योगेन्द्र गुप्ता
लुभावने कमिटमेंट। सामाजिक सरोकारों की लम्बी सूची। जिससे क्रेडिट भी बन गई। फिर आहिस्ता – आहिस्ता इसके जाल में निवेशक फंसते चले गए। पूरे भारत में करीब आठ सौ ब्रांच खुल गईं और निवेशक हो गए 21 लाख। इस तरह सोसायटी अच्छी खासी खड़ी हो गई। पर अंदरखाने बंदर-बांट,लूटखसोट का सिलसिला चलता रहा। नेताओं और अफसरों को खुश किया जाता रहा। निवेशकों के करीब 14 हजार करोड़ फंस गए। अनियमितताओं की परतें खुलीं तो लिक्वडेटर नियुक्त कर दिया गया। इसके बाद से तो निवेशक बेचैन हैं। वे दो साल से हजारों करोड़ की वापसी के लिए भटक रहे हैं।
यह कहानी है आदर्श क्रेडिट सोसायटी लिमिटेड (ADARSH CREDIT CO-OPERATIVE SOCIETY LIMITED) की। राजस्थान के सिरोही जिले से 1999 में शुरू हुई। और पूरे देश में विशाल नेटवर्क खड़ा कर लिया। इसके घोटालों की परत-दर-परत उधेड़ें,उससे पहले इसका उजला पक्ष जान लें। सोसायटी हर वर्ष लाभ में रहती थी। हर साल अपने शेयर धारकों को डिविडेण्ड दिया। हर साल ऑडिट हुई। कैसे की गई ये बात अलग है। पर ऑडिट के रिकार्ड पर सोसायटी को साफ-सुथरा रखा। नतीजतन आईएसओ सर्टिफिकेट भी हासिल कर लिया गया। सोसायटी होते हुए भी खाते खोलने से परिपक्वता भुगतान तक रिजर्व बैंक के मानकों के अनुसार होता था तथा सभी कार्य डिजिटल तरीके से संपादित होते थे। आदर्श क्रेडिट की सामाजिक सरोकारों के तहत आदर्श चैरिटेबल संस्था के माध्यम से ब्लड डोनेशन कैंप आयोजित होते थे। राजस्थान में आंगनबाड़ी केन्द्रों को आर्थिक संबल प्रदान किया जाता था। इसके अलावा सोसायटी द्वारा बाढ़, भूकंप, अतिवृष्टि आदि में देश-विदेश में मदद की जाती थी। नेपाल, केदारनाथ, कश्मीर, गुजरात भूकंप में राहत सामग्री से मदद व सांचौर में बाढ़ पीड़ितों को हेलिकॉप्टर से राहत सामग्री पहुंचाने का कार्य किया गया। सोसायटी के ये ऐसे उजले पक्ष हैं जिससे लोगों में सोसायटी के प्रति भरोसा कायम होता रहा और निवेशक खिंचते चले गए। इनकी संख्या 21 लाख तक पहुंच गई। पर इन निवेशकों को इस बात का कतई अहसास नहीं हुआ कि अंदर ही अंदर उनके हितों पर हथौड़े भी चल रहे थे। और सोसायटी के बंद होने की स्थिति आ जाएगी।
ऐसे चले हथौड़े-दर-हथौड़े
निवेशकों में भरोसा कायम करने के लिए बताने को तो ये उजला पक्ष पर्याप्त है। हर कोई ऐसे काम देखकर किसी भी संस्था पर फिदा हो जाए। पर इसकी आड़ में हुए गोरखधंधों की लम्बी फेहरिस्त है। ढाई हज़ार करोड़ के लेनदेन का कोई हिसाब-किताब नहीं। जानकारों और रिश्तेदारों को गलत तरीके से निवेशकों से ली गई हजारों करोड़ की राशि ट्रांसफर की गई। जांच में पाया गया कि लालच देकर हजारों करोड़ का निवेश कराया और सोसायटी के संस्थापकों और निदेशकों ने मुनाफा अपने परिवार में बांट दिया। सेल कंपनियां और एसोसिएट कंपनियां बना कर फंडों का दुरुपयोग किया गया। दिलचस्प बात ये है कि इन कंपनियों का जब भौतिक सत्यापन किया गया तो इनके दिए गए पते पर किसी प्रकार की कोई गतिविधि होना ही नहीं पाया गया। जांच में ऐसी 120 कंपनियां मिलीं। इनमें 43 कंपनियां तो अकेले सोसायटी के संस्थापक मुकेश मोदी की निकलीं। सोसायटी के फण्ड से करीब 2 हजार 334 करोड़ का ऋण इन कंपनियों के नाम से उठा लिया गया।
ईडी कर रहा है जांच
पूरा मामला ईडी के पास है। सोसायटी के संस्थापक मुकेश मोदी और अन्य निदेशक सींखचों के अंदर है। सोसायटी की तमाम सम्पत्तियां अटैच कर ली गई हैं। पर 21 लाख निवेशकों को कोई राहत नहीं मिली है। बताया जा रहा है कि जितना निवेश था उससे कहीं ज़्यादा की सम्पत्तियां ईडी ने अटैच कर रखी हैं। इसको भी लम्बा समय हो गया। इनको नीलाम करके निवेशकों को राहत पहुंचाई जा सकती थी। पर ईडी की कछुआ चाल से निवेशक हताश हैं। कई तो आत्महत्या कर चुके हैं। गाढ़ी कमाई फंसने से कई डिप्रेशन के शिकार हो चुके हैं। सोसायटी में अनियमितताओं की ये तो बानगी है। कहानी अभी और बाकी है।
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