RSS के वरिष्ठ प्रचारक और कला साधक पद्मश्री बाबा योगेंद्र का निधन

लखनऊ 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक व संस्कार भारती के संरक्षक पद्मश्री बाबा योगेंद्र का 98 वर्ष की आयु में शुक्रवार को निधन हो गया बाबा योगेंद्र पिछले कुछ समय से अस्वस्थ्य थे तथा उनका लखनऊ स्थित अस्पताल में उपचार चल रहा था

बाबा योगेंद्र कला के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था संस्कार भारती के अनेक वर्ष तक राष्ट्रीय संगठन मंत्री रहे अभावों में पले बाबा योगेंद्र का जन्म 7 जनवरी, 1924 को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में हुआ था बचपन में गांव में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में जाने लगे इसके बाद गोरखपुर में पढ़ाई के दौरान उनका संपर्क संघ के प्रचारक नानाजी देशमुख से हुआ संघ का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद वह प्रचारक निकले

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से पद्मश्री ग्रहण करते हुए बाबा योगेंद्र

बाबा जोगेंद्र गोरखपुर, प्रयाग, बरेली, बदायूं और सीतापुर में प्रचारक रहे। वर्ष 1981 में जब संस्कार भारती संगठन बना, तो बाबा योगेंद्र को इसका कार्य सौंपा गया। कला साधकों के मन में उन्होंने राष्ट्र भाव का जागरण किया। संघ शिक्षा वर्गो में वर्षों प्रेरक भारत दर्शन कार्यक्रम का अद्भुत संचालन किया।

कला साधक की ऐसी कठिन साधना
संस्कार भारती आज कला के क्षेत्र में अग्रणी संस्था है तो इसका श्रेय बाबा योगेंद्र को ही जाता है। उनके मन में एक सुप्त कलाकार सदा मचलता रहा। वे  ऐसे ही कलाकार थे , जिन्होंने हजारों कला साधकों को एक माला में पिरोने का कठिन काम कर दिखाया है। योगेन्द्र शुरू से ही बड़े कलाकारों के चक्कर में नहीं पड़े। उन्होंने नए लोगों को मंच दिया और धीरे-धीरे वे ही बड़े कलाकार बन गए । इस प्रकार उन्होंने कलाकारों की नई  सेना तैयार कर दी। जो लोग भी बाबाजी को नजदीक से जानते हैं उनको पता है कि बाबा के जीवन में थकान नाम की कोई चिड़िया नहीं थी। वे सदैव आनंदित रहे।

बाबा योगेंद्र ने देश-विभाजन को  बहुत नजदीक से देखा था। संघ शिक्षा वर्ग में उन्होंने इस पर एक प्रदर्शनी बनाई। जिसने भी यह प्रदर्शनी देखी, वह अपनी आंखें  पोंछने को मजबूर हो गया। फिर तो ऐसी प्रदर्शिनियों का सिलसिला चल पड़ा। शिवाजी, धर्म गंगा, जनता की पुकार, जलता कश्मीर, संकट में गोमाता, 1857 के स्वाधीनता संग्राम की अमर गाथा, विदेशी षड्यन्त्र, माँ की पुकार…आदि ने संवेदनशील मनों को झकझोर दिया। ‘भारत की विश्व को देन’ नामक प्रदर्शिनी को विदेशों में भी प्रशंसा मिली।

उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध वकील बाबू विजय बहादुर श्रीवास्तव के घर जन्मे योगेन्द्र जी के सिर से दो वर्ष की अवस्था में ही माँ का साया उठ गया। फिर उन्हें पड़ोस के एक परिवार में बेच दिया गया। इसके पीछे यह मान्यता थी कि इससे बच्चा दीर्घायु होगा। उस पड़ोसी माँ ने ही अगले दस साल तक उन्हें पाला। वकील साहब कांग्रेस और आर्यसमाज से जुड़े थे। जब मोहल्ले में संघ की शाखा लगने लगी, तो उन्होंने योगेन्द्र को भी वहाँ जाने के लिए कहा। छात्र जीवन में उनका सम्पर्क गोरखपुर में संघ के प्रचारक नानाजी देशमुख से हुआ। 

बाबा योगेन्द्र यद्यपि सायं शाखा में जाते थे; पर नानाजी प्रतिदिन प्रातः उन्हें जगाने आते थे, जिससे वे पढ़ सकें। एक बार तो तेज बुखार की स्थिति में नानाजी उन्हें कन्धे पर लादकर डेढ़ कि.मी. पैदल चलकर पडरौना गये और उनका इलाज कराया। इसका प्रभाव योगेन्द्र जी पर इतना पड़ा कि उन्होंने शिक्षा पूर्ण कर स्वयं को संघ कार्य के लिए ही समर्पित करने का निश्चय कर लिया।

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