वापसी की चाह

दिशा पंवार, फरीदाबाद
ये शहर न होता तो मैं गांव में घर बनाता,
पक्की ईंटों से नहीं कच्ची मिट्टी से सजाता।
अंधेरे से डर भी जाता जो कभी,
कच्चे दीए से रोशनी कराता।
चमकते जुगनू के झुंड में,
सैर आसमां की कर आता।
ये शहर…….
फूल चुनकर ले आता बगिया से,
घर को मंदिर बनाता।
कांटे मिल भी जाते राह में,
फिर भी लहू के रंग से मुस्कुराता।
ये शहर…….

खेत की मुंडेर से बैठकर ही,
बीज मेहनत के बो आता।
ख्वाहिशें ज्यादा न हो गर आदमी की,
पेट रोटी से भर ही जाता।
ये शहर……..

तैरती नाव की सवारी कर,
पार नदिया के उतर जाता।
लेकर सहारा लहर छोटी का,
बात समंदर से कर आता।
ये शहर…..

बात इतनी सी तो थी कहने को,
पर कैसे कहानी बनाता।
घर गांव में होता तो ही तो
कोई निशानी बनाता।
ये शहर…..
(लेखिका राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय सीही सैक्टर 7 फरीदाबाद, हरियाणा में संस्कृत की प्रवक्ता हैं)
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