नई दिल्ली
भारत सरकार जल्द ही सरकारी बैंकों (Government Banks) में विदेशी निवेश (FDI) की सीमा 20% से बढ़ाकर 49% करने की योजना पर काम कर रही है। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस प्रस्ताव पर वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के बीच पिछले कुछ महीनों से चर्चा चल रही है। हालांकि अभी तक अंतिम फैसला नहीं लिया गया है।
बढ़ती विदेशी दिलचस्पी, निवेशकों की कतार
पिछले कुछ समय में भारत के बैंकिंग सेक्टर में विदेशी निवेशकों की दिलचस्पी लगातार बढ़ी है।
दुबई की एमिरेट्स एनबीडी (Emirates NBD) ने हाल ही में 3 अरब डॉलर का निवेश कर RBL बैंक में 60% हिस्सेदारी खरीदी है।
जापान की सुमितोमो मित्सुई बैंकिंग कॉरपोरेशन (SMBC) ने 1.6 अरब डॉलर में YES बैंक में 20% हिस्सेदारी ली थी, जिसे बाद में बढ़ाकर 24.99% कर दिया गया।
विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर सरकारी बैंकों में भी विदेशी पूंजी की सीमा बढ़ाई जाती है, तो उन्हें पूंजी जुटाने में आसानी होगी और बैंकिंग सेक्टर में प्रतिस्पर्धा (competition) बढ़ेगी।
प्राइवेट बैंकों से अंतर घटाने की कोशिश
फिलहाल प्राइवेट सेक्टर बैंकों में विदेशी निवेश की अधिकतम सीमा 74% है, जबकि सरकारी बैंकों में यह सीमा केवल 20% है। प्रस्तावित बदलाव इस अंतर को घटाने की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है।
एक सीनियर सरकारी अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया —
“यह कदम विदेशी निवेशकों के लिए आकर्षक अवसर पैदा करेगा और सरकारी बैंकों की वित्तीय स्थिति को मजबूत बनाएगा।”
सरकार की हिस्सेदारी 51% से नीचे नहीं जाएगी
सूत्रों के अनुसार, यह प्रस्ताव सिर्फ विदेशी पूंजी आकर्षित करने का प्रयास है — सरकार अपनी हिस्सेदारी 51% से कम नहीं करेगी।
वर्तमान में केंद्र सरकार सभी 12 सरकारी बैंकों में 51% से अधिक हिस्सेदारी रखती है।
इन बैंकों के पास 171 ट्रिलियन रुपये (करीब 1.95 ट्रिलियन डॉलर) के एसेट्स हैं, जो पूरे भारतीय बैंकिंग सेक्टर के 55% हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं।
किस बैंक में कितना विदेशी निवेश?
स्टॉक एक्सचेंज के आँकड़ों के मुताबिक —
केनरा बैंक में सबसे अधिक विदेशी निवेश (करीब 12%) है।
यूको बैंक में विदेशी निवेश लगभग शून्य के बराबर है।
RBI की सतर्कता और सुरक्षा कवच
RBI ने हाल के महीनों में बैंकिंग सेक्टर में कई नियामक सुधार (regulatory reforms) किए हैं। अब केंद्रीय बैंक विदेशी बैंकों को भारतीय प्राइवेट बैंकों में बड़ी हिस्सेदारी की अनुमति देने को लेकर भी अधिक लचीला रुख अपना रहा है।
हालांकि, RBI यह सुनिश्चित करेगा कि किसी भी विदेशी निवेशक के पास 10% से अधिक वोटिंग अधिकार न हों, ताकि किसी एक पक्ष को बैंक के निर्णयों पर पूर्ण नियंत्रण न मिल सके।
एक्सपर्ट व्यू
बैंकिंग विशेषज्ञों का मानना है कि सरकारी बैंक अभी भी एनपीए (Non-Performing Assets) और कम रिटर्न ऑन इक्विटी (ROE) जैसी चुनौतियों से जूझ रहे हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में शाखाएँ खोलने और सामाजिक योजनाओं के तहत लोन वितरण जैसी सरकारी जिम्मेदारियाँ उन्हें प्राइवेट बैंकों के मुकाबले कमजोर बनाती हैं।
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