नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाई कोर्ट (High Court) में एड-हॉक जजों (Ad hoc Judges) की नियुक्ति की प्रक्रिया को और सरल कर दिया है। देशभर में लंबित आपराधिक मामलों के तेजी से निपटारे के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में निर्धारित शर्तों में ढील दी है। अब हाई कोर्ट में 10% रिक्त पदों पर भी एड-हॉक जजों की नियुक्ति संभव होगी, जो पहले 20% थी।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने फैसला सुनाया कि हाई कोर्ट में एड-हॉक जजों की संख्या को दो से पांच के बीच रखा जाएगा। ये जज हाई कोर्ट के मौजूदा जस्टिस की अध्यक्षता में बैठेंगे और लंबित आपराधिक अपीलों का निपटारा करेंगे।
क्या है अनुच्छेद 224A?
संविधान का अनुच्छेद 224A हाई कोर्ट में रिटायर्ड जजों की नियुक्ति से संबंधित है। इसके तहत, किसी राज्य के हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से, सेवानिवृत्त जजों को फिर से नियुक्त करने का अधिकार है। इन जजों को सभी सुविधाएं, शक्तियां और विशेषाधिकार तो मिलेंगे, लेकिन उन्हें हाई कोर्ट का नियमित जज नहीं माना जाएगा।
क्या बदला सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले में?
✅ पहले 20% सीटें खाली होने पर ही नियुक्ति संभव थी, अब 10% रिक्त पदों पर भी एड-हॉक जजों की नियुक्ति हो सकेगी।
✅ पहले सिर्फ एड-हॉक जजों की बेंच बनती थी, अब मौजूदा जजों की अध्यक्षता में बैठकर फैसले लेंगे।
✅ पुराने मामलों की तेजी से सुनवाई के लिए कोर्ट ने 2021 के कुछ निर्देशों को स्थगित रखा।
2021 के आदेश में क्या था?
अप्रैल 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट में लंबित मामलों के बढ़ते बोझ को देखते हुए, संविधान के अनुच्छेद 224A के तहत एड-हॉक जजों की नियुक्ति की अनुमति दी थी। तब यह निर्देश दिया गया था कि हाई कोर्ट की कुल स्वीकृत संख्या का 20% से अधिक पद खाली होने पर ही नियुक्ति होगी। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस शर्त में ढील देते हुए इसे 10% कर दिया है, जिससे जजों की नियुक्ति प्रक्रिया को और तेज किया जा सकेगा।
अब हाई कोर्ट में जल्द निपटेंगे आपराधिक मामले
इस फैसले के तहत सभी हाई कोर्ट अब अनुच्छेद 224A के तहत दो से पांच एड-हॉक जजों की नियुक्ति कर सकते हैं। न्यायिक प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए यह कदम महत्वपूर्ण साबित होगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ये जज नियमित जजों के साथ मिलकर काम करेंगे, जिससे न्यायिक प्रणाली पर दबाव कम होगा।
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