जयपुर
राजस्थान के अनुदानित शिक्षण संस्थानों से 2011 में राजकीय सेवा में समायोजित हुए शिक्षाकर्मी अब अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में “पुरानी पेंशन” से वंचित हैं। 63 से 75 वर्ष की उम्र के ये सेवानिवृत्त गुरुजन शनिवार को जयपुर के नेहरू बाल उद्यान स्थित शिव मंदिर प्रांगण में “करुणा बंधन” कार्यक्रम के तहत एक पैर पर खड़े होकर अपनी बेबसी का इज़हार कर रहे थे। उनका कहना था कि वे अब आर्थिक दिव्यांग हो चुके हैं और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से उम्मीद लगाए बैठे हैं कि उनकी पीड़ा पर संवेदनशील निर्णय लिया जाए।
राजस्थान सेवानिवृत्त समायोजित शिक्षक कर्मचारी मंच के मुख्य संचालक विजय उपाध्याय ने इस अवसर पर कहा कि यह बेहद अफसोस की बात है कि 35-40 वर्षों तक शिक्षा जगत को अपना जीवन समर्पित करने वाले शिक्षकों को बुढ़ापे में “लालफीताशाही” के कारण पेंशन का अधिकार नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने बताया कि “पेंशन की टेंशन” में अब तक 300 से अधिक शिक्षाकर्मी असमय देहांत को प्राप्त हो चुके हैं, जबकि सैकड़ों मानसिक अवसाद और गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं।
संचालक डी.पी. ओझा ने कहा कि मंच ने मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, जनप्रतिनिधियों, विधायकों, मुख्य सचिव, वित्त सचिव और पेंशन निदेशक तक अपनी व्यथा पहुंचाई है और सभी तथ्य पुरानी पेंशन के पक्ष में प्रस्तुत किए हैं। सभा में सर्वसम्मति से तय किया गया कि जब तक अनुदानित संस्था की नियुक्ति तिथि से पुरानी पेंशन का हक नहीं मिलता, तब तक संघर्ष जारी रहेगा।
“करुणा बंधन” कार्यक्रम को अमलीजामा पहनाने के लिए मंच के कई वरिष्ठ शिक्षाकर्मी और महिला गुरुजन मौजूद रहे, जिनमें मोहनलाल शर्मा, पार्वती सेन, हरि सिंह यादव, राकेश पाठक, सविता शर्मा, मृदुल जोशी, सरनजीत, सुखमल जैन, कौशल्या अग्रवाल, रश्मि शर्मा, नवरत्न पारीक, संतोष शर्मा, सावित्री देवी, दर्शनाभाटिया, राजश्री तिवारी, सरोज उपाध्यक्ष, मंजू गुप्ता, उषा सचदेव, कृष्ण माथुर, कमला पारीक, कमलेश चतुर्वेदी, मीरा सक्सेना, राधा पारीक, महावीर प्रसाद माली, अमरेश कुमार सिंह, मोहन सिंह पूनिया, चंद्रप्रभा, सुधा जैन, मनोज भटनागर, गिर्राज सिंह, अनिल कुमार और उषा भार्गव शामिल थे।
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