राज्य सेवा में समायोजित शिक्षकों के जीवन को असहज और असुरक्षित बनाने वाले कारणों पर एक नजर | अनुदानित संस्थाओं के कार्मिकों के राज्य सेवा में समायोजन के तेरहवें शिक्षक दिवस पर विशेष

Rajasthan Voluntary Rural Education Service

डॉ. कुल भूषण, शर्मा


सम्पूर्ण देश में आज शिक्षक दिवस की धूम के बीच राज्य में स्कूल और उच्च शिक्षा से जुड़े शिक्षकों का एक बहुत छोटा सा तबका भी है जिन्हें विधिक प्रावधानों और स्थापित नियमों के बावजूद पिछले तेरह वर्षों से लगातार तनावग्रस्त और दोयम दर्जे का अपमानजनक जीवन जीने को मजबूर किया जा रहा है

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राज्य की अनुदानित संस्थाओं में कार्यरत शिक्षकों को समय पर वेतन चुकारा होने की शिकायतोंके मद्देनजर जुलाई 2011 में राजस्थान स्वेच्छया ग्रामीण शिक्षा सेवा नियम 2010 के तहत अनुमोदित और स्थायी पदों पर कार्यरत कार्मिकों को राज्य सेवा में समायोजित किया गया था समायोजन की प्रक्रिया से अनुदानित कर्मी सोच रहे थे कि उनकी सभी समस्याओं का स्थायी समाधान हो जायेगा लेकिन नियति को शायद ये मंजूर नहीं था

समायोजन के मात्र 40-45 दिनों बाद, इन कार्मिकों को राज्य सेवा में आने के लिए, दिए गए  NPS/CPF ऑप्शन में से CPF ऑप्शन को वापस लेकर 20-25 साल से स्थायी पदों पर कार्यरत कार्मिकों को Fresh Recruits बता कर इन पर जबरदस्ती NPS योजना थोप दी गई

माननीय उच्च न्यायालय द्वारा अपने आदेश में 1.2.2018 को समायोजित कार्मिकों को राजस्थान सिविल सेवा पेंशन (नियम)1996 के तहत पुरानी पेंशन के लिए योग्य करार दिए जाने के बाद माननीय उच्चत्तम न्यायालय के द्वारा भी पक्ष में निर्णय होने के बावजूद तारीखों के खेल में उलझ कर, अपने न्यायिक हक से वंचित रहते हुए ये आभासी से राज्य सेवक अब एकएक कर इस संसार को छोड़ने को अथवा तनाव और घुटन के साथ जीने को मजबूर हैं क्योंकि इन्हें हर पल एक ही सवाल सताता है, कि उच्चत्तम न्यायालय में निर्णय होगा या नहीं? होगा तो कब होगा?

हर 1-2 माह में आने वाली तारीख का इन्तजार इस आशा के साथ करते हैं कि अब की बार फैसला हो जायेगा लेकिन फिर एक छोटा सा आदेशList on ….” से ही इन्हें सब्र करना पड़ता है

जीवन भर हजारों लाखों छात्रछात्राओं के भविष्य को संवारने वाले ये शिक्षक / कार्मिक प्रति दिन अपमान का घूँट पी पी कर जीने को मजबूर हैं क्योंकि इनका वाजिब हक इन्हें नहीं दिया जा रहा यही कारण है कि इनके लिए शिक्षक दिवस मनाने का कोई अर्थ नहीं है

गत अप्रैल 22 में, पी एस पर नीतिगत निर्णय लेने के बाद, राज्य सरकार इन समायोजित कार्मिकों की सेवा गणना समायोजन के वर्ष से अर्थात जुलाई 2011 से कर रही है, जो भारतीय संविधान की किसी भी धारा के पूर्ण रूप से विरुद्ध है इस प्रक्रिया से लगभग 3500 शिक्षक एवम कार्मिकों की 20-25 वर्ष लम्बी स्थाई सेवा को नगण्य कर इन्हें पुरानी पेंशन से वंचित कर दिया गया उल्लेखनीय है कि इन्हें अन्य सभी सेवा निवृति लाभ प्रथम नियुक्ति से ही दिए जा रहे हैं अर्थात इनकी एक ही निरंतर सेवा में सेवा परिलाभ दो अलगअलग नियुक्ति तिथि से दिए जा रहे हैं, जो विचारणीय है

आंकड़ों की दृष्टि से राज्य के कुल 513119 पेंशनर्स की तुलना में यदि .6% (डेसीमल 6%) शिक्षक एवम कार्मिकों को यदि वित्तीय कारणों से विधिक प्रक्रिया में उलझा कर पेंशन से वंचित रखना ही उद्देश्य है तो इससे अधिक नैतिक पतन क्या होगा ?

मुश्किल निर्णय आने के बाद की
इनकी नियति में कष्ट यहीं खत्म नहीं हो रहे हैं ये सोच कर कि फैसला हमारे पक्ष में गया तो क्या राज्य सरकार आदेश को मान तो लेगी? क्या समयबद्ध सीमा में कार्यवाही कर पेंशन दे तो देगी सरकार ? 13 वर्षों से इन प्रश्नों ने अनेक शय्याग्रस्त और अंत्य रोगों से ग्रस्त कार्मिकों का जीवन दूभर कर रखा है

मूल आदेश की अनुपालना में समायोजन के समय 2011 जुलाई में अनुदानित संस्था से 2011 जुलाई में प्राप्त पी एफ की राशि 6% ब्याज के साथ कैसे चुकायेंगे? ये सोच कर कार्मिक अवसाद में हैं वाद में निर्णय में देरी के कारण लगातार बढ़ने वाले आर्थिक भार के लिए कम से कम ये कार्मिक तो जिम्मेदार नहीं हैं इन कार्मिकों पर इस आर्थिक दंड के लिए कौन जिम्मेदार होगा? एक विचारणीय प्रश्न है

जिन्होनें एनपीएस ऑप्ट कर लिया वो ये सोच कर परेशान हैं कि 50 % एनपीएस फण्ड ब्याज सहित चुका कर पेंशन कैसे लेंगे? इन कार्मिकों को ये भी डर है कि पेंशन लेने के लिए व्यवस्था कर राज्य सरकार को जमा करने पर पैसे कहीं अटक जाएँ

इस प्रकार भारतीय संविधान में वरिष्ठ नागरिकों को सुरक्षित एवम सम्मानित जीवन की गारंटी के प्रावधानों के बावजूद एक सामाजिक कल्याण युक्त राज्य में ये कार्मिक गत 13 वर्षों से उस अपराध की सजा काट रहे हैं जो इन्होनें कभी किया ही नहीं

और ये सब तब हो रहा है जब कि इन कार्मिकों को पेंशन देने पर तत्कालीन कोई वित्तीय भार राज्य पर नहीं पड़ने वाला रह गई बात आवर्ती व्यय की तो यहाँ ये उल्लेख जरूरी है कि पेंशन राज्य द्वारा दी जाने वाली कोई इनामी धन राशि नहीं है ये कार्मिक का संवैधानिक अधिकार है

माननीय उच्चतम न्यायालय का कार्मिकों के पक्ष में स्थगन आदेश के कारण मूल आदेश आज की तारीख में अस्तित्व में है, इसलिए आशा है सम्बंधित विभागीय अधिकारी उपरोक्त तथ्यों को पढ़कर इन कार्मिकों को इनकी प्रथम नियुक्ति से सेवा की गणना कर पेंशन प्रदान करने की प्रक्रिया में सहयोग करेंगे ताकि  सामाजिक कल्याण युक्त राज्य में ये वरिष्ठ सेवानिवृत कार्मिक भारतीय संविधान में इनके लिए दिए गए प्रावधानों के अनुसार अपना शेष जीवन सम्मानपूर्वक व्यतीत कर सकें

(लेखक जीएचएस राजकीय महाविद्यालय, सुजानगढ़, चूरू के सेवानिवृत एसोसिएट प्रोफेसर हैं)

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