएप नंबर 9460426838 सेव करें और ‘Hi’ और अपना नाम, स्टेट और सिटी लिखकर मैसेज करें। आप अपनी खबर या रचना भी इस नंबर पर भेज सकते हैं।
आगरा में भांजे-मामी के इश्क में कत्ल, गुस्साए भाई ने बहन का गला रेता, लाश बोरे में फेंकी
हिमाचल प्रदेश में इन सरकारी कर्मचारियों पर गिरेगी गाज, अब किया ये गुनाह तो खत्म हो जाएगी उनकी नौकरी
हाई कोर्ट में सिविल जज के पदों पर भर्ती का जारी हुआ नोटिफिकेशन, इतने पदों पर होगी भर्ती
सरकारी कर्मचारियों को मिल सकते हैं 5 प्रमोशन! 8वें वेतन आयोग से नई उम्मीदें
जज बनने का सपना चकनाचूर! 366 उम्मीदवारों ने दी परीक्षा, एक भी नहीं हुआ पास
नई हवा’ की खबरें नियमित और अपने मोबाइल पर डायरेक्ट प्राप्त करने के लिए व्हाट्सएप नंबर 9460426838 सेव करें और ‘Hi’ और अपना नाम, स्टेट और सिटी लिखकर मैसेज करें