भवन बदहाल था। चारों ओर से झाड़ियों से अटा था। चार दीवारी भी नहीं दिखती थी। सर्पों का बसेरा था। पीने का पानी नहीं था। बाहर एक चबूतरे पर दो ड्रम थे। उसी से पानी पीते थे और नीचे पानी गिरता था। कीचड़ हो जाती थी। ऑफिस सीलनभरा और एक छोटे कमरे में चलता था। उसमें धूल से अटी और बेतरतीब पड़ी महापुरुषों की तस्वीरें इसकी दुर्दशा की कहानी बयां करने को पर्याप्त हैं।
यह कहानी है राजस्थान में भरतपुर जिले की तहसील नदबई के ग्राम पंचायत मुख्यालय बछामदी के राजकीय सीनियर सैकण्डरी स्कूल की। दरअसल यह इस विद्यालय की डेढ़ साल पहले की कहानी है। पर अब बदल चुकी है। या यूं कहिए यह कहानी इसके ठीक उलट हो चुकी है। इसकी आवोहवा बदल चुकी है। विद्यालय शैक्षणिक माहौल की नई इबारत लिख रहा है। और यह सब बदलाव हो रहा है इस विद्यालय के प्रधानाचार्य सुनील चतुर्वेदी के प्रयासों से। वे ‘मेरा विद्यालय मेरा तीर्थ’ की भावना से विद्यालय की कायापलट करने में लगे हैं। और उनकी इन कोशिशों में भरपूर साथ मिल रहा है बछामदी के ग्रामीणों और विद्यालय के स्टॉफ का। सुनील चतुर्वेदी अपने निजी सम्पर्कों से गांव से बाहर के भामाशाहों को भी इस मुहिम से जोड़ रहे हैं। वे ‘चाहता हूं देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं’ की भावना लेकर अपने संकल्पों को पूरा करने में लगे हैं।