कहीं लुप्त न हो जाए हमारा बरगद

योगेंद्र गुप्ता  

धार्मिक आस्थाओं और औषधीय गुणों से परिपूर्ण ‘बरगद’ अब लुप्त होने के कगार पर है। अनेक कस्बों और गांवों में किसी समय इस वृक्ष की काफी तादाद थी। लेकिन आज यह इक्का-दुक्का ही नजर आते है। कई इलाके तो ऐसे हैं जहां इनका अस्तित्व पूरी तरह समाप्त हो गया है। भारतीय बरगद की शाखाएं और जड़ें एक बड़े हिस्‍से में एक नए पेड़ के समान लगने लगती हैं। जड़ों से और अधिक तने और शाखाएं बनती हैं। इस विशेषता और लंबे जीवन के कारण इस पेड़ को अनश्‍वर माना जाता है और यह भारत के इतिहास और लोक कथाओं का एक अविभाज्‍य अंग है। बरगद के पेड़ को ग्रामीण जीवन का केंद्र बिन्‍दु माना गया है और गांव की पंचायत इसी पेड़ की छाया में होती रही हैं। पर अब इस पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। पौधरोपण अभियानों के दौरान अलबत्ता इसकी पौध नजर नहीं आती और आ भी जाए तो लोगों की इसे रोपने में दिलचस्पी घट गई है।

जुड़ी हैं कई धार्मिक मान्यताएं
इससे कई धार्मिक मान्यताएं भी जुड़ी हैं। कई लोकगीत आदि भी इस वृक्ष को लेकर लिखे गए हैं। भारतीय संस्कृति में बरगद के वृक्ष को अत्यन्त पवित्र व सच्चा फलदायी माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बरगद भगवान विष्णु की उपस्थिति का द्योतक है।

विशेषज्ञों को चिन्ता इस बात की है कि आज पौधों के लुप्त होने और नए पौधे लगाने की बात तो बहुत की जाती है, पर पुराने पौधों के संरक्षण पर कोई जोर नहीं देता, जबकि हमारे पूर्वजों द्वारा संरक्षण के सिद्धान्त का पालन करने के कारण ही बरगद के वृक्ष की पूजा की जाती थी। प्रत्येक वर्ष वट अमावस्या के दिन सुहागिन महिलाओं द्वारा इस वृक्ष की पूजा की जाती है। इस वृक्ष में जीवकीय शक्ति, दीर्घायु, स्वस्थ्य और बड़ा परिवार देने के गुण होते हैं।

पुराणों में ऐसा माना गया है कि इस वृक्ष का प्रभाव क्षेत्र मीलों तक होता है और इस वृक्ष के जप या अन्य कोई भी धार्मिक कार्य करने पर हजारों गुना फल मिलता है। इतने गुणों से युक्त होने के बाद भी बरगद के संरक्षण पर कोई गौर नहीं किया जा रहा। तेजी से बढ़ रहे औद्योगिकीकरण व शहरीकरण और लोगों के अपने धार्मिक, नैतिक व परम्परागत मूल्यों से विमुख होने के कारण इस वट वृक्ष के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। कोई सार्थक पहल नहीं की गई तो यह वृक्ष भी जल्दी ही लुप्त हो जाएगा।

कभी सीमा निर्धारण की थी पहचान
धीमी गति से बढ़ने वाला यह छायादार वृक्ष कभी सीमा निर्धारण करने के काम आता था। इसी से यह पता चलता था कि किस गांव या प्रदेश की सीमा कहां से प्रारम्भ होकर कहां समाप्त हुई है। साथ में इसका किसी भी स्थान पर अंकुरित होना मीठे पानी की उपस्थिति का संकेत देता था और इसी संकेत पर ग्रामीण कुएं खोदते थे। पुराने लोग बताते हैं कि ग्रामीण इलाकों में बरगद के काफी वृक्ष हुआ करते थे। लेकिन अब यह वृक्ष इक्का दुक्का ही नजर आते हैं। जनसंख्या के बढ़ते दबाब और शहरीकरण के कारण खेतिहर भूमि का आवासीय भूमि में परिवर्तन और हमारी स्वार्थी प्रवृत्ति के कारण ही आज बरगद की यह स्थिति हुई है।

कई जीव-जन्तुओं की प्रजातियों के अस्तित्व पर मंडराया संकट
विशेषज्ञों का कहना है कि बरगद का संरक्षण न कर पाने के कारण हम ऐसे जीव-जन्तुओं को भी लुप्त होने के कगार पर पहुंचा रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार बरगद का पेड़ स्वयं में एक पूर्ण पारिस्थितिक तंत्र है। प्राणीशास्त्र के प्रोफेसर और भरतपुर में राजकीय आरडी गर्ल्स कॉलेज के प्राचार्य डॉ. एम. एम. त्रिगुणायत के अनुसार बढ़ते शहरीकरण के कारण ऐसे वृक्षों की कटाई से इनके परागकण को इधर-उधर बिखेरने वाला कीट ‘वेस्प’ भी लुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है। यह कीट बहुत ही छोटा और कुछ किलोमीटर तक उड़ सकने में सक्षम होता है। साथ ही इसे जीवित रहने के लिए बरगद के फल ‘साइकोबियम’ की जरूरत होती है। यदि यह फल इसे तीन-चार दिन के अन्दर नहीं मिलता तो यह कीट नष्ट हो जाता है। 

बरगद के एक वृक्ष के नष्ट होने का मतलब खाद्य श्रृंखला का टूटना
अत्यन्त विशाल काया वाला यह बरगद छोटे से जीव जन्तु से लेकर बड़े पक्षियों को भोजन के साथ आवास प्रदान करके स्वयं में एक पूर्ण पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण करता है। बरगद के एक वृक्ष के नष्ट होने का मतलब है पारिस्थितिक तंत्र की एक इकाई का पूरा खत्म होना और एक इकाई के टूटने से खाद्य श्रृंखला की सारी कड़ियां स्वतः ही टूटती चली जाती हैं।

बरगद के नष्ट होने से गिद्धों को नुकसान पहुंच रहा है। बरगद गिद्धों का पसंदीदा आवास है। विशेषज्ञों का यह मानना है कि बरगद के  एक वृक्ष को नष्ट करके ही हम अनेक जीव जन्तुओं के आवास को प्रभावित करते हैं। लेकिन यदि इस वृक्ष को लुप्त होने से बचाने के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठाए गए तो उन जीव जन्तुओं की प्रजातियों के अस्तित्व को भी गहरा संकट खड़ा हो सकता है जिनका जीवन बरगद के पारिस्थितिक तंत्र पर ही पूरी तरह निर्भर है।

भरपूर ऑक्सीजन का स्त्रोत, कई रोगों में लाभदायक 
बरगद का वृक्ष काफी विशाल और सघनता लिए होने के कारण यह काफी तादाद में ऑक्सीजन छोड़कर कार्बनडाइ ऑक्साइड को ग्रहण कर पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखने में भी योगदान देता है। इसकी छाल से यकृत, प्लीहा, किडनी आदि रोगों के लिए दवाईयां बनाई जाती हैं। पत्तल व दोने बनाए जाते हैं, अब इनका स्थान प्लास्टिक की प्लेट व कटोरी ने ले लिया। है।

अब बरगद के नए पौधे नहीं लगाए जा रहे। पुराने वृक्षों को भी रासायनिक पदार्थों से युक्त प्रदूषित पानी मिल रहा है, जबकि यह वृक्ष मीठे पानी में होता है। ऐसी स्थिति में इसका नष्ट होना स्वाभाविक है। वर्षा की कमी से पानी से भरी रहने वाली डिग्गियां सूखती जा रही हैं। अब पानी के प्राकृतिक रास्तों पर भी लोगों द्वारा अतिक्रमण करने और बहते पानी को बांध बनाकर रोक देने से वृक्षों को प्राकृतिक रूप से मिलने वाला जल बन्द हो गया है। जबकि बरगद को वृद्धि के लिए पानी की अधिक आवश्यकता होती है। नतीजतन यह वृक्ष मुरझा कर नष्ट हो रहे हैं।

पक्षियों को अपने पास बुलाना चाहते हैं तो  बरगद जरूर लगाएं 
बरगद का वृक्ष अत्यन्त घना और लम्बा होने के कारण यह छोटे जीव जन्तु से लेकर बड़े पक्षियों का पसंदीदा आवास है। यह वृक्ष उन्हें अत्यन्त सुरक्षा का अहसास तो कराता ही है, साथ ही इसके लम्बे होने के कारण पक्षियों को अपना शिकार करने में भी सहूलियत रहती हैं। सभी प्रकार की छिपकलियों एवं इसके तने के सुराख उल्लू का आवास है। इस वृक्ष पर लगने वाला फल छोटे कीट व पक्षियों का मुख्य भोजन है। बुलबुल, बाखैट, मैना आदि पक्षियों को जब सर्दियों में कहीं भी खाने को फल नहीं मिलता, तब वह इसके फल का सेवन करके अपने जीवन का निर्वाह करते हैं।

इस प्रकार इस वृक्ष पर प्राथमिक उपभोक्ता कीट, गिलहरी, बुलबुल आदि से लेकर सर्वोच्च उपभोक्ता चील, बाज, उल्लू आदि के अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध होने के कारण ही इस वृक्ष पर एक से अधिक खाद्य श्रृंखला आपस में गुथी होकर खाद्य-जाल का निर्माण करती हैं। इस प्रकार यह पर्यावरण तंत्र का निर्माण करता हैं। इसी महत्वपूर्ण भूमिका के कारण ही बरगद मशहूर पक्षीविद् डा. सालिम अली का पसंदीदा वृक्ष था। उनका कहना था कि यदि कोई पक्षियों को अपने पास बुलाना चाहता है तो वह बरगद का पेड़ जरूर लगाएं।

अधिक मुनाफा देने वाले पौधों को ज्यादा प्राथमिकता
पेड़ों से सरोकार खत्म होने और कम समय में तैयार होकर अधिक मुनाफा देने वाले पेड़ों को ही उगाने को प्राथमिकता अथवा पसंद करने की प्रवृत्ति ने भी बरगद के अस्तित्व को कड़ी चुनौती दी है। कम समय में अधिक मुनाफा चाहने वालों का इसके पीछे तर्क है कि बरगद का पौधा 20 से 25 साल में वृक्ष का रूप धारण करता है और इसके विकास में इससे भी अधिक समय लगने से इसका फायदा उस पीढ़ी को न मिलकर अगली पीढ़ी को मिलता है।

सभी राज्यों में वन विभाग बने हुए हैं। पर किसी ने भी  आज तक इस पेड़ को लुप्त होने से बचाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। उसकी नर्सरियों की हालत ये  है कि वहां पर बरगद का एक पौधा तक नहीं मिलेगा। जबकि अन्य पौधे हजारों की तादाद में मिल जाएंगे। इसी रवैए के कारण ही लोगों में स्थानीय वृक्ष बरगद, पीपल आदि की तरफ रुझान समाप्त होता जा रहा है और उनका बाहर के ऐसे पौधों की तरफ आकर्षण बढ़ रहा है जो कि कम समय में अधिक मुनाफा देने वाले हों।




 

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