चेतना की ऊर्जा का पर्व: मकर संक्रांति

मकर संक्रांति


 

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अतुल टंडन


 

भारतीय संस्कृति में सूर्य के राशि संक्रमण को विशेष महत्व दिया गया है। सूर्य के राशि परिवर्तन को ‘संक्रांति’ नामक पर्व माना गया है। इसी कारण सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना ‘मकर संक्रांति’ कहलाता है।

मकर संक्रांति से देवताओं के दिन का शुभारंभ होने की मान्यता के अनुसार यह एक प्रकार से देवताओं का प्रभातकाल है। संक्रांति के पुण्यकाल में स्नान करने के उपरांत लोग अलाव जलाकर गरीबों को तिल से बनी वस्तुओं रेवड़ी, गजक, लड्डू आदि दान करने का विधान है क्योंकि तिल इस मौसम में काफ़ी पौष्टिकता देता है।

उत्तर भारत में मकर संक्रांति के दिन श्रद्धालु भगवान को खिचड़ी का भोग लगाकर इसका प्रसाद ग्रहण करते हैं। यही वजह है कि मकर संक्रांति को उत्तर भारत में खिचड़ी कहा जाने लगा है। 

तमिलनाडु में मकर संक्रांति को ‘पोंगल’ के रूप में मनाया जाता है। जबकि गुजरात में पतंग उड़ाकर मनाया जाता है। महाराष्ट्र में खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन होता है। असम में ‘बिहू’ नामक पर्व होता है। 

वस्तुत: मकर संक्रांति के साथ सूर्य के उत्तरायण होते ही दिन क्रमश: बढ़ने लगता है और रात्रि की अवधि कम होने लगती है। सूर्य, जिन्हें हमारी संस्कृति में देवता की मान्यता है। हमारी पृथ्वी के लिए प्रकाश और ऊर्जा का स्त्रोत है। दिन बड़े होने पर हमें सूर्य की ऊर्जा अधिक अवधि तक मिलती है। इससे प्राणियों में चेतना आती है और उनकी कार्य शक्ति में वृद्धि होती है। सूर्य का प्रकाश हमारे अंतस के अंधकार को भी दूर करने में सक्षम है।


(नारी चेतना एवं बाल बोध मासिक पत्रिका ‘वामांगी’ से साभार)

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