कविता
डॉ. अलका अग्रवाल
डरना मुझको स्वीकार नहींकभी किसी भी हालत में,रुकना मेरा संस्कार नहीं।कहीं किसी भी मुश्किल में,डरना मुझको स्वीकार नहीं।जीते जी ही डर-डर करहै मरने की दरकार नहीं।है मौत सामने अगर खड़ी,भय उससे भी एक बार नहीं।
हो शत्रु चाहे ताकतवर,मानूंगी उससे हार नहीं।हो संकट कितना भी गुरुतर,ठानूंगी उससे रार वहीं।,
संकल्प यही मन में मेरे,जब तक भी तन में सांस रहे।मन में हो तनिक ना निर्बलता,शक्ति का सदा निवास रहे।
(लेखक सेवानिवृत्त कॉलेज प्राचार्य हैं)
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