नई हवा ब्यूरो
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) लंबित मामलों का बोझ घटाने के लिए ‘एडहॉक जजों’ की नियुक्ति कर सकता है। इस सम्बन्ध में कोर्ट ने केंद्रीय कानून मंत्रालय और हाईकोर्ट (High Court) को एडहॉक जजों की नियुक्ति को लेकर रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। आपको बता दें कि इस मामले को लेकर एक NGO ने संविधान के अनुच्छेद-224-A के तहत सभी हाईकोर्ट में अतिरिक्त जजों की नियुक्ति की अपील की थी। इसी अपील की सुनवाई के दौरान Supreme Court ने कोर्ट में लंबित मामलों को निपटाने के लिए ‘एडहॉक जजों’ (Ad Hoc Judge) की नियुक्ति की बात कही है और मामले में 64 पैराग्राफ का फैसला लिखा है। इतना ही नहीं SC ने एडहॉक जजों की नियुक्ति को लेकर गाइडलाइंन भी जारी की है।
यह कहा सुप्रीम कोर्ट ने
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने यह माना है कि यह प्रक्रिया जरूरी है। यह एक संवैधानिक प्रावधान है। कोर्ट ने केंद्रीय कानून मंत्रालय और हाईकोर्ट (High Court) को एडहॉक जजों की नियुक्ति को लेकर रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट चार महीने बाद इस मामले पर सुनवाई करेगा। गैर-सरकारी संगठन (NGO) लोक प्रहरी की ओर से दाखिल याचिका पर शीर्ष अदालत ने यह आदेश जारी किया है। इस NGO ने लंबित मामलों का बोझ घटाने के लिए संविधान के अनुच्छेद-224-A के तहत सभी हाईकोर्ट में अतिरिक्त जजों की नियुक्ति की अपील की है।
जस्टिस कौल ने कहा था कि वह चीफ जस्टिस की सलाह से सहमत हैं कि जब भी जजों की नियुक्ति होती है, तब ओछी शिकायतें की जाती है और इसे लेकर अदालत एडहॉक जजों की नियुक्ति की पूरी व्यवस्था को सवालिया घेरे में नहीं ला सकती। कोर्ट ने कहा था कि एडहॉक जज कमजोर निशाना नहीं हो सकते। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में वरिष्ठ वकील विकास सिंह और कुछ अन्य वकीलों की उन दलीलों को भी खारिज कर दिया था, जिनमें कहा गया था कि कई पूर्व न्यायाधीश पद संभालने के लिए इच्छुक नहीं होंगे क्योंकि उनकी ज्यादा दिलचस्पी मध्यस्थता जैसे आकर्षक क्षेत्रों में हो सकती है। कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान यह भी कहा था कि हमें लगता है कि यह फैसला पूर्व न्यायाधीशों पर ही छोड़ देना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि अगर रिटायर हो चुके जजों को लगेगा कि उनके लिए कुछ और बेहतर अवसर हैं तो वे नियुक्ति के लिए मना भी कर सकते हैं। हम उन पर फैसला नहीं कर सकते। चीफ जस्टिस एडहॉक जजों के तौर पर नियुक्ति के पहले निश्चित तौर पर रिटायर्ड जजों के साथ चर्चा करेंगे।
यह है ‘एडहॉक जजों’ की नियुक्ति की प्रक्रिया
अनुच्छेद-224-A के मुताबिक, ‘जरूरत के आधार पर किसी भी राज्य के हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से अदालत के किसी न्यायाधीश या किसी अन्य हाईकोर्ट के न्यायाधीश को उस राज्य के हाईकोर्ट में न्यायाधीश के तौर पर काम करने के लिए कह सकते हैं। इसके अनुसार सबसे पहले चीफ जस्टिस को संबंधित रिटायर्ड जज की सहमति लेनी होगी। इसके बाद वे मुख्यमंत्री को प्रस्ताव भेजेंगे। सीएम इस संबंध में गवर्नर से मंत्रणा कर यह प्रस्ताव केंद्रीय विधि मंत्री को भिजवाएंगे। विधि मंत्री सीजेआई से मंत्रणा और उनकी सहमति मिलने के बाद इसे प्रधानमंत्री को भेजेंगे और वे राष्ट्रपति को सलाह देंगे। राष्ट्रपति की सहमति मिलने के बाद आदेश जारी होंगे।
ये हैं सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार हाईकोर्ट में स्वीकृत पदों की तुलना में हाईकोर्ट जज के 20 फीसदी से ज्यादा पद खाली होने पर ही एडहॉक बेसिस पर रिटायर्ड जजों को लगाना है। इसके अलावा विशिष्ट श्रेणी में पांच साल से पुराने केसेज होने पर भी लगाया जा सकता है। बैकलॉग की पेंडेंसी सहित अन्य बिंदुओं को भी गाइडलाइन में शामिल किया गया है। गाइडलाइन के अनुसार एक साल की अवधि में रिटायर होने वाले जजों की ही एडहॉक बेसिस पर नियुक्ति करना है।
एडहॉक बेसिस पर नियुक्ति के लिए 60 जज ही योग्य
जानकारी के अनुसार देश के कुल 25 में से 16 हाईकोर्ट में रिटायर्ड जजों की एडहॉक बेसिस पर नियुक्ति हो सकेगी। इसके अलावा करीब 60 जज ही इसके लिए योग्य हैं। राजस्थान हाईकोर्ट में केवल 4 रिटायर्ड जज ही एडहॉक बेसिस पर नियुक्त होने के दायरे में आते हैं। अगर एडहॉक बेसिस पर रिटायर्ड जज को नियुक्त किया जाता है तो राजस्थान में केसेज की पेंडेंसी खत्म करने के लिए इस तरह की नियुक्ति पहली बार होगी।
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