मां, मां होती है…

12 मई, मातृ दिवस 

सीए विनय गर्ग ‘मोहित’, भरतपुर 


मां, मां होती है
जब हम गर्भ में आते हैं
तब से कष्ट सह रही होती है।
आखिर वो मां होती है।।

हमें सूखे में सुला कर
खुद गीले में सोती है।
हमें सुलाने की खातिर
पूरी रात जाग रही होती है
फिर भी उसके चेहरे पर
कोई शिकन नहीं होती है।।
आखिर वो मां होती है।।

हम कहीं गिर न जाएं, इसलिए
वो हमारी उंगली पकड़े होती है।
अगर हम खाना न खाएं
तो खुद भूखी सो रही होती है।
और तो और

कहीं हम गंदगी कर दें तो
वो उसे भी धो रही होती है।
आखिर वो मां होती है।।

जब हम बड़े होते हैं और,
कहीं रोजगार पर लगते हैं तो
वो मोहल्ले में मिठाई
बांट रही होती है।
और मन के किसी कोने में
अपनी बहू के सपने
देख रही होती है।
आखिर वो मां होती है।।
क्यूं की मां तो मां होती है।

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