पालने में आई बेटी पालकी में हुई विदा, जन्म के एक दिन बाद ही अपनों ने छोड़ा, वृंदावन के वात्सल्य ग्राम में पली-बढ़ी, अधिवक्ता बनी

वृंदावन (मथुरा )

मथुरा के वृंदावन स्थित साध्वी ऋतंभरा के वात्सल्य ग्राम में रविवार को बड़ा अद्भुत दृश्य देखने को मिला। हर किसी की आंखें नम हो गई। साध्वी ऋतंभरा भी भावुक हो गईं। क्योंकि हाथ पीले करने के बाद एक बेटी की विदाई  इस वात्सल्य ग्राम से हो रही थी। साध्वी ऋतंभरा के इस आश्रम में  एक ऐसी बेटी की शादी हुई, जिसको जन्म देने वाली मां ने 1 दिन के लिए भी  अपनी ममता की छांव नहीं दी। वात्सल्य के आंगन में पली बढ़ी यह बेटी पालना में आई थी और यहां से रविवार को पालकी में विदा हुई।

जिस बिटिया की यहां शादी हुई  उसके अपनों ने उसे जन्म लेते ही गैरों के बीच छोड़ दिया था। यह बेटी न केवल वात्सल्य ग्राम के आंगन में पली, बल्कि इसकी पढ़ाई लिखाई और पैरों पर खड़े होने की कहानी भी यहीं लिखी गई। बच्ची का नाम रखा गया ऋचा। दरअसल साध्वी ऋतंभरा वृंदावन के वात्सल्य ग्राम आश्रम से पूर्व दिल्ली वात्सल्य प्रकल्प चलाती थीं। दिल्ली में ही ऋचा उनको एक दिन की अवस्था में मिली। ऋचा ने वात्सल्य प्रकल्प में अपनी आंख खोली और फिर जन्म देने वाली मां से दूर पालने वाली यशोदा मां की गोदी में पली बढ़ी। ऋचा ने प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली में प्राप्त की। इसके बाद वृंदावन स्थित वात्सल्य ग्राम आश्रम में आ गई। यहां उसने संविद गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त की और फिर राजस्थान में वनस्थली विद्यापीठ से ग्रेजुएशन किया और अपेक्स यूनिवर्सिटी जयपुर से बी.एड किया। वकालत की पढ़ाई  पूरी करने के बाद ऋचा ने ऑल इंडिया बार एसोसिएशन की सदस्यता ली और वर्तमान में दिल्ली में प्रैक्टिस कर रही हैं। पालन से लालन तक का सफर तय कर चुकी ऋचा ने वात्सल्य के आंगन में रहकर न केवल अपनी शिक्षा पूरी की बल्कि वह खुद अपने पैरों पर भी खड़ी हुई।

इंदौर से आई बारात
रविवार को वह भावुक कर देने वाला पल आया जब ऋचा की धूम-धाम से शादी हुई। साध्वी ऋतंभरा के आश्रम वात्सल्य ग्राम में जब  शहनाई बजी तो यहां खुशियां झूम उठीं। साध्वी ऋतंभरा ने हाथ पीले कर ऋचा का विवाह करा दिया। ऋचा को व्याहने के लिए इंदौर के अर्पित बारात लेकर वात्सल्य ग्राम पहुंचे। जहां भारतीय संस्कृति के अनुरूप सनातन पद्धति से विवाह कार्यक्रम संपन्न हुआ। जयमाला के बाद आचार्य विष्णु कांत ने वैदिक मंत्रों से विधि विधान से विवाह संपन्न कराया।अग्नि को साक्षी मानकर ऋचा ने अर्पित के साथ सात फेरे लिए और गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया। दूल्हा बना अर्पित कम्प्यूटर इंजीनियर हैं और पुणे की सीमन्स कंपनी में कार्यरत हैं।

रक्त के संबंधों पर भारी पड़े भाव के संबंध
वात्सल्य ग्राम की बेटी ऋचा के रक्त के संबंधों का तो पता नहीं किंतु भाव संबंधों में प्यार ने उसे कभी किसी बात की कमी महसूस नहीं होने दी। धर्म पिता बने संजय गुप्ता ने ऋचा को पढ़ा लिखा कर सुयोग बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। विवाह योग्य होने पर इंदौर के राजेंद्र चौहान के पुत्र अर्पित से रिश्ता तय हो गया।

ऋचा के मेहंदी, हल्दी लगी तो लग्न पत्रिका लेखन भी हुआ। ऋचा को मामा-मामी की कमी महसूस न हो, इसके लिए भाव संबंधों में सूरत, गुजरात से लक्ष्मी और नाना लाल शाह, नानी रेखा, राजू भाई शाह ने मामी-मामा की भूमिका में भात पहनाने की रस्म अदा की। ऋचा की मां बनी सुमन परमानंद अपनी बेटी के पीले हाथ होते देख फूली नहीं समा रहीं थीं।

ऋचा को विदा करते समय भावुक हुईं साध्वी ऋतंभरा
25 साल तक वात्सल्य के आंगन में पली बढ़ी ऋचा जब अपने गृहस्थ जीवन के आंगन में प्रवेश करने के लिए जाने लगी तो साध्वी ऋतंभरा भावुक हो गईं। साध्वी ऋतंभरा ने बताया कि वह तो साध्वी थीं, बेटियों ने दीदी मां बना दिया।

साध्वी ऋतंभरा का संकल्प है कि समाज जिनको अपने प्यार, दुलार से वंचित कर उपेक्षित और असहाय बनाकर छोड़ देता है, उन्हें पुनः समाज की मुख्य धारा में सम्मान और प्रतिष्ठा के साथ जोड़कर बेटियां अपने पैरों पर खड़ी हो सकें। इसी संकल्प को पूरा कर चुकी ऋचा अब अधिवक्ता बन गई हैं।

अर्पित की मां ने लिया था संकल्प
ऋचा का दूल्हा बने अर्पित की मां अनीता चौहान की 20 वर्ष पूर्व साध्वी ऋतंभरा से  इंदौर में भेंट हुई। एक श्रीमद भागवत के दौरान मानसिक संकल्प लिया था कि वह अपने बेटे का विवाह वात्सल्य की बेटी से कराएंगी। रविवार को उनका यह इस संकल्प  पूरा हो गया।

न्यायाधीश बनना चाहती है ऋचा
ऋचा अधिवक्ता बनकर काफी प्रसन्न हैं और उन्हें आपराधिक मामलों में काफी रुचि है। वह निष्पक्ष न्याय के प्रति वकालत करना चाहती हैं और आगे बढ़कर न्यायाधीश बनने की इच्छा रखती हैं। साध्वी ऋतंभरा ने कहा कि वात्सल्य के बेटे-बेटियां अब ऊंचाइयां छूने लगे हैं और धीरे-धीरे अपने पैरों पर खड़े हो रहे हैं। यह एक शुभ संकेत है। यहां बच्चों को राष्ट्रभक्ति, समाज सेवा और अपनी संस्कृति के प्रति अटूट श्रद्धा रखने की शिक्षा दी जाती है।

ऐसा है वात्सल्य ग्राम
वृंदावन के वात्सल्य ग्राम में ऐसी और भी बेटियां हैं, जिनको अपनों ने जन्म लेते ही छोड़ दिया। इन बेटियों को नानी, मौसी, मां की याद न आए इसके लिए साध्वी ऋतंभरा ने सभी के बीच रिश्ते जोड़ दिए हैं। इन बेटियों का लालन-पालन करने वाली माताओं में से किसी को मां, किसी को नानी तो किसी को मौसी बना दिया है। वर्तमान में वात्सल्य ग्राम में इस तरह के 22 परिवार हैं।

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