नदियों को अपने स्वभाव में लौटाना है तो समाज और सत्ता के बीच तालमेल बैठाना जरूरी: गोविंदाचार्य

नई दिल्ली 

राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संयोजक और चिंतन-विचारक केएन गोविंदाचार्य ने कहा है कि यदि देश की नदियों को बचाना है तो समाज और सत्ता के बीच मजबूत तालमेल बैठाना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि आज हम प्रकृति का हश्र देखा रहे हैं। यदि हमें यह हश्र रोकना है तो नदियों को अपने स्वभाव में लौटाना होगा।

गोविंदाचार्य तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित नदी संवाद कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि समाज और सत्ता के बीच मजबूत तालमेल विश्वास पर आधारित हो। तभी हम नदियों को अपने स्वभाव में लौटा पाएंगे।

जैव विविधता नष्ट, उपाय नहीं हुए तो भयानक स्थिति बन जाएगी
गोविंदाचार्य ने आगाह किया कि वर्ष 2030 तक कोई उपाय नहीं किए जाने की स्थिति में भयानक स्थिति पैदा हो जाएगी। उन्होंने कहा कि उपनिवेशवाद, हथियारवाद, सरकारवाद और बाजारवाद से पिछले 500 सालों में विकास के नाम पर विनाश हुआ है। मानव केंद्रित भौतिक विकास से भारत में पिछले 60 सालों में 50 फीसदी जैव विविधता नष्ट हो गई है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक पहलुओं को लेकर सबको विचार करना चाहिए, क्योंकि समय अधिष्ठान परिवर्तन का है और अब मानव केंद्रित विकास की जगह प्रकृति केंद्रित विकास की आवश्यकता है जिसमें जल, जंगल, जमीन, जानवर का जन के साथ सामंजस्य हो।

वर्ष 2130 तक खत्म हो जाएगा जैव ईंधन
कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में डॉ. रवि चोपड़ा ने कहा कि सागरों का जलस्तर बढ़ता जा रहा है। इस कारण मुंबई, सूरत और समुद्र किनारे के अन्य शहरों के लिए खतरा बढ़ रहा है। इससे विस्थापन होगा और करोड़ों लोगों के सामने भुखमरी की समस्या पैदा होगी। उन्होंने कहा कि जैव ईंधन की खपत दिन पर दिन बढ़ती जा रही है।

उन्होंने कहा कि इसे बनने में छह करोड़ वर्ष लग जाते हैं, लेकिन साल 1750 के बाद जैव ईंधन का उपभोग इतना बढ़ा कि वर्ष 2130 तक समाप्त हो जाएगा। कार्यक्रम में स्वामी चिन्मयानंद ने कहा कि प्रांत और देश की सरकारों को ग्रैंड और ग्राउंड प्लान बनाने की जरूरत है।

हेमंत ध्यानी ने कहा कि हिमालय की 50 किलोमीटर परिधि में गंगा बेसिन में निवास करने वाले 60 करोड़ लोगों के भोजन और पानी की व्यवस्था है। यहां सैकड़ों बांध बनाने के लिए विचाराधीन है। चौड़ीकरण और निर्माण के नाम पर सैकड़ों हेक्टेयर वन काटे जा चुके हैं।

मलूक पीठाधीश्वर राजेंद्र दास महाराज ने कहा कि यमुना मिशन के माध्यम से एक मिसाल कायम की जा सकती है। गंगा यमुना तभी पवित्र होगी, जब सहायक नदियों को भी पवित्र और शुद्ध करना होगा। इसके लिए अधिकाधिक पेड़ लगना होगा।

वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने भी नदी संवाद के दौरान प्रस्तावित नौ प्रस्तावों का समर्थन करते हुए कहा कि अब यमुना के लिए जवाबदेही तय करने का समय आ गया है। यमुना की सफाई के नाम पर अब तक करीब सात हजार करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं, आखिर यह पैसा गया कहां; इसके लेखा जोखा लेने की जरूरत है।  यमुना मिशन के प्रदीप बंसल ने यमुना नदी कि निर्मलता के लिए नौ प्रस्ताव प्रस्तुत किए।

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