घर
डॉ. अलका अग्रवाल, सेवानिवृत कॉलेज प्राचार्य
सुबह उठी तो कुछ शोर सा सुनाई दिया । मेरे सामने के मकान में कॉलेज के सेवनिवृत्त प्राचार्य रहते हैं, उनके यहां चोरी हो गई थी। पड़ोस वाली आंटी से बात करने पर पता चला कि चोर खिड़की तोड़कर अंदर घुसे थे।…. शायद उन्हें कुछ सुंघा भी दिया था, इसलिए गहरी नींद के कारण उन्हें पता ही नहीं चला चोरी होने का। सुबह होने पर जब बाहर निकलने के लिए उन्होंने दरवाजा खोलना चाहा तो बाहर की सांकल बंद थी। तब पड़ोस में फोन करके उन्होंने बाहर से बंद सभी दरवाज़े खुलवाए।
सुबह की भाग दौड़ में उनके यहां जाना संभव ही नहीं हो पाया था। इसलिए शाम को उनके घर गई। चोरी में उनकी सोने की अंगूठी, चेन आदि चले गए थे। समझदार लोग अपने घर में ज्यादा रुपए , जेवर नहीं रखते, इसलिए वे बच गए। बेटी की शादी के लिए खरीदी गई कुछ महंगी साड़ियां भी चोर ले गया था।…. पर उनके चेहरे पर कोई दुख नजर नहीं आ रहा था। वह इस आदर्श का मूर्तिमान स्वरूप दिखाई दे रहे थे कि विद्वान और बुद्धिमान धन की हानि का शोक नहीं मनाते। बड़े मजे से हंसकर बता रहे थे कि चोर कितने मूर्ख थे।
” हमारी शादी की चांदी की थाली, कटोरी, गिलास सब छोड़ गए क्योंकि पुराने होने के कारण काले हो गए थे ना। बेचारे चोरों को लगा ही नहीं कि चांदी के हैं।”
फिर मुझे चाय और बिस्किट परोसते हुए आंटी बोलीं, “अब जो चोरी हुई सो हुई, लेकिन इस बहाने इतने लोग घर आए। रौनक लगी हुई है, सुबह से घर में।”
मैं उनका साक्षी भाव देखकर अवाक थी।
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