Judgment: कर्मचारियों के प्रमोशन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कह दी बड़ी बात | जानें क्या है पूरा मामला

नई दिल्ली 

कर्मचारियों (Employees) के प्रमोशन (promotion) को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक अहम फैसला दिया है। उसने फैसले में कहा कि पदोन्नति केवल कार्यभार संभालने पर ही प्रभावी होती है। लिहाजा ऐसे कर्मचारी को पूर्वव्यापी वित्तीय लाभ प्रदान नहीं किए जा सकते, खासकर तब जब कर्मचारी ने उच्च पद पर सेवा नहीं की हो। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला पश्चिम बंगाल (west bengal) के एक कर्मचारी के मामले की सुनवाई करते हुए सुनाया और कहा कि कर्मचारियों को संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत पदोन्नति के लिए विचार किए जाने का मौलिक अधिकार है, लेकिन उन्हें पदोन्नति पाने का पूर्ण या मौलिक अधिकार नहीं है। इसके साथ ही न्यायमूर्ति पामिदिघंतम नरसिम्हा और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) और पश्चिम बंगाल प्रशासनिक न्यायाधिकरण (Administrative Tribunal) के उन फैसलों को खारिज कर दिया, जिसमें एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी को पदोन्नति के पद के लिए काल्पनिक वित्तीय लाभ देने का निर्देश दिया गया था, जिसे उसने कभी ग्रहण ही नहीं किया था।

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यह है पूरा मामला
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पश्चिम बंगाल सरकार ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस निर्णय को चुनौती दी थी  जिसमें सेवानिवृत्त प्रधान वैज्ञानिक अधिकारी डॉ. अमल सत्पथी को काल्पनिक वित्तीय लाभ प्रदान करने के न्यायाधिकरण के निर्देश की पुष्टि की गई थी। डॉ. सत्पथी को 31 दिसंबर, 2016 को उनकी सेवानिवृत्ति से पहले मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी के पद पर पदोन्नति के लिए अनुशंसित किया गया था, लेकिन प्रशासनिक देरी के कारण पदोन्नति को अंतिम रूप नहीं दिया गया था। औपचारिक पदोन्नति के अभाव के बावजूद, हाईकोर्ट और न्यायाधिकरण ने फैसला सुनाया था कि डॉ. सत्पथी काल्पनिक वित्तीय लाभ के हकदार थे, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनकी पेंशन उच्च पद के वेतनमान को दर्शाती है।

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इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट और पश्चिम बंगाल प्रशासनिक न्यायाधिकरण के फैसलों को खारिज कर दिया जिसमें एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी को पदोन्नति के पद के लिए काल्पनिक वित्तीय लाभ देने का निर्देश दिया गया था, जिसे उसने कभी ग्रहण ही नहीं किया था। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए पहले ये जांच की कि क्या कोई सरकारी कर्मचारी उस पदोन्नति के लिए वित्तीय या पूर्वव्यापी लाभ का दावा कर सकता है, जिसके लिए उनकी सिफारिश की गई थी, लेकिन उन्होंने औपचारिक रूप से पदोन्नति ग्रहण नहीं की थी। जबकि पश्चिम बंगाल सेवा नियम के नियम 54(1)(ए) की प्रयोज्यता

नियम में यह प्रावधान है कि किसी कर्मचारी को वेतन पाने के लिए उच्च पद का कार्यभार संभालना होगा, इस बात पर जोर देते हुए कि पदोन्नति कार्यभार संभालने की तिथि से प्रभावी होती है, न कि केवल सिफारिश की तिथि से। न्यायालय ने इस बात पर विचार किया कि क्या नियोक्ता के कारण पदोन्नति प्रक्रिया में देरी कर्मचारी को वित्तीय लाभ प्रदान करने को उचित ठहराती है।

न्यायमूर्ति मेहता ने निर्णय सुनाते हुए पदोन्नति के लिए विचार किए जाने के अधिकार और पदोन्नति के अधिकार के बीच अंतर पर जोर दिया और कहा: “पदोन्नति के लिए विचार किए जाने का अधिकार अनुच्छेद 14 और 16 के तहत एक मौलिक अधिकार है। हालांकि, वास्तविक पदोन्नति पात्रता और कार्यभार संभालने पर निर्भर करती है और यह एक पूर्ण या मौलिक अधिकार नहीं है।”सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “पदोन्नति केवल कार्यभार संभालने पर ही प्रभावी होती है। स्पष्ट सक्षम प्रावधानों के अभाव में पूर्वव्यापी वित्तीय लाभ प्रदान नहीं किए जा सकते, खासकर तब जब कर्मचारी ने उच्च पद पर सेवा नहीं की हो।”

सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट और न्यायाधिकरण के फैसलों को पलटते हुए फैसला दिया  कि डॉ. सत्पथी को उनकी सेवा अवधि के दौरान पदोन्नति के लिए विचार किए जाने का अधिकार था, लेकिन उनकी पदोन्नति की मंजूरी से पहले उनकी सेवानिवृत्ति ने उच्च पद के लिए वित्तीय लाभों के किसी भी दावे को रोक दिया। पश्चिम बंगाल सेवा नियमों के नियम 54(1)(ए) ने स्पष्ट रूप से कर्तव्यों को ग्रहण किए बिना पूर्वव्यापी वेतन पर रोक लगा दी। न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार की अपील को स्वीकार कर लिया और घोषित किया कि पहले के फैसले “कानून की नजर में अस्थिर” थे।

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