कविता

विश्वानि देव अग्रवाल, सेवानिवृत्त वरिष्ठ बैंक अधिकारी, बरेली
कड़कड़ाती ठंड भयंकर शीत लहरी,
कांपते कांपते बीती जनवरी।
बसंत की आहट, ऋतु सुनहरी,
28 दिन में ही खिसकी फरवरी।
होली का हुड़दंग, रंगों का रोमांच,
गुलाल के संग उड़ गया मार्च।
माँ का आगमन,
नई फसल की रेलम-पेल,
खुशी-खुशी में कटा अप्रैल।
मदर्स डे मजदूर दिवस, छोटे पर्व कई,
इनके बीच ही गुजर गई मई।
चिलचिलाती धूप नहीं सकून,
पसीना पोंछते कट गया जून।
साल की शुरू हुई दूसरी छमाही,
ज्यादातर छुट्टीयों में बीती जुलाई।
आजादी की उमंग संग सावन मस्त,
तिरंगे की छांव में बीता अगस्त।
बारिश बरसाते श्यामल अम्बर,
भीगते -भीगाते चला सितम्बर।
पर्वों की धूमधाम, सिया संग रघुवर,
दिवाली दशहरे में बीता अक्तूबर।
बाजे बारातें शादियां निमंत्रण,
शुभाशीष बरसाते बीता नवम्बर।
सर्दी न गर्मी न बारिश न पतझर,
हंसता मुस्काता चल दिया दिसम्बर।
अब फिर से शुरू होगा यही क्रम,
सब मास आयेंगे करेंगे श्रम।
समय का चक्र यूँ ही चलता रहेगा,
कभी ये नया कभी पुराना होगा।
इसी क्रम में विदा चौबीस,
स्वागत अभिनंदन तुम्हारा पच्चीस।
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