मुम्बई
आज हम कहानी बता रहे हैं ऐसे समाज की जो देश में है मुट्ठीभर, पर उसने बाकी समाज के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया है और हमने इस कहानी को लिखने का सहारा लिया है महाराष्ट्र के सामाजिक कार्यकर्ता और इंजीनियर मिलिंद मराठे के सोशल मीडिया वॉल का। दरअसल यह कहानी दुनिया के वैक्सीन किंग माने जाने वाले और पुणे स्थित सीरम इन्स्टिट्यूट ऑफ इंडिया के मालिक अदार पूनावाला से जुड़ी हुई है। अदार पूनावाला ने कोरोना वायरस से बचाव के लिए ‘कोविशील्ड’ वैक्सीन बनाई है।
अदार पूनावाला पारसी समाज से आते हैं और पारसी समाज की संख्या भारत में बहुत कम है। और यह स्वाभाविक भी है कि जब किसी समाज का व्यक्ति कोई प्रतिष्ठा प्राप्त कर लेता है तो वह भी सोचता है कि अपने समाज को भी मैं कुछ दूं। कुछ इसी सोच के साथ उन्होंने अपने पारसी समाज के सामने कोरोना वैक्सीन के 60 हजार डोज अपनी तरफ से प्रदान करने की पेशकश की। आपको यहां बता दें कि अदार पूनावाला अपनी पुणे स्थित सीरम इन्स्टिट्यूट ऑफ इंडिया में 60 हजार डोज आधे दिन में निर्मित करते हैं। इसके बाद भी अपने समाज के प्रति कुछ जिम्मेदारी का भाव प्रदर्शित करते हुए पारसी समाज को 60 हजार डोज प्रदान करने की पेशकश कर दी। पर पारसी समाज ने इससे भी आगे बढ़ कर अपनी राष्ट्रीय भावना का अनुकरणीय उदहारण प्रस्तुत किया। वैक्सीन किंग अदार पूनावाला को उम्मीद थी कि जिस पारसी समाज से वे आते हैं, वह समाज कोरोना वैक्सीन की 60 हजार डोज की पेशकश को सहर्ष स्वीकार कर लेगा। पर ऐसा हो नहीं सका। बॉम्बे पारसी पंचायत ने अदार पूनावाला की भावनाओं की पूरी कद्र की और राष्ट्र प्रथम का भाव प्रदर्शित करते हुए अदार पूनावाला के इस प्रस्ताव को बड़ी विनम्रता से यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि भारत सरकार के नियमों के अनुसार हम हमारा टर्न आने का इंतजार करेंगे। वे स्वयं को सर्व प्रथम भारत माता के पुत्र मानते हैं। वे अत्यंत अल्पसंख्यक हैं, शांत एवं समझदार और देश सर्वप्रथम की भावना से चलते हैं। इस पर देश के जाने माने उद्योगपति रतन टाटा ने, टिप्पणी की ‘हम प्रथम भारतीय हैं, अंत में पारसी हैं।’ आपको बता दें रतन टाटा भी पारसी समाज से आते हैं।
यहां आपको यह भी बता दें कि कोरोना वैक्सीन की वाइल (vial) बनाने से लेकर दूरसुदूर तक ट्रक और विमान सुविधा तक सब पारसी समाज के प्रतिष्ठित लोगों ने मुहैया कराई है। इसके बाद भी समाज ने टीका मुफ्त लेने से यह कहते मना कर दिया कि हम पहले भारतीय हैं। और भारत सरकार के नियमों के अनुसार हम हमारा टर्न आने का इंतजार करेंगे। चूंकि हमारे समाज के व्यक्ति ने यह वैक्सीन बनाई तो इसका मतलब ये नहीं कि हमारे समाज को खास तवज्जो दी जाए।
सच में ऐसी राष्ट्रीय वृत्ति हम सभी में आनी ही चाहिए…