मेरठ
महाभारत काल के अबूझ रहस्यों की तलाश में अब हस्तिनापुर में खुदाई कराई जाएगी। इसके लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की टीम ने मेरठ जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर हस्तिनापुर में खुदाई की तैयारी शुरू कर दी है। महाकाव्य ‘महाभारत’ में कौरवों की राजधानी हस्तिनापुर की कथा से जुड़े रहस्यों को जानने के लिए एएसआई ने यह कदम उठाने का फैसला किया है। इससे पहले पिछले साल अगस्त में लगातार बारिश के बाद हस्तिनापुर टीले में तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के मिट्टी के बर्तनों की खोज की गई थी।
हस्तिनापुर के इतिहास की जड़ें महाभारत काल से जुड़ी हैं। महाभारत के अनुसार हस्तिनापुर कुरु वंश की राजधानी हुआ करती थी। हस्तिनापुर महाभारत काल का साक्षी रहा है, जिसके पुख्ता प्रमाण खोजने का कार्य जारी है। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण संस्थान ने हाल में बड़ी उम्मीदों के साथ हस्तिनापुर में डेरा डाला है। इतिहासविदों ने माना है कि हर टीले में इतिहास दफन है।
आपको बता दें कि 2020 के केंद्रीय बजट में राखीगढ़ी (हरियाणा), शिवसागर (असम), धोलावीरा (गुजरात) और आदिचल्लानूर (तमिलनाडु) के साथ हस्तिनापुर को आइकॉनकि साइटों के रूप में विकसित करने के लिए चिह्नित किया गया था। हस्तिनापुर उन पांच स्थलों में शामिल है, जिसे विकास केंद्र की ओर से प्रस्तावित किया गया है।
एएसआई ने अभी तक टीले वाले क्षेत्रों के संरक्षण और पुराने मंदिरों को नया रूप देने पर ध्यान केंद्रित किया है। थोड़ा निर्माण भी हुआ है। सितंबर के बाद जब मानसून खत्म हो जाएगा तब खुदाई का काम शुरू किया जाएगा।
गंगा की बाढ़ में बह गया था हस्तिनापुर
हस्तिनापुर में पहली खुदाई 1952 में हुई थी। जब आर्कियोलॉजिस्ट प्रोफेसर बीबी लाल ने निष्कर्ष निकाला कि महाभारत काल लगभग 900 ईसा पूर्व था और शहर गंगा की बाढ़ से बह गया था। प्रोफेसर बीबी लाल वही हैं जोअयोध्या में बाबरी ढांचे के नीचे 12 मंदिर स्तंभों की ‘खोज’ के लिए जाने जाते हैं।
मोदीनगर के मुल्तानिमल मोदी कॉलेज में इतिहास के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. केके शर्मा ने कहा कि 1952 बाद कोई ठोस विकास नहीं हुआ। फिर 2006 में हस्तिनापुर से लगभग 90 किमी दूर सिनौली में एक प्राचीन कब्रगाह की खोज और 2018 में एक तांबे के घोड़े से चलने वाले युद्ध रथ की खोज ने इस सिद्धांत को दर्शाया कि वे महाभारत काल के थे क्योंकि महाकाव्य में रथों का जिक्र किया गया है। शर्मा 2006 की सिनौली खुदाई का हिस्सा थे।
एएसआई ने डेरा जमाया
एएसआई के अधिकारी हस्तिनापुर में डेरा डाल चुके हैं।अधिकारियों ने पांडव टीले को भी देखा, जहां महाकाव्य कहता है कि पांडव रहते थे। अभियान की शुरुआत के लिए वहां दो स्थलों को चिह्नित किया गया है। क्या हस्तिनापुर खोल सकता है सिनौली से बड़ा राज? यह केवल आने वाला समय ही बताएगा।
उत्खनन का पहला चरण शुरू
अधीक्षण पुरातत्वविद मेरठ मंडल डीबी गणनायक की अगुवाई में आधुनिक उपकरणों के जरिए यहां उत्खनन का पहला चरण शुरू कर दिया गया है। अमृतकूप के पास स्थित टीले में एक गोलाकार आकृति मिली है, जिसमें नए साक्ष्य मिल सकते हैं। पुरातत्व विभाग की टीम ने पांडव टीले में ट्रेंच से मिट्टी हटाई, जहां से कुछ बर्तन मिले हैं। प्राचीन दीवारों की सफाई कर नए सिरे से व्यापक स्तर पर चरणबद्ध तरीके से खनन की तैयारी की गई है। (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग) एएसआइ के संयुक्त निदेशक डा. संजय मंजुल और असिस्टेंट ज्वाइंट डायरेक्टर आरती ने बताया कि सितंबर के बाद हस्तिनापुर में उत्खनन का नया युग शुरू होगा। यहां सिनौली जैसे महाभारतकालीन साक्ष्य मिल सकते हैं
ईसा पूर्व के मिट्टी के बर्तन मिले
पिछले साल अगस्त में लगातार बारिश के बाद हस्तिनापुर टीले में तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के मिट्टी के बर्तनों की खोज की गई थी। डिजाइन बरेली की आंवला तहसील के एक प्राचीन टीले, अहिच्छत्र के समान था। अहिच्छत्र का जिक्र ‘महाभारत’ में उत्तरी पांचाल की राजधानी के रूप में किया गया है। वास्तव में यह हस्तिनापुर, मथुरा, कुरुक्षेत्र और काम्पिल्य जैसे ‘महाभारत स्थलों’ से मिट्टी के बर्तन थे जो बीबी लाल मानते थे कि यह सबूत था जो उन सभी को जोड़ता था।
सिनौली में मिले थे 5000 साल पुराने रथ
डा. अमित पाठक बताते हैं कि 2005 और 2018 में हस्तिनापुर से 80 किलोमीटर दूर बागपत के सिनौली में खनन कराया गया। यहां पर 116 शव दफन मिले, जो दुनिया में पहली बार देखे गए। यहीं पर करीब पांच हजार साल पुराना एक रथ मिला, जिसे महाभारत काल की ऐतिहासिकता का सबसे बड़ा साक्ष्य माना गया। एक ताबूत भी मिला, जिसकी एएसआइ अब तक पड़ताल कर रही है
बूढ़ी गंगा में मिले थे महाभारतकालीन बर्तन
1950-51 में भारतीय पुरातत्व के पितामह प्रो. बीबी लाल ने हस्तिनापुर में एक टीले का उत्खनन किया। इस दौरान इतिहासकारों के बीच यह बहस छिड़ी कि क्या यह वही कौरव-पांडवों वाली हस्तिनापुर है? प्रो. बीबी लाल ने उत्खनन कराया, जहां से कांच और क्रिस्टल से बने रंगीन बर्तनों के टुकड़े मिले, जो करीब चार हजार वर्ष पुराने आंके गए। इतिहासकार डा. अमित पाठक कहते हैं कि ऐसे बर्तन दुनिया के किसी सभ्यता में पहली बार मिले। प्रो. बीबी लाल ने बूढ़ी गंगा में उत्खनन कराया और बोरवेल से यही बर्तन दोबारा मिले। इससे महाभारतकालीन विकसित सभ्यता की पुष्टि हो गई। बाद में यह सभ्यता गंगा की बाढ़ में बह गई थी।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, पांडव और कौरवों के मध्य भीषण युद्ध हुआ था। इस युद्ध में पांडव जीत गए थे और उन्होंने 36 सालों तक हस्तिनापुर पर राज किया था। हस्तिनापुर में महाभारत कालीन पांडव टीला समेत कई अन्य ऐतिहासिक स्थल मौजूद हैं जो महाभारत काल की याद ताजा कर देते हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने पांडव टीले को कई वर्ष पूर्व संरक्षित घोषित करके अपना दायित्व निभा लिया था। अब इनके संरक्षण का कार्य शुरू हो गया है।
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