कर के प्रकृति से खिलवाड़
प्राकृतिक संतुलन दिया बिगाड़
जन-जीवन हो गया उजाड़
कैसे पुनर्स्थापित होगा
जीवन जीने का जुगाड़
अधर्म है जाना प्रकृति के विपरीत
आवश्यक है पालना इसकी हर रीत
अन्यथा होंगे सभी प्रभावित
शीघ्र ही समझें तो ही उचित
इसी में है सबका हित निहित
करें प्रकृति से फिर से प्रीत
अब न होने दें इसका और अहित।