पिता
दिशा पंवार
वो पिता ही है
जो सब कुछ सह जाता है।
तपती धूप में
पैरों को जलने से बचाता है,
रख कर अपनी हथेली रास्तों में,
मेरी राहों को मुक्कमल बनाता है,
मेरी किस्मत को चमकाता है,
नजर भर देखकर मुझको,
खुद भी बादशाह बन जाता है।
वो पिता ही है जो
जागकर रातभर
खुली आंखों से,
मेरी बंद आंखों के सपने सजाता है,
फीकी सी हंसी हंसकर,
मेरे हौसले को बढ़ाता है।
वो पिता ही है जो
अपने हाथों के छाले छुपाता है,
वो पिता ही है जो
सब कुछ सह जाता है।
वो पिता ही है जो
जीवन के रण में संघर्ष सिखाता है,
जीत जाओगे मंत्र यही बतलाता है,
देख मेरी विजयी पताका को,
वो पिता ही है जो
सब कुछ सह जाता है।
शिक्षक बन मुस्कुराता है।
(लेखिका राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय सीही सैक्टर 7 फरीदाबाद, हरियाणा में संस्कृत की प्रवक्ता हैं)
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