दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने पटियाला हाउस फैमिली कोर्ट द्वारा काल्पनिक “SMA धारा 28A” के आधार पर दिए गए तलाक आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा—जज ने एक ऐसी धारा का सहारा लिया जो कानून में मौजूद ही नहीं है। मामला दोबारा सुना जाएगा और संबंधित जज को वैवाहिक कानूनों की अनिवार्य ट्रेनिंग से गुजरना होगा।
नई दिल्ली
पटियाला हाउस फैमिली कोर्ट में ऐसा फैसला निकला जिसने दिल्ली हाईकोर्ट तक हक्का-बक्का कर दिया—जज ने तलाक का आदेश उस धारा 28A के आधार पर दे दिया… जो भारतीय कानूनों में है ही नहीं! न गवाह सुने, न सबूत लिए, और शादी टूटने की पूरी पटकथा एक ऐसी धारा पर लिख दी जो सिर्फ फैसले में थी—कानून की किताबों में नहीं। हाईकोर्ट ने पूरे आदेश को कूड़ेदान में फेंकते हुए कहा—“न्यायिक अधिकारी काल्पनिक कानून बनाकर कैसे तलाक दे सकता है?”
दिल्ली हाईकोर्ट ने पटियाला हाउस फैमिली कोर्ट के उस विवादित तलाक आदेश को रद्द कर दिया है जिसने कानून के बुनियादी सिद्धांतों तक को हिला दिया। यही वो फैसला था जिसमें फैमिली कोर्ट जज ने स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 28A का हवाला दिया—जो देश के किसी भी कानून में मौजूद ही नहीं है।
जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने इस “अकल्पनीय त्रुटि” पर कड़ी नाराज़गी जताते हुए स्पष्ट कहा कि फैमिली कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम (HMA) और विशेष विवाह अधिनियम (SMA) को आपस में मिला-जुलाकर एक ऐसा मिश्रण बना दिया जिसमें कानून की कोई पहचान ही नहीं रह गई।
गवाही बंद, सबूत बंद… और सीधे तलाक!
मामला और भी हैरान करने वाला वहां हो गया, जब कोर्ट ने पाया कि जज ने:
- पत्नी की गवाही का अधिकार पहली ही तारीख पर बंद कर दिया,
- फिर पति को भी गवाही देने का मौका नहीं दिया,
- और बिना किसी मौखिक साक्ष्य के सीधे तलाक की डिक्री जारी कर दी।
हाईकोर्ट ने इसे “प्राकृतिक न्याय और स्थापित प्रक्रियाओं का सीधा उल्लंघन” बताया।
विवाह किस कानून के तहत हुआ—इस पर भी भ्रम
पति का कहना था कि शादी 26 सितंबर 2011 को SMA के तहत रजिस्टर हुई थी।
पत्नी का दावा था कि विवाह 11 दिसंबर 2011 को हिंदू रीति से हुआ था।
यही विवाद था जिस पर अदालत में साफ़-साफ़ साक्ष्य की ज़रूरत थी—but फैमिली कोर्ट ने बिना सुने ही मामला खत्म कर दिया।
सबसे चौंकाने वाली बात: एक गैर-मौजूद धारा पर पूरा फैसला
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में लिखा—
“यह देखकर हैरानी हुई कि विद्वान जज ने SMA की धारा 28A का सहारा लिया, जबकि ऐसी कोई धारा कानून में है ही नहीं… यह समझ से परे है कि एक न्यायिक अधिकारी अस्तित्वहीन प्रावधान पर कैसे भरोसा कर सकता है।”
यही “काल्पनिक आधार” इस पूरे मामले का सबसे बड़ा विस्फोट बिंदु बना।
जज की टिप्पणी पर भी फटकार
फैमिली कोर्ट जज ने लिखा था कि “SMA के तहत विवाह पवित्र मिलन नहीं होता।”
हाईकोर्ट ने इसे “कानूनी रूप से अनुचित और गलत व्याख्या” बताते हुए कहा:
“SMA एक धर्मनिरपेक्ष कोड है और यह विवाह की गरिमा या पवित्रता को कम नहीं करता।”
पुराना पैटर्न भी सामने आया
बेंच ने रिकॉर्ड से पाया कि यही जज अन्य मामलों—उपिंदर कौर मल्होत्रा, लवली शर्मा वगैरह—में भी इसी तरह प्रक्रिया से हटकर फैसले देते रहे थे और “प्रक्रियात्मक लचीलेपन” का बहाना बनाकर वैधानिक अनिवार्यताओं को दरकिनार करते रहे।
हाईकोर्ट का अंतिम आदेश
28 मार्च 2024 का तलाक आदेश रद्द।
मामला दोबारा सुनवाई (de novo adjudication) के लिए प्रधान न्यायाधीश, फैमिली कोर्ट को भेजा गया।
दोनों पक्षों को मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य देने का पूरा अवसर दिया जाए।
संबंधित जज को वैवाहिक कानूनों पर एक “उपयुक्त और व्यापक रिफ्रेशर ट्रेनिंग प्रोग्राम” अनिवार्य रूप से पूरा करना होगा।
आदेश के अनुसार दोनों पक्ष अब 5 दिसंबर 2025 को पटियाला हाउस फैमिली कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश के समक्ष उपस्थित होंगे।
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