आत्मनिर्भर बनी नवीं पास ब्रजेश अब दूसरी महिलाओं को दिखा रही आर्थिक स्वावलंबी बनने की राह

नई दिशा 

राजेश खंडेलवाल, स्वतंत्र पत्रकार, भरतपुर 


‘मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि कभी खुद कमा भी पाऊंगी। मैं मात्र कक्षा 9 तक पढ़ी हूं। राजस्थान ग्रामीण आजीविका विकास परिषद (राजीविका मिशन) से जुडऩे के बाद तो मेरा जीवन ही बदल गया। आज मेरा खुद का घर है और दोनों पुत्रों को भी पढ़ा रही हूं।’ काम करने का मौका मिलने से खुश भरतपुर जिले के खानवा गांव (रूपवास) की ग्रामीण महिला ब्रजेश भार्गव ने बताया।

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गहरी सांस लेते हुए उसने कहा, शुरूआत मैंने अकेले की फिर महिलाएं जुड़ती चली गई और कारवां बन गया। आज वह खुद अच्छा कमा रही है और अपने गांव के अलावा गांव ओडेलागद्दी व  आसपास के दो-तीन की नगला (ढाणी) की डेढ़ सौ से 200 महिलाओं को भी सशक्त बनाकर रोजगार से दे रही है, जो 300 से 600 रुपए तक रोज कमा लेती हैं। उसने बताया कि पहले उसका खुद का घर नहीं था। आर्थिक स्थिति दयनीय थी। पति मेहनत-मजदूरी किया करते थे, जिससे घर का खर्चा भी बामुश्किल चल पाता था, पर अब भगवान ने उसकी सुन ली है, जिससे उसका जीवन बदल चुका है।

ग्रामीण महिला स्वयं सहायता समूह बनाने राजीविका मिशन के अधिकारी गांव आए तो वह भी जुड़ गई और गांव में ही उसने जूट के आइटम बनाना सीखा। कई माह के अथक प्रयास के बाद उसे अच्छे से काम करना आ गया।

शुरूआती दौर में उसने अपने के साथ चार-पांच महिलाओं को जोड़ा और वे जूट से बैग, मैट, टेबल मैट, हैण्डपर्स (लेडिज एण्ड जेंट्स), प्लांट कवर (गमले के कवर) आदि बनाने लगी। इन आइटमों को वह उद्योग विभाग की ओर से प्रदेश में लगने वाले मेलों में स्टॉल लगाकर बेचने लगी। इस तरह कमाई होने लगी तो उसका उत्साह बढऩे लगा और फिर उसने कभी पीछे मुडकऱ नहीं देखा।  आज वह डेढ़-दो महिलाओं को कच्चा माल उपलब्ध कराती है और उनसे तैयार आइटम लेकर बेचती है। वह आज भी मेलों में जाकर स्टॉल लगाती है। वह राजस्थान के अलावा देश के अन्य प्रदेशों में भी लगने वाले मेलों में अपनी स्टॉल लगाकर सामान बेचती है। वह जूट के 200 से 250 तरह के घरेलू जरूरत के सामान तैयार कराती है। मेलों के अलावा अब उसे जयपुर, आगरा, दिल्ली सहित कई अन्य जगह से भी बल्क ऑर्डर मिलते हैं, जिनके लिए वह वांछित सामान तैयार कराकर उपलब्ध कराती है।

दो-तीन माह पहले उसने महिलाओं के लिए कुर्ती-प्लाजो, स्कर्ट आदि कपड़े भी बनाना शुरू किया  है। करीब 35 वर्षीय महिला ब्रजेश ने बताया कि वह जूट कोलकाता से और कपड़ा सूरत से लाती है। इस काम में उनके पति सत्यपाल भार्गव भी पूरा सहयोग करते हैं। उसने बताया, वह पिछले करीब 8 साल से यह काम कर रही है। मिलने वाले ऑर्डर और मेलों में वह वर्षभर में 25 से 30 लाख रुपए तक के जूट से बने आइटम बेच देती हैं। ऑर्डर से उसके कच्चे माल की लागत और लेबर खर्चा निकल आता है और मेलों से होने वाली बचत उसकी शुद्ध कमाई होती है, जो 8 से 12 लाख रुपए तक हो जाती है। नवम्बर से मार्च माह तक का समय उसके लिए सीजनभरा होता है।

ब्रजेश कहती हैं कि कच्चा माल आने के साथ उसकी छंटाई की जाती है और उसमें से अनुपयोगी (खराब) मेटेरियल को अलग कर दिया जाता है। इसके बाद महिलाओं के बीच मेटेरियल बांटा जाता है। महिलाओं को उत्पाद तैयार करने के लिए अलग-अलग काम बांटे हुए है। सबसे अंत में उत्पाद की फिनिसंग का काम चुनिंदा महिलाएं करती हैं। बीच-बीच में उत्पाद की चैकिंग की जाती है ताकि किसी तरह की कोई गड़बड़ी (खराबी) हो तो उसे फिर से ठीक कराया जाता है। उत्पाद तैयार होने के बाद उसकी अच्छे से पैकिंग की जाती है ताकि बाद में उत्पाद खराब नहीं हो।

खानवां निवासी महिला ब्रजेश के पति सत्यप्रकाश भार्गव कहते हैं कि चहुंओर पत्नी व उसके काम की प्रशंसा सुनने तो मिलती है तो बहुत अच्छा लगता है। उसके प्रयासों ने मेरी भी किस्मत बदल दी है। अब मैं भी उसके काम में हाथ बंटाता हूं। कोलकाता व सूरत से कच्चा माल (रॉ मेटेरियल) अब मैं ही लेकर आता हूं।

खानवा निवासी महिला सुशीला ने बताया कि पहले वह ग्रहणी थी और कुछ नहीं करती थी। ब्रजेश के साथ जुडऩे से काम भी मिला है और घर-परिवार को चलाने में मददगार भी बन रही हूं। 

मैं भी ब्रजेश के साथ शुरूआत से जुड़ी हूं और आज तक इनके साथ हूं। इनके साथ काम करके अच्छा लगता है। दो पैसे भी हाथ में आते हैं। घर-परिवार व रिश्तेदारी में इससे मान-सम्मान भी बढ़ा है। खानवा की ही कुसुमा ने बताया।

राजस्थान ग्रामीण आजीविका विकास परिषद (राजीविका मिशन) के जिला परियोजना प्रबंधक (डीपीएम) किशोरीलाल बताते हैं कि खानवा की ग्रामीण महिला ब्रजेश बेहतरीन काम कर रही है। शुरूआती दिनों में वह घर की जरूरी आवश्यकताओं की ही पूर्ति कर पाती थी, लेकिन आज अच्छा कमा ही नहीं रही, गांव, घर-परिवार व समाज में नाम भी रोशन कर रही है। अब वह कई प्रदेशों का भ्रमण कर चुकी है, जो उसके लिए किसी सपने से कम नहीं। जिला कलक्टर, राजीविका मिशन के प्रदेश स्तर के अधिकारी और नाबार्ड की टीम उसके यहां कामकाम का अवलोकन कर चुके हैं। 

डीपीएम किशोरी लाल का कहना है कि सबसे पहले इन्हें राजीविका मिशन से 15 हजार की आर्थिक मदद दी गई, जो राशि लाभार्थी से वापस नहीं ली जाती है। इसके बाद  इन्हें 5 लाख रुपए का ऋण दिलाया गया, जो इन्होंने समय पर चुकाया। राजीविका मिशन आज भी ग्रामीण महिलाओं स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं की सहायता करता है।

उद्योग विभाग की ओर से विभिन्न स्थलों पर लगाए जाने वालों मेलों में सामान लाने-ले-जाने का खर्चा, इनका किराया और दो सदस्यों के खाने का खर्चा देकर मदद करता है। ऐसी महिलाएं इन मेलों में अपने उत्पाद बेचकर जो कमाती हैं, वह इनकी शुद्ध बचत होती है। राजीविका मिशन ने खानवा की महिला ब्रजेश के जूट उत्पादों को ऑनलाइन बेचना भी शुरू कराया है और इनके उत्पादों की फिपिकार्ड व अमेजन जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर लिस्टिंग कराई है। हालांकि अभी ऑनलाइन रेस्पांस ज्यादा नहीं मिला है।

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