भरतपुर
अवसर था साहित्यिक संस्था विमर्श की काव्यगोष्ठी का। डॉक्टर लोकेश शर्मा की अध्यक्षता, लखनऊ से पधारे डॉक्टर कुलदीप नारायण सक्सेना के मुख्य आतिथ्य एवं श्याम सिंह जघीना के विशिष्ट आतिथ्य में हुई काव्यगोष्ठी का आगाज़ कवि पूरन शर्मा द्वारा की गई माँ सरस्वती वंदना से हुआ। तत्पश्चात मानव मूल्यों में निरंतर हो रहे ह्रास पर तीखे प्रहार करती रचना “इतना कैसे पतित हो गया आदमी”, भगवान सिंह भ्रमर ने सुनाई।
नेकराम नेक ने “धर्म कभी इंसान से बड़ा नहीं होता “प्रसिद्ध पैरोडीकार लक्ष्मण चौधरी ने ब्रजभाषा की मधुर कविता “पश्चिम की सभ्यता में नर नारि डूबि गए कौन म्हौ ते कहैं यार भारत हमारौ है” सुनाकर खूब तालियाँ बटोरी। कामरेड नत्थी लाल ने “जमाना तो बदलता है इंसान को ये जमाना तुम्हीं को बदलना है अब” नामक रचना अपनी शैली में सुनाई तो डॉक्टर कुलदीप नारायण सक्सेना ने “हे तात मुझको ले चलो मेला दशहरा का दिखा दो कैसे बुराई पर विजय अच्छाई की होती बतादो, श्याम सिंह मधुर ने “चुराकर ले गए सूरज उजाला छीनने वाले” नामक व्यंग्य रचना सुनाकर सभी का मन मोह लिया।
पूरन शर्मा ने पारिवारिक विद्रूपताओं पर कटाक्ष किया तो नरेंद्र निर्मल ने कथनी करनी में छिड़ी अरे ई कैसी जंग लखि कैं मानुस दो गले निर्मल रै गे दंग सुनाकर इंसान के दोगले पन पर कटाक्ष किया। संचालन कर रहे हरीओम हरि ने “कुछ उजले तन वाले देखे दिल के अक्सर काले देखे” तो अर्चना बंसल ने आप तब झूठे थे या अब झूठे है पहले फैसला कीजिये आप कब झूठे है नामक ग़ज़ल सुनाई। अध्यक्षता कर रहे डॉक्टर लोकेश शर्मा ने “फूलों पे ताजगी न कली पे निखार है पर आप कह रहे हैं चमन में बहार है” ग़ज़ल सुनाकर सभी का दिल जीत लिया।
सुरेश शर्मा ने हिंदी का गुणगान करती रचना सुनाई तो संयोजक अशोक सक्सेना ने बसंत का युवती के रूप में चित्रण कर श्रोताओं को खूब गुदगुदाया। समापन पर अशोक सक्सेना ने सभी का आभार ज्ञापित किया।
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