रिटायरमेंट से पहले छक्कों की बरसात!| सुप्रीम कोर्ट की दो-टूक टिप्पणी—जज आख़िरी दिनों में क्रिकेट खेलने न उतरें

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने रिटायरमेंट से पहले जजों (Judges) द्वारा दिए जा रहे विवादित आदेशों पर तीखी टिप्पणी की। सीजेआई सूर्यकांत ने कहा—कुछ जज आख़िरी ओवर में बल्लेबाज़ की तरह छक्के मारने लगते हैं।

नई दिल्ली 

सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक व्यवस्था के भीतर पनप रही एक असहज और चौंकाने वाली प्रवृत्ति पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि कुछ जज रिटायरमेंट से ठीक पहले ऐसे आदेश पारित करते हैं, जैसे क्रिकेट मैच के आख़िरी ओवर में बल्लेबाज़ छक्के मारने लगता है। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि बाहरी हितों को साधने के लिए इस तरह के आदेशों पर उसे गहरी आपत्ति है।

यह टिप्पणी उस याचिका की सुनवाई के दौरान आई, जो एक जिला जज ने दायर की थी। उन्हें रिटायरमेंट से महज़ 10 दिन पहले दो आदेश पारित करने के कारण निलंबित कर दिया गया था।

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मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत, जस्टिस जॉयमाल्या बागची और जस्टिस विपुल पंचोली की पीठ ने कहा—“याचिकाकर्ता ने रिटायरमेंट से ठीक पहले छक्के लगाने शुरू कर दिए। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण प्रवृत्ति है। इस पर विस्तार से चर्चा नहीं करना चाहता।”

मामला मध्य प्रदेश के एक जिला जज से जुड़ा है, जिनका रिटायरमेंट 30 नवंबर को तय था। लेकिन उनके द्वारा पारित दो विवादित आदेशों के चलते उन्हें 19 नवंबर को ही निलंबित कर दिया गया। दिलचस्प मोड़ तब आया, जब 20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को जजों की रिटायरमेंट उम्र 62 साल करने का निर्देश दे दिया। यानी संबंधित जज का कार्यकाल एक साल और बढ़ गया।

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इस पर सीजेआई सूर्यकांत ने अहम टिप्पणी की— “जब न्यायिक अधिकारी ने वह आदेश पारित किया, तब उसे यह जानकारी नहीं थी कि उसका कार्यकाल आगे बढ़ने वाला है।”

जज की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट विपिन सांघी ने कोर्ट को बताया कि अधिकारी का सर्विस रिकॉर्ड पूरी तरह बेदाग है और उन्हें साल दर साल गोपनीय रिपोर्टों में अच्छे अंक मिले हैं। उन्होंने निलंबन की वैधता पर सवाल उठाते हुए कहा कि सिर्फ न्यायिक आदेश पारित करने के आधार पर किसी जज को अनुशासनात्मक कार्रवाई के दायरे में नहीं लाया जा सकता।

विपिन सांघी ने सवाल उठाया— “जब किसी आदेश के खिलाफ अपील या उच्च न्यायपालिका द्वारा सुधार का विकल्प मौजूद है, तो केवल आदेश देने पर निलंबन कैसे उचित ठहराया जा सकता है?”

सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क से सहमति जताई और स्पष्ट किया कि सामान्य तौर पर गलत न्यायिक आदेशों के लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकती। हालांकि सीजेआई सूर्यकांत ने एक तीखा सवाल भी छोड़ा— “अगर आदेश स्पष्ट रूप से बेईमानी से भरे हों, तो क्या होगा?”

कोर्ट ने यह भी पूछा कि जज ने इस फैसले को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में चुनौती क्यों नहीं दी। इस पर वकील ने दलील दी कि पूरा हाईकोर्ट ही फैसले से सहमत था, इसलिए सीधे सुप्रीम कोर्ट आना उचित समझा गया।

इस पर शीर्ष अदालत ने कहा कि कई मामलों में हाईकोर्ट्स के सामूहिक निर्णय भी रद्द हुए हैं। अंततः सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई से इनकार करते हुए जज को हाईकोर्ट जाने की सलाह दी।

इसके साथ ही अदालत ने निलंबन से जुड़ी जानकारी आरटीआई के जरिए मांगने पर भी नाराज़गी जताई। कोर्ट ने कहा कि किसी वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी से जानकारी लेने के लिए आरटीआई का सहारा लेना अपेक्षित नहीं है—वे एक औपचारिक अभ्यावेदन दे सकते थे।

यह टिप्पणी अब न्यायिक गलियारों में गूंज रही है—
क्या रिटायरमेंट से पहले फैसलों की टाइमिंग भी अब सवालों के घेरे में है?

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