जोधपुर
जोधपुर (Jodhpur) के मारवाड़ इंटरनेशनल सेंटर ऑडिटोरियम में आयोजित अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षणिक महासंघ, राजस्थान (ABRSM) के 63वें वार्षिक अधिवेशन का शुभारंभ शुक्रवार को उपमुख्यमंत्री डॉ. प्रेमचंद बैरवा ने किया। उन्होंने शिक्षकों से राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को प्रभावी रूप से लागू करने का आह्वान किया और इसे “इक्कीसवीं सदी के नए भारत की नींव” बताया।
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डॉ. बैरवा ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के “विकसित भारत 2047” और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के “विकसित राजस्थान” के विजन को साकार करने की दिशा में राज्य सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि शिक्षकों की भूमिका विद्यार्थियों को अच्छे नागरिक और पेशेवर बनाने में महत्वपूर्ण है।
मुख्य बिंदु
1. शिक्षा नीति और सुधार
- डॉ. बैरवा ने उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की जिम्मेदारी पर जोर दिया और राज्य सरकार द्वारा युवाओं को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करने के लिए 28,000 करोड़ रुपये के एमओयू की जानकारी साझा की।
- अजमेर, भरतपुर और बीकानेर के इंजीनियरिंग कॉलेज को राजस्थान प्रौद्योगिकी संस्थान में अपग्रेड करने के लिए 300 करोड़ रुपये का बजट।
- शिक्षक भर्ती प्रक्रिया तेज: कॉलेज शिक्षा विभाग में 1936 सहायक आचार्य, 575 पुस्तकालयाध्यक्ष और शारीरिक शिक्षकों के 247 पदों पर भर्ती प्रक्रिया जारी।
2. कृषि और शिक्षा: अर्थव्यवस्था की रीढ़
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री भागीरथ चौधरी ने कहा कि शिक्षा और कृषि हमारी संस्कृति और अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।
- किसानों को उनकी मेहनत का सही मूल्य मिले, इसके लिए ऑर्गेनिक और प्राकृतिक खेती को अपनाने की अपील।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कृषि और शिक्षा में हो रहे सुधारों की सराहना की।
3. सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर चर्चा
डॉ. बैरवा और चौधरी ने गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर और डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के उद्धरणों का उल्लेख कर शिक्षा और संस्कृति के महत्व को रेखांकित किया
इस अधिवेशन में प्रो. सुशील कुमार बिस्सु, प्रो. नारायण लाल गुप्ता, प्रो. रिछपाल सिंह और प्रो. दीपक कुमार शर्मा भी मौजूद रहे। इनकी उपस्थिति ने अधिवेशन को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
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कार्यक्रम का उद्देश्य
भारतीय राष्ट्रीय शैक्षणिक महासंघ ने इस अधिवेशन के माध्यम से यह संदेश दिया कि:
- शिक्षा, संस्कृति और आधुनिक तकनीकी का समन्वय आज के समय की जरूरत है।
- शिक्षकों को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना होगा।
अंतिम संदेश
“शिक्षा और संस्कृति के बिना समाज अधूरा है। शिक्षक ही वह स्तंभ हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को नैतिकता और ज्ञान का मार्ग दिखाते हैं। यह अधिवेशन न केवल शिक्षकों के लिए प्रेरणा है, बल्कि हमारे समाज को बेहतर दिशा में ले जाने का संकल्प भी।”
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