क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का प्रायोजक बैंकों में विलय किया जाए

नई दिल्ली 


ऑल इंडिया बैंक एम्प्लॉयज एसोसिएशन ने केंद्र सरकार से की मांग


क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) को मजबूत और जीवंत बनाने के लिए उनके पुनर्गठन के कई प्रयास करने के बाद भी उनकी कमजोरियां दूर नहीं हो पाई हैं। ये क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक कई चुनौतियों से जूझ रहे हैं। इस कारण इन बैंकों को उनकी प्रायोजक बैंकों में विलय करने की मांग उठ रही है। इस बाबत  बैंक कर्मचारियों के संगठन ऑल इंडिया बैंक एम्प्लॉयज एसोसिएशन (AIBEA) ने केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को एक पत्र लिखा है और कहा है कि सरकार को पुनर्गठन योजना के तहत कमजोर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRB) का उसके प्रायोजक बैंकों के साथ विलय पर विचार करना चाहिए।

विलय से प्रायोजक बैंकों के ग्रामीण नेटवर्क में वृद्धि करने में मिलेगी मदद 
एआईबीईए ने पत्र में कहा है कि ऐसा समझा रहा है कि सरकार आरआरबी में आगे और सुधारों पर विचार कर रही है ताकि उन्हें अधिक व्यवहारिक बनाया जा सके। संगठन ने कहा, ‘हमारा सुझाव है कि इन आरआरबी को प्रायोजक बैंकों में विलय करना बेहतर होगा क्योंकि इससे प्रायोजक बैंकों के ग्रामीण नेटवर्क में वृद्धि होगी और साथ ही साथ उन कमजोरियों को खत्म किया जा सकेगा, जिनसे क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक वर्तमान में जूझ रहे हैं।’ एआईबीईए के महासचिव सी एच वेंकटचलम ने कहा कि इससे निगरानी अधिक प्रभावी होगी क्योंकि वे बैंक का हिस्सा बन जाएंगे और प्रायोजक बैंकों के प्रबंधन के सीधे नियंत्रण में आ जाएंगे।

इसलिए हुआ ग्रामीण बैकों का गठन
ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे किसानों, कृषि श्रमिकों और दस्तकारों को कर्ज एवं अन्य सुविधाएं प्रदान करने के मकसद से इन बैंकों का गठन आरआरबी अधिनियम, 1976 के अंतर्गत किया गया था। अधिनियम के तहत केंद्र, संबंधित राज्य सरकारों और प्रायोजक या प्रवर्तक बैंकों की आरआरबी में शेयरधारिता क्रमश: 50:15:35 प्रतिशत है। केंद्र सरकार के बाद प्रायोजक बैंक आरआरबी में सबसे बड़ा शेयरधारक है। बताया गया कि शुरू में आरआरबी की संख्या 196 थी। विभिन्न बैंकों में समेकेन के साथ इनकी संख्या घटकर अब 43 रह गई है।

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एआईबीईए के महासचिव सीएच वेंकटचलम का कहना है किआरआरबी के उद्देश्य सराहनीय रहे हैं, लेकिन आरआरबी को जो जिम्मेदरी मिली हुई है, वो उन्हें नाजुक और कमजोर बनाती है। उन्होंने कहा कि आरआरबी को मजबूत और जीवंत बनाने के लिए उनके पुनर्गठन के कई प्रयास किए गए हैं लेकिन परिणाम आंतरिक कारणों से उत्साहजनक नहीं रहे हैं।