बैंक के 4,037 करोड़ डकार गए कम्पनी और उसके निदेशक, CBI ने दर्ज की FIR, देशभर में पड़े छापे

नई दिल्ली 

 ‘कॉर्पोरेट पावर लिमिटेड’ नामक कंपनी और उसके निदेशक बैंकों से लिए 4,037 करोड़ रुपए डकार गए। कंपनी ने 2009 से 2013 के बीच हेरफेर करके परियोजना लागत संबंधी कागज जमा किए थे और बैंक से धन प्राप्त किया था।  इस मामले को लेकर सीबीआई ने FIR दर्ज कर देशभर में आधा दर्जन से ज्यादा शहरों में छापे मारे हैं। अधिकारियों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।

CBI अधिकारियों के अनुसार एजेंसी ने बृहस्पतिवार को नागपुर, मुंबई, रांची, कोलकाता, दुर्गापुर, गाजियाबाद और विशाखापत्तनम समेत अनेक शहरों में 16 स्थानों पर छापे मारे हैं। अधिकारियों बताया कि यूनियन बैंक ऑफ इंडिया द्वारा दायर एक शिकायत के अनुसार कोलकाता से संचालित कंपनी ने कथित तौर पर 20 बैंकों के एक संघ के साथ 4037.87 करोड़ रुपए की कथित धोखाधड़ी की थी। उन्होंने कहा कि अभिजीत समूह की कई कंपनियां और इसके कुछ निदेशक कोयला घोटाले के मामलों में पहले से ही सीबीआई जांच का सामना कर रहे हैं और उनके खिलाफ आरोप पत्र भी दायर किया गया है।

सीबीआई के एक प्रवक्ता ने बयान में कहा, ‘‘आरोप लगाया गया कि कथित कर्जदार कंपनी ने 2009 से 2013 के बीच हेरफेर करके परियोजना लागत संबंधी कागज जमा किये थे और बैंक से धन प्राप्त किया था।’’ सीबीआई ने प्राथमिकी में कंपनी और मनोज जायसवाल, अभिषेक जायसवाल, अभिजीत जायसवाल, राजीव कुमार, बिशाल जायसवाल, मुन्ना कुमार जायसवाल, पी.एन. कृष्णन, राजीव गोयल, अरुण कुमार श्रीवास्तव, एस एन गायकवाड़, प्रेम प्रकाश शर्मा और अरुण गुप्ता समेत उसके प्रवर्तकों तथा निदेशकों को आरोपियों के रूप में नामजद किया है।

बयान के अनुसार, यूनियन बैंक ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया है कि आरोपी व्यक्तियों ने अपने लिए गलत लाभ कमाने के वास्ते ‘‘आपराधिक इरादे’’ से बैंक के साथ धोखाधड़ी की। अधिकारियों ने बताया कि झारखंड में बिजली संयंत्र स्थापित करने के लिए अभिजीत समूह की ओर से प्रवर्तित कोलकाता स्थित विशेष प्रयोजन इकाई कॉरपोरेट पावर लिमिटेड ने कथित तौर पर 20 बैंकों के समूह से जुड़े 4037.87 करोड़ रुपये की बैंक धोखाधड़ी की।

कंपनी पावर लिमिटेड ने झारखंड के लातेहार जिले में 2,900 करोड़ रुपये की लागत से चार गुणा 135 मेगावाट क्षमता का 540 मेगावाट बिजली संयंत्र लगाने की योजना बनाई थी। एजेंसी की ओर से यह भी आरोप लगाया गया कि 2009 से 2013 के बीच कर्ज लेने वालों ने परियोजना लागत में हेरफेर किया और बैंक कोष का अन्यत्र इस्तेमाल किया।

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