मर गई मनुजता, हंस रही दनुजता।
मनुज से मनुज की न रही संवेदना।
Tag: Disha Panwar
मौन…
मुलाकात…
बचपन से मुलाकात कर लेते हैं,
दोस्तों से कही अनकही बात कर लेते हैं।
उसके डब्बे से मैंने भी रोटी चुराकर खाई थी,
ये बात उसको मैंने उसको कभी
वो पिता ही है जो…
वो पिता ही है
जो सब कुछ सह जाता है।
तपती धूप में
आज की लक्ष्मीबाई…
प्रातः काल जो धधक उठी थी,
क्रोध भरी चिंगारी थी।
मत पूछो वो कौन थी यारो
ये औरतें भी लाजवाब होती हैं…
ये औरतें भी लाजवाब होती हैं…
अस्तित्व की तलाश में…
अस्तित्व की तलाश में,
हर रोज बनती रही, मिटती रही।
फिर कैसे कहते हो…
फिर कैसे कहते हो…