प्रयागराज
कोविड-19 पॉजिटिव आने के बाद अपने पिता को एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया। अस्पताल में इलाज चल रहा है, यह समझ कर वह अपने पिता को फल और जूस भिजवाता रहा। जब उसने पिता से मिलने की जिद की तो अस्पताल ने उसे पिता का डेथ सर्टिफिकेट थमा दिया। अब वह यह गुहार लगाता अस्पताल के चक्कर काट रहा है कि – पिता की डेड बॉडी तो मुझे दे दे। उसे डेड बॉडी तो नहीं मिली, पर डेथ सर्टिफिकेट जरूर मिल गया। अस्पताल का स्टाफ मृतक को जूस व खाना पहुंचाने के लिए परिवारवालों से पैसे भी ऐंठता रहा।
दिल को हिला देने वाला यह वाकया उत्तर प्रदेश की तीर्थ नगरी प्रयागराज का है। शहर के धूमनगंज इलाके के रहने वाले और एजी ऑफिस से रिटायर बच्ची लाल, स्वरूपरानी नेहरू हॉस्पिटल का चक्कर लगा रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उन्होंने अपने पिता मोतीलाल (82) को कोरोना पॉजिटिव के चलते इस हॉस्पिटल में एडमिट कराया। उनको 12 अप्रेल को बुखार आ रहा था। जब प्राइवेट हॉस्पिटल गए तो वहां पहले इनका कोविड-19 टेस्ट कराने को कहा। जांच कराई तो रिपोर्ट पॉजिटिव आई। उसके बाद उन्होंने कई प्राइवेट हॉस्पिटल में ट्राई किया, लेकिन उनके पिता कहीं भर्ती नहीं किया गया। इस पर उन्होंने इमरजेंसी नंबर पर फोन किया तब जाकर उनको प्रयागराज स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय (एसआरएन) हॉस्पिटल में विंग बी बेड नंबर 37 पर भर्ती किया गया। बच्ची लाल अपने पिता से मिलने हर दिन जाते और बाहर देखकर जूस और फल देकर चले जाते थे। चूंकि 18-19 अप्रेल को लॉकडाउन लगना था। इसलिए वे हॉस्पिटल पिता को देखने पहुंच गए। पर पिता अपने बेड पर नहीं थे। जब कर्मचारी से पूछा तो बताया गया कि उनको बेड नंबर 37 से 9 पर शिफ्ट कर दिया गया है। कर्मचारी ने यह भी कहा कि पिताजी ठीक हैं, ठीक से खा पी रहे हैं। जल्दी डिस्चार्ज कर दिया जाएगा।
फिर मिलने गए तब सामने आई सच्चाई
इसके बाद बच्ची लाल फिर 20 अप्रेल को फल और जूस देकर वापस चले गए और जब 21अप्रेल को उन्होंने फल भिजवाया, तब अस्पताल की ओर से बताया गया कि पिता ने फल लेने से मना कर दिया। तब बच्ची लाल ने पिता से मिलने की जिद की। तब तक 9 नंबर वाला पेशेंट सामने आ गया तो बच्ची लाल ने कहा ये मेरे पिताजी नहीं है। फिर वहां के स्टाफ ने बताया कि उनके पिताजी को कहीं और शिफ्ट कर दिया गया। ऊपर से लेकर नीचे तक पूरा हॉस्पिटल देख डाला लेकिन उनके पिता नहीं मिले। भटकते-भटकते बेटा एसआरएन के अधीक्षक के पास पहुंचा। अधीक्षक ने भी अपने रजिस्टर देख डाले। पर उनके पिताजी नहीं मिले। अधीक्षक ने अपने कर्मचारी के साथ फिर से देखने के लिए बच्ची लाल को उनके साथ भेजा। उसके बाद कई जगह देखा गया लेकिन नहीं मिले। जब रिकार्ड को फिर खंगाला गया तो रजिस्टर में 17 अप्रेल को उनके पिताजी का डेथ सर्टिफिकेट साथ में चिपका था। जो उनके हाथों में दे दिया गया।
अब डेड बॉडी के लिए भटक रहे बच्ची लाल
बच्ची लाल के पिता की डेड बॉडी का क्या हुआ, यह हॉस्पिटल प्रशासन बता नहीं पा रहा है। अब हर दिन बच्ची लाल अपने पिताजी की डेड बॉडी के लिए ऑफिस का चक्कर लगा रहे हैं। बच्ची लाल का यह कहना है आखिरी समय में उनका अंतिम संस्कार करना चाहता हूं। मेरी सरकार और प्रशासन से गुहार है कि मेरे पिता की डेड बॉडी तो मुझे दिला दो।
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लावारिस समझ कर दिया अंतिम संस्कार
अस्पताल प्रशासन ने उन्हें जानकारी दी कि 17 अप्रेल को मोतीलाल की मौत के बाद परिवार वालों का कोई नंबर ना होने की वजह से लावारिस के रूप में उनका अंतिम संस्कार करा दिया गया। बच्ची लाल का आरोप है कि वह 17 अप्रेल और उसके बाद भी रोजाना अस्पताल जाते थे। कभी जूस कभी फल तो कभी खाना और दूसरे सामान वार्ड ब्वॉय को पिता तक पहुंचाने के लिए देते थे. वार्ड बॉय इसके बदले उनसे रोजाना अलग से पैसे भी वसूलते थे और यह बताते थे कि पिताजी की तबीयत ठीक हो रही है।
परिजनों ने की कार्रवाई की मांग
अस्पताल की इस लापरवाही से परिजनों में जबरदस्त नाराजगी है। उन्होंने इसकी शिकायत मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल के साथ ही तमाम आला अधिकारियों से की है और इस मामले में लापरवाही बरतने वाले दोषी लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई किए जाने की मांग की है।
बताया जा रहा है कि बच्ची लाल के पिता मोती लाल की मौत के बाद उनकी बेड पर जिस दूसरे शख्स को एडमिट किया गया था, संयोगवश उसका नाम भी मोती लाल ही था। एक ही नाम का होने की वजह से वार्ड ब्वाय व नीचे के कर्मचारियों को इस बात की जानकारी नहीं हो सकी थी। इस घटना से साफ तौर पर समझा जा सकता है कि प्रयागराज में कोविड मरीजों के इलाज के नाम पर किस तरह की लापरवाही व मनमानी की जा रही है।
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