जिंदगी की राह पे हम चल पड़े, कभी थे जो हम अपनी जिद पर अड़े।
ना उम्र की परवाह थी, ना जिंदगी से कोई शिकायत थी, मन के बुनते अनगिनत सपने ही, हमारी सबसे बड़ी आयत थी।
जहां रात कटती थी सबके साथ, टिमटिमाते तारों के नीचे, आज छवि उभर के आती है उन सब की, अपनी आंखों को मीचे।
मां जहां कई बार खाने को पूछने से नहीं थी थकती, आज उन्हीं के खाने की खुशबू मन में है महकती। पिताजी के कंधों पर बैठकर जहां घूमते थे सारा मेला, अब समझ आता है उन कंधों ने कितना कुछ भार था झेला।
एक अटपटी सी ज़िद होती थी नए खिलौनों को लेकर, आज सिर्फ वो यादें हैं जिन्हें जमा किया है, उन्हीं लम्हों में जी कर।
याद आता है अभी भी उन हसीन पलों का चेहरा, काश यह वक्त आज भी होता वहीं पर ठहरा।
( एपी. इंडस्ट्रीज, E-16, इंडस्ट्रियल एरिया, सीकर। लेखक IIT, Dhanbad में B.Tech. (इलेक्ट्रॉनिक्स) में अध्ययनरत हैं)