मदर्स डे
डॉ. विनीता राठौड़
एक नहीं वरन् दो माँ हैं मेरी
हीरे सी चमकती किस्मत है मेरी
पहली माँ ने जन्म दिया
पाल पोस कर बड़ा किया
धैर्य, संघर्ष और सहन की शक्ति
माँ से हमको सहज ही मिलती
मेरी हर सफलता का श्रेय
है मेरी माँ को ही देय
माँ की महिमा का कोई ओर न छोर
सब रिश्तों से पक्की है इसकी डोर
माँ के चंद्रबिंदु का चंद्र है उनकी गोद
उसमें समायी बिंदी मैं बेटी अबोध।
दूसरी माँ है मेरी जायी प्यारी बिटिया
मातृत्व का जिसने लिखा पन्ना दूजा
कस कर जब-जब उसने गले लगाया
भावनाओं के भंवर जाल से मुझे उबारा
अंगुली पकड़ चलना जैसे मैंने उसे सिखाया
हाथ थाम कर उसने मुझे अब बहुत घुमाया
हंसी ठिठोली लगभग मैं भूल चुकी थी
होंठों पर खिलखिलाहट फिर से ला दी
अब नहीं तो फिर कब करोगी?
जिद करके बहुत कुछ नया कराया
जीवन का सफर पहली माँ ने बहुत संवारा
दूजी ने जीने का हर नया अंदाज सिखाया
एक नहीं वरन् दो माँ हैं मेरी
हीरे सी दमकती किस्मत है मेरी।
(लेखिका राजकीय महाविद्यालय, नाथद्वारा, राजसमन्द की प्राणीशास्त्र की सेवानिवृत्त सह आचार्य हैं)
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