भरतपुर
महारानी श्री जया राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय (MSJ College) के इतिहास विभाग में ‘इतिहास परिषद्’ द्वारा आयोजित व्याख्यान माला में भारतीय संस्कृति और इतिहास के एक अमूल्य पहलू पर चर्चा की गई। इस गरिमामयी आयोजन का शुभारंभ मुख्य अतिथि प्रो. उमेश चंद चतुर्वेदी, महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. हरबीर सिंह, कला संकाय की डीन डॉ. इला मिश्रा, और इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ. संतोष गुप्ता ने माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन कर किया।
मीरा: भक्ति आन्दोलन की अमिट छवि
मुख्य वक्ता और एम.एस.जे. कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रो. उमेश चंद चतुर्वेदी ने ‘भक्ति आन्दोलन में मीरां का स्थान’ विषय पर अपने विस्तृत विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा,“मीरां भक्ति आन्दोलन की वह ज्योति हैं, जिसने समाज में आत्मिकता, समर्पण और आध्यात्मिक क्रांति का दीप जलाया। उनके समर्पण और निष्ठा ने न केवल कृष्ण भक्ति को नई ऊंचाइयाँ दीं, बल्कि समाज में महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत का कार्य किया।”
उन्होंने बताया कि भक्ति आन्दोलन में कबीर, दादू और मीरां का अपना विशिष्ट स्थान है, लेकिन मीरां किसी वाद या सिद्धांत से बंधी नहीं थीं। उनका भक्ति मार्ग पूर्णतः आत्मिक और स्वतंत्र था। मीरां ने अपने वैधव्य जीवन में भी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ खड़ी होकर नारी शक्ति का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया। उनके जीवन और कृतित्व ने विधवाओं के अधिकारों और समाज में उनके स्थान को पुनर्परिभाषित किया।
मीरा: सामाजिक रूढ़ियों की विरोधी
डॉ. संतोष गुप्ता, इतिहास विभागाध्यक्ष, ने मीरा के संघर्षों और उनके द्वारा सामाजिक रूढ़ियों के विरोध को रेखांकित किया। उन्होंने कहा,“मीरा ने उस समय की सती प्रथा, जाति भेद और स्त्री-पुरुष की असमानता को कभी स्वीकार नहीं किया। उनकी कविताओं और भक्ति ने सामाजिक सद्भाव और समानता का संदेश दिया।”
विजेताओं को सम्मान
कार्यक्रम के अंतर्गत आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं जैसे पोस्टर, कोलाज, भाषण और प्रश्नोत्तरी में विजयी रहे प्रतिभागियों को सम्मानित किया गया। विजेताओं में दर्शिता, आकाश, कल्पना, प्रवेंद्र, मयंक, गार्गी, और निधि शामिल थे। इन प्रतिभागियों को अतिथियों द्वारा पुरस्कार प्रदान किए गए।
इस अवसर पर डॉ. इला मिश्रा ने मीरां को हिंदी साहित्य की श्रेष्ठ कवयित्री बताते हुए कहा,
“मीरां ने अपने जीवन और रचनाओं के माध्यम से भक्ति के नए प्रतिमान गढ़े। उन्होंने कृष्ण के प्रति अनन्य समर्पण दिखाते हुए राजमहलों का परित्याग कर समाज को त्याग और समर्पण का संदेश दिया।”
मीरा की प्रासंगिकता
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य डॉ. हरबीर सिंह ने मीरां के दर्शन को आज के समय में भी प्रासंगिक बताया। उन्होंने कहा, “मीरां की भक्ति हमें सिखाती है कि सच्चा समर्पण और निष्ठा जीवन को किस प्रकार ऊंचाईयों पर ले जा सकता है। उनकी भक्ति और दर्शन हमारी संस्कृति का अमूल्य हिस्सा हैं, जो आज भी प्रेरणा देते हैं।”
कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सुमन गोयल ने किया। इस अवसर पर महाविद्यालय के वरिष्ठ संकाय सदस्य प्रो. डॉ. अशोक कुमार गुप्ता, डॉ. नरेश चंद गोयल, डॉ. अंजना शर्मा, डॉ. मनोज कुमार सिनसिनवार, डॉ. अमित रैंकवार, डॉ. प्रमोद कुमार और डॉ. कविता वर्मा उपस्थित रहे।
नई पीढ़ी के लिए संदेश
इस व्याख्यान माला ने न केवल मीरां के जीवन और भक्ति दर्शन को समझने का अवसर प्रदान किया, बल्कि भारतीय संस्कृति और इतिहास के प्रति युवाओं में नवीन प्रेरणा का संचार किया। यह कार्यक्रम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सशक्त संदेश था कि भारतीय इतिहास और संस्कृति का अध्ययन हमारे व्यक्तित्व और समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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