कविता
डॉ. विनीता राठौड़
विपदा की घड़ी कैसी है आई
साथ में महामारी बड़ी है लाई
संपूर्ण जगत खड़ा है आजकल
वर्तमान और भविष्य के दोराहे पर
देख कर ऐसी विकट परिस्थिति
चंहुओर छाई है उदासी
भविष्य की चिंता करना छोड़ो
वर्तमान को आज अभी संवारो
शांत मन कर सुकून को खोजो
रिश्तों की धरोहर को सहेजो
जाकर माँ के पहलु में बैठो
कुछ उसकी भी बातें सुन लो
बंद कमरों के दरवाजे खोलो
सब मिल कर संग बतिया लो
वात्सल्य अपना बच्चों पर लुटा दो
बांहों में उन्हें अपनी भर लो
उनके सपनों में रंग भर दो
ऊंची उड़ान उन्हें भरने दो
जिन्दगी की भागम भाग पर रोक लगा कर
कोरोना ने दिया है यह अवसर
चलो इसे तुरंत भुना लें
बेसुधी में अब रहना छोड़ें
आज ही सब अपनों की सुध लें
भूले बिसरे रिश्ते पुनर्जीवित कर लें
अपने सारे मनमुटाव छोड़ के
रिश्तों की धरोहर पुनः सहेजें।
( लेखिका राजकीय महाविद्यालय, नाथद्वारा में प्राणीशास्त्र की सह आचार्य हैं)
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